मुझे पूरा विश्वास है, ऐसे और भी हैं..मानें या न मानें
मुझे अंधेरे से डर लगता है, भूत-प्रेत में बिल्कुल यक़ीन नहीं करती, पर रात में पेड़-पौधे भी ऐसी ख़तरनाक इमेज बनाते हैं कि सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है. उस समय, 'विज्ञान गया तेल लेने' और एक पल में ही सारे भगवान याद आ जाते है. जितना भी अच्छा सोचने की कोशिश करूँ, उतने ही भयंकर टाइप के विचार चौतरफ़ा धावा बोल देते हैं और लगता है.....कहीं भूत आ गया तो ! :O पहाड़ पर चढ़ने में खूब मज़ा आता है, पर ऊँचाई से देखते ही जान सूखने लगती है, चक्कर आते हैं और यही डर कि... पैर फिसल गया तो !:O बोटिंग पसंद है और तैरना आता नहीं, इसलिये जब तक किनारे वापिस नहीं आ जाऊं, धुकधुकी लगी रहती है...सोचती हूँ, डूब गई तो ! :O हवाई जहाज़ से यात्रा कभी पसंद नहीं आई, बैठते ही 'एअर होस्टेस' डराना शुरू कर देती है और फिर लैंडिंग तक यही बात दिमाग़ में घूमती रहती है कि 'क्रेश' हो गया तो ! :O बस या ट्रेन में 'ज़िंदा' रहने की फिर भी थोड़ी गुंजाइश होती है ! घूमने का बहुत शौक़ है, पर यात्रा से डरती हूँ. काश, कोई ऐसा तरीका ईज़ाद हो जाए....कि बस एक क्लिक से ही एक शहर से दूसरे शहर, एक देश से दूसरे देश पहुँच जाएँ ! और हाँ, ऐसा हो सकता है ! पहले कभी सोचा था कि दूर बैठे अपनों को इस 'स्टुपिड माध्यम' से देख सकेंगे, बातें कर सकेंगे, पर हुआ न ! तो, ये भी ज़रूर होगा ! विज्ञान ने खूब तरक़्क़ी कर ली है, पर उफ्फ्फ, कब तक सपने बुनते रहें...वैज्ञानिकों, जल्दी करो....हम मर गये तो ! :P
जानती हूँ, किसी के चले जाने से किसी का जीवन रुकता नहीं ! लेकिन क्या करें, खुद से नहीं, 'ज़िंदगी' से ग़ज़ब का इश्क़ है ! वैसे भी इस जीवन में कुछ लोगों को इत्ता पकाया है, कि अगले जन्म में कीड़े-मकोडे ही बनेंगे ! आप लोग भी ज़्यादा खुश मत होना, कहीं आप भी वही बन गये तो ? :D
विशेष - सबसे अजीब बात ये भी है कि जब कोई और डर रहा हो, तब न जाने कहाँ से इतना हौसला आ जाता है कि हमारे मारे, डर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है. ये भी एक कला है, पर हमें इसका ज़रा भी घमंड नहीं ! :P :D
-प्रीति 'अज्ञात'
चित्र : गूगल से साभार
मुझे अंधेरे से डर लगता है, भूत-प्रेत में बिल्कुल यक़ीन नहीं करती, पर रात में पेड़-पौधे भी ऐसी ख़तरनाक इमेज बनाते हैं कि सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है. उस समय, 'विज्ञान गया तेल लेने' और एक पल में ही सारे भगवान याद आ जाते है. जितना भी अच्छा सोचने की कोशिश करूँ, उतने ही भयंकर टाइप के विचार चौतरफ़ा धावा बोल देते हैं और लगता है.....कहीं भूत आ गया तो ! :O पहाड़ पर चढ़ने में खूब मज़ा आता है, पर ऊँचाई से देखते ही जान सूखने लगती है, चक्कर आते हैं और यही डर कि... पैर फिसल गया तो !:O बोटिंग पसंद है और तैरना आता नहीं, इसलिये जब तक किनारे वापिस नहीं आ जाऊं, धुकधुकी लगी रहती है...सोचती हूँ, डूब गई तो ! :O हवाई जहाज़ से यात्रा कभी पसंद नहीं आई, बैठते ही 'एअर होस्टेस' डराना शुरू कर देती है और फिर लैंडिंग तक यही बात दिमाग़ में घूमती रहती है कि 'क्रेश' हो गया तो ! :O बस या ट्रेन में 'ज़िंदा' रहने की फिर भी थोड़ी गुंजाइश होती है ! घूमने का बहुत शौक़ है, पर यात्रा से डरती हूँ. काश, कोई ऐसा तरीका ईज़ाद हो जाए....कि बस एक क्लिक से ही एक शहर से दूसरे शहर, एक देश से दूसरे देश पहुँच जाएँ ! और हाँ, ऐसा हो सकता है ! पहले कभी सोचा था कि दूर बैठे अपनों को इस 'स्टुपिड माध्यम' से देख सकेंगे, बातें कर सकेंगे, पर हुआ न ! तो, ये भी ज़रूर होगा ! विज्ञान ने खूब तरक़्क़ी कर ली है, पर उफ्फ्फ, कब तक सपने बुनते रहें...वैज्ञानिकों, जल्दी करो....हम मर गये तो ! :P
जानती हूँ, किसी के चले जाने से किसी का जीवन रुकता नहीं ! लेकिन क्या करें, खुद से नहीं, 'ज़िंदगी' से ग़ज़ब का इश्क़ है ! वैसे भी इस जीवन में कुछ लोगों को इत्ता पकाया है, कि अगले जन्म में कीड़े-मकोडे ही बनेंगे ! आप लोग भी ज़्यादा खुश मत होना, कहीं आप भी वही बन गये तो ? :D
विशेष - सबसे अजीब बात ये भी है कि जब कोई और डर रहा हो, तब न जाने कहाँ से इतना हौसला आ जाता है कि हमारे मारे, डर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है. ये भी एक कला है, पर हमें इसका ज़रा भी घमंड नहीं ! :P :D
-प्रीति 'अज्ञात'
चित्र : गूगल से साभार