आज सुबह जब योगा क्लास जा रही थी तो मौसम बेहद ख़ुशगवार था। हल्की-हल्की ठंडी हवा पर तो मैं पहले से ही निहाल हुई जा रही थी उस पर रास्ते में मिलते हुए बच्चों की मुस्कानों ने दिन के ख़ूबसूरत होने की सूचना ख़ुद ही दे दी थी। उन सबके चेहरों पर अलग ही ख़ुशी थी। यूँ लग रहा था जैसे 10-12 किलो के स्कूल बैग के न होने से वे बेहद हल्का महसूस कर रहे हों। वैसे जिस दिन स्कूल में पढ़ाई की छुट्टी हो पर स्कूल जाना हो, तो और भी अच्छा लगता ही है। हम सबने भी इन दिनों का ख़ूब लुत्फ़ उठाया है। बच्चों की असल फ्रीडम यही तो है।
किसी की कार में जोरों से बजता गीत भी सुकून दे रहा था।
"इंसाफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के....ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के"
पर मैं सोच रही थी कि बच्चों का ह्रदय तो हमेशा से कितना निर्मल रहा है। वो बिना लाग-लपेट के सदैव सच ही बोलते आये हैं। कभी उनकी राय ली जाए और कुछ पसंद न आए उन्हें तो तुरंत प्यारी, टुक्कू-सी नाक सिकोड़कर जोर से बोलेंगे ..."छी, कित्ता गन्दा है ये!" और पसंद की वस्तु हो तो, खिलखिलाते हुए "भौत बढ़िया!" :D
ऐसे वाले बच्चे राजनीति में जाते ही कितने हैं? या बड़े होकर जीवन से मिले अनुभव उन्हें मुखौटे पहनने को मजबूर कर देते हैं? प्रत्येक इंसान, हर परिस्थिति में कितना अलग-अलग व्यवहार करने लगता है। एक ही विषय पर दो अलग लोगों से बात करने का हमारा तरीका भी कितना भिन्न हो जाता है क्योंकि हम इंसान को देखकर, नाप-तौल कर ही कुछ कहते हैं। बच्चे कितने बिंदास! इन चक्करों (समझदारी) में पड़ते ही नहीं! तभी तो उनका साथ एक नई उमंग से भर देता है और हर बार ही कुछ नया सिखा जाते हैं ये छुटंकी लोग! :D
ख़ैर, विषय से भटकना मेरी आदत हो गई है। बात ये कहनी थी कि आज वर्षों बाद स्कूल जैसा फ़ील आया। योगा क्लास में पहुँचते ही अलग तरह की साज-सज्जा देख जी खुश हो गया। फिर उस पर राष्ट्रगान ने हर बार की तरह अपने देश के लिए गर्व से भर दिया। इसकी धुन और शब्दों में न जाने कैसा जादू है कि जितनी बार भी गाएं-सुनें...असर बढ़ता जाता है। ये अहसास प्रेम ही तो है। है, न! :)
राष्ट्रगान के साथ ही तिरंगे के रंग में रंगा नाश्ता और गपशप ने उस कसक को भी दूर कर दिया जो सुबह घर से निकलते समय दिल के किसी कोने में बस पल भर को ही खलबलाई थी।
जय हिन्द! जय भारत!
गणतंत्र दिवस की अशेष शुभकामनाएं!
- प्रीति 'अज्ञात'
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