गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

#अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस



भाषा, संवाद का जरिया है अहसासों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है. हम किसी भी माध्यम में पढ़ें हों, पर जहाँ बचपन गुजरा वहाँ की भाषा से लगाव हो जाना स्वाभाविक है. फिर हम कितने भी साब-मेमसाब बन जाएँ लेकिन जब भी उस भाषा को बोलने का अवसर मिले; चूकते नहीं! आंचलिक शब्दों की मिठास ही अलग होती है, इसे अपनी माटी से मोह भी समझा जा सकता है.
आजकल प्रादेशिक भाषाओं के प्रचार पर बहुत जोर दिया जा रहा है. अच्छी बात है, बस इसका उद्देश्य अपनी भाषा को सर्वश्रेष्ठ एवं अन्य को कमजोर सिद्ध करने से कहीं ज्यादा उसके संरक्षण में होना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह केवल इतिहास के पृष्ठों तक ही सीमित न रह जाए. प्रत्येक भाषा के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसका बोला एवं लिखा जाना एक अनिवार्य तत्त्व है. अपनी भाषा को बोलने में संकोच कैसा!
भाषा जोड़ने का काम करती है और सृजन में कोई भी कमतर-बेहतर नहीं होता! सबकी अपनी-अपनी सुंदरता, मधुरता है तथा स्थान के अनुसार प्रत्येक की उपयोगिता भी होती ही है. हम मित्रों के साथ जिस सहजता,अपनेपन और अनौपचारिक ढंग से बात करते हैं वहाँ तू, तेरा जैसे शब्द भी कितने प्रेम भरे लगते हैं वहीं कार्यस्थल में बात करने की एक अलग ही प्रशिक्षित शैली होती है. अति-संभ्रांत वर्ग में तमाम औपचारिकताओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओँ का छौंक लगाना सभ्यता का मानक समझा जाने लगा है. वहीं किसी बड़े mall के सेल्समेन से बात करते समय और ठेलेवाले से सब्जी लेते समय हमारी भाषा में जमीन-आसमान का फर्क आ जाता है. इंसान हम वही हैं बस स्थानानुसार, सबकी सहूलियत के आधार पर ज़बान बदल लेते हैं. 
मंत्र यही है कि भाषा कोई भी हो, इसको बोलने का तरीक़ा ही सब कुछ तय करता है. भाषा के साथ-साथ उचित शब्दों का चयन ही बात बनाता और बिगाड़ता है. 
अभिव्यक्ति के तरीके भिन्न हो सकते हैं पर हृदय में जो भी भाव उठें, जैसी भी अनुभूति हो, उसे हम व्यक्त ज़रूर करें. माध्यम कोई भी हो इससे अंतर नहीं पड़ता, महत्त्वपूर्ण यह है कि मानसिकता सही रहे...स्नेह-भाव जीवित रहे! और क्या! 😍
हर भाषा का अपना मज़ा है, सबको अपने बच्चों जैसा प्यार करना चाहिए. मेरा बस चले तो सब सीख लूँ. वैसे हमें तो हिन्दी ही ठीक से आती है और सपने में भी इसी भाषा में बात करते रहे हैं. अंग्रेज़ी, गुजराती और संस्कृत गुजारे लायक आती है. बस, इतनी ही कि किसी जानकार के सामने नहीं बोल सकते. :D 
 MORAL: 'संवाद' जीवन का एक ज़रूरी हिस्सा है. संवादहीनता रिश्तों को तिल-तिलकर मरने को छोड़ देती है, वहीं कुछ पलों का संवाद इसी गहरी खाई को कब भर दे, पता भी नहीं चलता!
और हाँ, 'अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' का मूल उद्देश्य भाषाई विविधता और विकास पर बल देना है. अपनी वाली को महान बताने के  लिए कुश्ती नहीं लड़नी है. 😜
- प्रीति 'अज्ञात' 
#अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

प्रेम और ठंडी चाय

वो दोनों, जिनके ह्रदय में अभी-अभी किसी सुनहरे ख़्वाब ने जन्म लिया है और जिन्हें लगता है कि उन्हें एक-दूसरे से बेपनाह इश्क़ है; पहले आप....की रस्म को निभाते हुए कल तक बेचैनी में प्रतीक्षा की हज़ार करवटें बदलेंगे। एक नया प्रेमपत्र लिखकर पहले वाले को नष्ट कर देंगे। वे अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत शब्दों की खोज में जुट जायेंगे। फिर शायद उनमें से कोई एक पहल कर ही दे, लेकिन उस पल ये सारी तैयारियाँ धरी की धरी रह जायेंगी और वही तीन पुरातन शब्द उनका काम आसान कर देंगे। तब ओपन रेस्टॉरेंट की टेबल पर रखे गुलाबों में एक अलग ही महक़ होगी। बहती हुई हवा सुगंध से भर किसी नई नवेली दुल्हन सा इस क़दर शरमायेगी कि गमले में लगे पनसेटिया की सारी पत्तियाँ एक साथ ही सुर्ख़ लाल हो उठेंगी, उस समय हरसिंगार पर फुदकते पक्षियों की आवाज़ 'इक प्यार का नग़मा है' से किसी प्रेमगीत सरीख़ी गुनगुनाती महसूस होगी। 

उधर जो पार्क में बेंच पर कोने में सिमटा दाएँ-बाएँ झाँकता प्यारा सा जोड़ा है न! उसे भूख ही नहीं लगती। वो आज हाथ थाम अपने सपनों को रंगबिरंगे पंख देगा। लड़की संजोये हुए सारे पंख जोड़ना चाहेगी पर लड़का उसका गाल थपथपाकर समझाएगा कि धीरे-धीरे सब अच्छा हो जायेगा, हमें ज्यादा फ़िक्र नहीं करनी चाहिए। लड़की को लड़के की हर बात सच्ची लगती है, वो पगली इस बार भी ख़ुशी से उसके गले लिपट बेवज़ह रो देगी। पार्क उम्मीदों की हरी रौशनी से जगमगा उठेगा और फूलों पर मचलती तितलियाँ लाख़ कोशिशों से भी किसी के हाथ न आएँगी। वहीं पास ही टहलता हुआ एक वृद्ध जोड़ा अपने दिनों को याद कर अनायास ही मुस्कुरा देगा।

कुछ ऐसे अभागे भी होंगे कहीं....जिनकी हथेलियों में इश्क़ की लक़ीरें बनते ही मिट चुकी हैं या जिन्होंने उसे हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया है। वे उस दिन आसमां से बातें करेंगे, चाँद के आगे अपनी वे सभी अर्ज़ियाँ एक बार फिर भरेंगे जिनकी क़िस्मत में खारिज़ होना ही लिखता आया है। उनकी दर्द भरी चीखें कहीं, किसी पार्टी के शोर-शराबे में दबकर रह जायेंगीं। वो इस सदी की सबसे लंबी रात होगी; जहाँ इनकी सर्द आहों से अगली सुबह का कोहरा और भी घना छा जाएगा। उनके ग़म को समझता सूरज भी हताश होकर फ़िर कई दिनों तक काली चादर ओढ़ चुपचाप सो जायेगा और किसी को अपना मुँह तक नहीं दिखायेगा।

इकतरफ़ा इश्क़ के मारे लोग, चाय की गर्म प्याली का पहला सिप भरते हुए उन बातों की स्मृतियों में खो जायेंगे; जब लिपटकर प्रेम का इज़हार किया जा सकता था या उसे किसी और की तरफ़ बढ़ने से रोका जा सकता था। वो उन पलों को भी कोसेंगे जब सुख की नन्ही तस्वीर से उसकी हँसी छीनकर किसी ने गाढ़ी स्याही से अथाह दुःख गोद दिया था। बीती तमाम स्याह होती एकाकी रातों की पीड़ा उनके चेहरे पर ठहर क्रूर अट्टहास करेगी। बदलते रिश्तों के इस दौर में उनकी हर साँस से अब भी दुआ ही निकलेगी लेकिन सच्चे प्रेम पर अपने विश्वास को चकनाचूर होते देख, यक़ायक उनकी निराश आँखों में हरी घास पर पसरी ओस की सारी बूँदें समा जायेंगी और उस दिन की घुटन भरी गहरी प्रतीक्षा, ठंडी चाय के प्याले में डूबकर अपनी जान दे देगी।   
- © प्रीति 'अज्ञात'

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

सुनो! प्रेम...तुम तब भी उम्मीद की तरह साथ बने रहना!

प्रेम, रात के काले साए को अपनी रौशनी से जगमग कर देने वाला ऐसा अनोखा मनमोहक जादूगर है जिसकी अदृश्य टोपी में ख़ुशियों के सैकड़ों उत्साही ख़रगोश सरपट दौड़ते नज़र आते हैं. यह आसमां से झांकता वो दूधिया चाँद भी है जो बेहद प्यारा और सारे जहाँ से  निराला है. भले ही यह कभी पूरा, कभी आधा और कभी टिमटिमाकर गायब हो जाता है लेकिन अपनी उपस्थिति का अहसास सदैव ही बनाए रखता है.
यह रमज़ान की ईद है, विवाहिताओं का करवा-चौथ है. प्रेमियों की स्वप्निल उड़ान है. रात की नदी में डूबकर इठलाता, झिलमिलाता दीया है. बच्चे की उमंगों भरी मुस्कान है. स्याह अँधेरे के आदी मुसाफ़िर की आँखों में अचानक भरी चमकीली, सुनहरी उम्मीद है. यह अहसास इतना लुभावना और आकर्षक है कि मन पूछ बैठता है, "चाँद, तुम 'प्रेम' हो या 'प्रेम' तुम चाँद हो?"

प्रेम, दो जोड़ी आँखों से झांकता एक अदद सपना भी है. कहते हैं, प्रेम पाने नहीं खोने का नाम है. प्रेम दो पावन दिलों के एक हो जाने का नाम है. प्रेम का हर रंग सच्चा, हर रूप अच्छा; पर प्रेम बेसबब कितनी ख़्वाहिशें जगाता है! प्रेम, उदास रातों में अनगिनत तारे गिनाता है.
प्रेम, यादें है, अहसास है, ख़ुशी के छलकते आँसू है, उदासी की घनघोर घटा है, दर्द का बहता दरिया है, फूल है, ख़ुश्बू है, मुट्ठी में भरा आसमान है, बेवज़ह उभरती मासूम मुस्कान है. प्रेम कभी किसी बच्चे की तरह शैतान लगता है तो कभी उसका ही मासूमियत भरा भोला चेहरा भी ओढ़ लेता है. 

कैसे परिभाषित करें इसे? शायद यह चंद मख़मली शब्दों में लिपटी गुदगुदाती, नर्म  कोमल अनुभूति है. स्पर्श के बीज से उगी उम्मीद की लहलहाती फसल है. आँखों के समंदर में डूबती कश्ती की गुनगुनाती पतवार है. प्रेम, अकेलेपन का साथी है, दर्द है तो दवा भी. इसके बिना जीवन कैसा? यह तो प्रकृति की रग-रग में बसा है. भूखे को रोटी से प्रेम होता है और अमीर को पैसे से. माँ का प्रेम उसका बच्चा और बच्चे का प्रेम इक खिलौना. प्रेम हर रूप, हर रंग में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करता आया है. हर विशेषण इसके साथ जुड़ा और इसके असर से  कोई भी न बच पाया है.

तभी तो सभी के जीवन में कोई न कोई ऐसा इंसान अवश्य ही होता है जिससे अपार स्नेह हो जाता है, दिल उसे हमेशा प्रसन्न देखना चाहता है और हर दुआ में उसका नाम ख़ुद-ब-ख़ुद शामिल होता जाता है. यद्यपि यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं कि उस इंसान की भावनाएँ भी आपके प्रति ठीक ऐसी ही हों. ऐसा होना अपेक्षित भी नहीं होता है पर फिर भी कभी-कभी कुछ बातें गहरे बैठ जाती हैं. दुःख देती हैं लेकिन धड़कनें तब भी हर हाल में उसी लय पर थिरकती हैं. उसकी तस्वीर को घंटों निहार कभी ख़ुशी तो कभी उदासी के गहरे कुएँ की तलहटी तक उतर जाती हैं. न जाने यह बेवकूफ़ी है....पागलपन या इस शख़्स का नितांत एकाकीपन कि अब तक वो यादें साँसों से लिपटी रहती हैं जब उसने अपने जीवन का प्रथम और अंतिम स्नेहिल स्पर्श किसी का हाथ थाम महसूस किया था. क्या पल भर की मुलाक़ात, चंद अल्फ़ाज़ और एक प्यारी-सी हंसी भी प्रेम की परिभाषा हो सकती है? होती ही होगी...वरना कोई इतने बरस, किसी के नाम यूँ ही नहीं कर देता! तुम इसे इश्क़/ मोहब्बत /प्यार  /प्रेम या कोई भी नाम क्यूँ न दे दो.. इसका अहसास वही सर्दियों की कोहरे भरी सुबह की तरह गुलाबी ही रहेगा. इसकी महक जीवन के तमाम झंझावातों, तनावों और दुखों के बीच भी जीने की वज़ह दे जाएगी.

'इश्क़' के लिए तो एक पल ही काफ़ी है, ज़नाब! उसके बाद जो होता है वो तो इसको संभालकर रखने की रवायतें हैं. यद्यपि सारे प्रेम सच्चे हैं पर स्त्री-पुरुष के मध्य हुए प्रेम को ओवररेटेड किया गया है. सामाजिक प्रतिष्ठा से इसे जोड़ना प्रेमी युगल के सहज रिश्ते में उलझन, तनाव उत्पन्न कर देता है. परिवार, मान-मर्यादा की दुहाई दो हँसते-खेलते इंसानों का जीवन तबाह भी कर देते हैं. 
वैसे देखा जाए तो,  'प्रेम' दीये की फड़फड़ाती लौ की तरह प्रारम्भ में और अंतिम समय में तीव्रता से अपनी चमक के साथ महसूस होता है परन्तु बीच की सारी प्रक्रिया तो इस लौ को जीवित बनाए रखने की जद्दोज़हद में ही निकल जाती है. कभी भावनाओं का तेल ख़त्म होता दिखाई देता है तो कभी बाती समय की आँधियों से जूझती थकी-हारी, निढाल नज़र आती है. यदि दोनों समय रहते अपने स्नेह को साझा करते रहें तो क्या मज़ाल कि उनकी दुनिया रोशन न हो! पर होता यह है कि तेल और बाती दोनों ही शेष रह जाते हैं और जोत जलती ही नहीं! धीरे-धीरे यह घुप्प अँधेरा रिश्तों को लीलने लगता है. जब बात समझ आती है तब समेटने को मात्र अफ़सोस रह जाता है लेकिन यह उत्तरदायित्व दोनों का है कि लौ जलती रहे. अन्यथा बाती दीये की उसी परिधि पर मुँह बिसूरे टिकेगी, जलेगी, प्रतीक्षा करेगी और अचानक बुझ जाएगी!

'प्रेम' की सारी बातें बेहद अच्छी हैं पर एक उतनी ही बड़ी ख़राबी भी है इसमें कि यह आता तो सबके हिस्से है पर ठहरता कहीं-कहीं ही है.....!
आज जबकि सियासी चालों, स्वार्थ और नफ़रतों के दौर में प्रेम करना सबसे बड़ा गुनाह है, सुनो! प्रेम...तुम तब भी उम्मीद की तरह हम सबके साथ बने रहना!
- प्रीति 'अज्ञात'

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

चिट्ठी न कोई संदेस


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'जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा'
शायद ही कोई ऐसा संगीत-प्रेमी होगा, जिसने अपने जीवनकाल में यह पंक्ति न गुनगुनाई होगी! यह जादूगरी केवल जगजीत सिंह को ही आती थी कि दुःख के समय में वे हर किसी के अपने हो जाते थे. उन्होंने ही यह यक़ीन भी दिलाया कि पीड़ा से भरी इस पंक्ति की हर ध्वनि अनगिनत प्रतीक्षाओं का मौन प्रत्युत्तर है और किसी के चले जाने के बाद भी उसके प्रेम में डूबे रहना ख़ुदा की इबादत से कम नहीं होता! ग़ालिब के अल्फ़ाज़ और उस पर जगजीत की आवाज ईश्वर की भेजी कोई बहुमूल्य चिट्ठी सी लगती है. प्रेमियों ने जब-जब प्रेम की पीड़ा को भीतर तक महसूस किया है तो उसे स्वर जगजीत ने ही दिए हैं और उनकी ये ग़ज़लें तो प्रेमियों ने घोलकर पी ली हैं - 'प्यार मुझसे जो किया तुमने, तो क्या पाओगी', 'तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे', 'कोई ये कैसे बताये कि वो तनहा क्यूँ है'.  मोहब्बत में धड़कते दिलों ने 'तुमको देखा तो ये ख़्याल आया', 'झुकी-झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं' , 'ये तेरा घर ये मेरा घर' गुनगुनाकर ही इश्क़ की मुश्क़िल मंज़िलें तय की हैं.

मैं जब अपने-आप के बारे में सोचती हूँ तो जगजीत एक परछाई की तरह साथ हो लेते हैं. वो मेरे सुख से हँसते हैं और दुःख में सिर पर सदा ही स्नेह भरा हाथ फेर पूछते आये हैं, 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो'. कोई ताज़्जुब नहीं कि वो जब क़िताबों में डूबे रहने और खेलने का समय था, मुझे और मुझ जैसे न जाने कितनों को उनसे इश्क़ हो गया था. हम सब पागलपन की हद तक उनकी मखमली आवाज़ के दीवाने थे और उनकी गायी ग़ज़लों का अच्छा-ख़ासा कलेक्शन था हमारे पास. लड़कियाँ जब बाज़ार में सौंदर्य प्रसाधन ढूँढा करती थीं, हम चुपके से किसी म्यूजिक स्टोर पर जाकर उनकी नई एल्बम तलाश करते थे.

आज उन्हीं सब सिरफ़िरों की तरफ़ से एक स्नेह और अपनापन भरा पत्र है तुम्हारे लिए -
ओह! जगजीत..तुमको शुक्रिया उन सबकी तरफ़ से, जिनके दर्द को तुमने स्वर दिए हैं, जिनके ज़ख़्मों पर अपनी आवाज का मरहम लगाया है. तुमको क्या पता! कि महबूब से मिलने की हर उम्मीद जब-जब टूटी है तुमने उन टूटे दिलों को अपनी शरण दी है, उनके आँसुओं को गले लगाया है, उनकी पीड़ा को समझ उनकी पीठ पर तसल्ली का स्नेहिल हाथ फेरा है. 
दर्द को जब कोई न समझ सका तो वहाँ तुम थे, बिछोह का दुख जब-जब एकांत में चीत्कारें भर बिलखता था, तो वहाँ तुम थे, जीवन की निराश घड़ियाँ जब ख़ुद की भी एक बात तक नहीं सुनतीं थीं तो तुम्हीं ने आकर हाथ थामा.  जाने कितनी उदास रातों की तन्हा आवाज हो तुम, पीड़ा में डूबते हर हृदय की एकल पुकार हो तुम! 
यह भी तुम्हीं ने सिखाया कि चाहत किसी को अपने दिल मे जगह देने का नाम है, क़ैद करने का नहीं!
जब भी 'वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी' सुनती हूँ.स्मृतियों का हर सुनहरा भीगता पृष्ठ ख़ुद-ब-ख़ुद पलटता चला जाता है.

जीवन से जुड़े बस तीन ही मलाल रहे हैं उनमें से एक तुमसे न मिल पाने का भी है. मैंने तुमको तबसे सुना है, जब प्रेम समझती भी नहीं थी पर फिर भी तुम्हारी दीवानी थी. अब जबकि इस शब्द को जीने लगी हूँ तो तुम नहीं हो.कहीं भी नहीं हो! एक आवाज बन तुमने जो मेरा साथ निभाया है उस पर हज़ार ज़िंदगियाँ क़ुर्बान!
मुझे तुमसे कितना प्रेम है यह जताना भी बेतुका लगेगा.  बस इतना समझ लो कि जिसके भी पास दिल है उसकी हर दुआ में पहला नाम तुम्हारा है. उसकी धड़कनों में लहू के साथ मोहब्बत की तरह बहते हो तुम. उसके दुःख के सहरा में दवा की तरह रहते हो तुम. जैसे एक दोस्त की तरह कह रहे हो, 'ग़म का खज़ाना तेरा भी है, मेरा भी'. 

आज जबकि प्रेम के इस सप्ताह में तुम्हारा जन्मदिवस है तो तुम्हारी ही  डूबती आवाज़ में डूबती चली जा रही हूँ 'चिट्ठी न कोई संदेस, जाने वो कौन से देस जहाँ तुम चले गए'
मैं जानती हूँ जैसे कि मैं इसे कानों में लगाए नींद के आग़ोश में चली जाती हूँ वैसे ही तुम्हारी गोदी में सिर रखकर इन दिनों ख़ुदा को भी चैन की नींद आती होगी. काश! मेरी हर दुआ और शुक्रिया तुम तक पहुंचे! यूँ ईश्वर से शिक़ायत तो इस बार भी है!
- प्रीति 'अज्ञात'


शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

प्रेमफरवरी-1

कई बार किसी प्रेम कहानी का हिस्सा न होते हुए भी, प्रेम का हर दर्द भोगना होता है। हर रिसते घाव का साक्षी बनना होता है। किसी की आहों में अपनी धड़कनों को भस्म होते हुए चुपचाप देखना होता है। तभी तो उधर जब कोई किसी के विरह की आग में जलता है, विलाप करता है तो इधर किसी और के हृदय में उठती प्रेम की लहरें साहिल से माथा टकरा-टकराकर पीड़ा के उसी समंदर में पुनः लौट जाती हैं जहाँ से कभी उम्मीद की आँखोँ में हज़ारों ख़्वाब भर साहिल तक की दूरी बड़े जतन से तय की थी। अति विश्वास में भरे प्रेमी अक़्सर यह भूल जाते हैं कि टूटना, बिखरना, भुला दिया जाना हर स्वप्न की नियति है और समंदर की नियति है प्रतीक्षा में डूब उम्र भर सिसकते रहना। उसका खारापन उसके जन्म से मृत्यु तक की अथाह पीड़ा और बेचैनी का सार है। लेकिन सृष्टि ने उस बदनसीब के माथे पर गति का चंदन लपेट दिया है। सो उसे बहना है, मुस्कुराना है, सबका हौसला भी बनना है। स्वयं सागर के हिस्से में क्या आता है, यह पलटकर देखने का वक़्त किसी के पास नहीं होता!
एकतरफ़ा प्रेम सिवाय पीड़ा के और कुछ नहीं देता। यह एक धीमी आत्महत्या है। 
#प्रेमफरवरी-1 
- © प्रीति 'अज्ञात'