जब अपराधियों को इस बात का पूरा यक़ीन है कि इस देश में बलात्कारी को फाँसी कभी नहीं होगी, तो उन्हें क्यों और किस बात का डर! ज़िंदा जलते शरीर से उठने वाला धुँआ देश की राजनीति के लिए लाभदायक नहीं इसलिए ऐसे मामलों की चर्चा दो मिनट के मौन से अधिक नहीं होनी है! सोचिये, सत्ता झपटने के लिए जो रतजगा करते हैं क्या आज भी रात भर जाग सबसे दस्तख़त करा, अपराधियों को सुबह तक फाँसी दे देंगें? न ही विपक्ष इसके लिए कोई आंदोलन ही करने वाला है।
'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' वाला स्लोगन किसी काम का नहीं! क्योंकि पढ़ लेने से भी बेटियाँ बच नहीं जातीं। वे तब भी ज़िंदा जला दी जाती हैं। उनका दोष यह है कि वे अब भी समाज पर विश्वास कर लेती हैं। समाज, जहाँ हवस के दरिंदे छुट्टा घूम रहे हैं। समाज, जहाँ बलात्कारियों पर वर्षों तक केस की नौटंकी कर उसे बचा लिया जाता है। समाज, जहाँ उन्नाव रेप के बलात्कारी विधायक लोगों के बीच सेलिब्रिटी की तरह हँसते हुए चलते हैं। समाज, जो कभी हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्ज़िद में उलझ लड़ता है तो कभी उन नेताओं के लिए जिनकी नज़रों में उसकी क़ीमत एक वोट से ज्यादा कुछ भी नहीं!
आलू-प्याज के दामों में उलझा समाज उनके कम होने की उम्मीद लिए आसमान की ओर तकता है। सब्जियों और पेट्रोल के महँगे दामों में उलझे समाज को पता ही नहीं चला कि बीते वर्षों में मौत कितनी सस्ती हो गई है!
प्रियंका, तुम्हारा दर्द, तुम्हारी चीख़ें, तुम्हारा लहू, तुम्हारे आँसू और तुम्हारा चकनाचूर विश्वास....इस देश का प्रत्येक संवेदनशील नागरिक महसूस कर पा रहा है। ईश्वर तुम्हारे ज़ख्मों को मरहम दे। क़ाश! तुम इस पीड़ा को भूल जाओ। तुम जिस भी दुनिया में हो, वहाँ से हम बचे हुए लोगों के लिए दुआ करना और परमात्मा से कहना कि धरती स्त्रियों के लायक़ नहीं रही। सृष्टि के समाप्त होने का समय आ चुका है।
- प्रीति 'अज्ञात'
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