शनिवार, 28 नवंबर 2020

Covid vaccine से 'अमृत' जैसी उम्मीद उगाए लोग ये 5 गलतफहमी दूर कर लें!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना वैक्सीन बना रही भारत की तीनों लैब पर खुद गए. अहमदाबाद की ज़ाइडस बायोटेक से शुरू हुआ उनका दौरा कार्यक्रम भारत बायोटेक (हैदराबाद) और फिर सीरम इंस्टिट्यूट (पुणे) पर जाकर संपन्न हुआ. कोरोना वैक्सीन का टीका बनाने की प्रगति, उसके भंडारण के अलावा एक बड़ी चिंता इस बात की है कि यह टीका जल्दी से जल्दी भारत की 135 करोड़ से अधिक आबादी तक कैसे पहुंचाया जाए. हम जानते हैं कि यह बड़ा ही चुनौतीपूर्ण काम होगा. लेकिन, बुनियादी सवाल तो अब भी जहां का तहां ही है. क्या ये वैक्सीन हमें कोरोना के खतरे से बाहर निकाल लाएगी? अब जबकि कोरोना विकराल रूप धर चुका है तो सबकी नज़रें संकटमोचन वैक्सीन पर जा टिकी हैं. अब तो घरेलू हेल्पर भी पूछने लगी है कि वैक्सीन कब आ रही है? कुछ लोग तो इस भ्रम में ही जी रहे कि ये ऐसी जड़ी-बूटी है कि इधर हमने सेवन किया और उधर हम अमर हुए!  


एक तरफ हमारे वैज्ञानिक कोरोना वैक्सीन बनाने में दिन-रात एक किये हुए हैं, और दूसरी तरफ जनता दिन-रात कुछ और ही तूफ़ानी करने पर आमादा है. जहाँ देखिए मास्क, सैनिटाइज़र, सोशल डिस्टेंसिंग के तमाम नियमों की धज्जियाँ उड़ती दिखाई देती हैं. सबकी लापरवाहियों का नतीज़ा अब इस बीमारी के विस्फ़ोट बन उभरा है. मेरे घर के सामने एक बहुमंज़िली इमारत है. यहाँ की चहल-पहल और हंसने-बालने आवाज़ें ज़िंदगी का खुशनुमा इशारा देती हैं. लेकिन जब पता चलता है कि यहां पौने चार सौ लोग कोरोना पॉजिटिव हैं तो दिल भीतर तक दहल जाता है. हाथ दुआ को उठते हैं कि इन लोगों की मुस्कान सदा सलामत रहे! क्या कोरोना काल में सामान्य जीवन जीना इतना डरावना हो गया है? ऐसे में यह जानना और भी आवश्यक हो जाता है कि हमें कोरोना वायरस की जिस तिलिस्मी वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार है. वह हमारे जीवन में कुछ बदल पाएगी भी या नहीं?

वैक्सीन लगते ही आप 'कोरोना प्रूफ़' नहीं होने वाले 

वैक्सीन का काम है बीमारी से बचाव करना, ये उसे ठीक करने की दवाई क़तई नहीं है. यदि आप ये सोच रहे हैं कि वैक्सीन लगते ही आप 'कोरोना प्रूफ़' हो जाएंगे तो आप सौ फ़ीसदी ग़लत हैं! वैक्सीन एक्सपर्ट का कहना है कि "हमारे शरीर में एंटीबॉडीज बनने की प्रक्रिया में न्यूनतम तीन सप्ताह लगते हैं यानी यदि आप आज वैक्सीन लेते हैं तब भी आप पर अगले तीन सप्ताह तक संक्रमण का ख़तरा मँडराता रहेगा! यह संकट इससे अधिक समय के लिए भी हो सकता है". लेकिन जिस तरह का इंतज़ार हो रहा उसे देखकर तो यही लगता है कि लोग मान बैठे हैं कि ये वैक्सीन नहीं बल्कि अमृत जल है जिसे ग्रहण करते ही सारे दुःख मिट जाएंगे. एक सुरक्षा कवच चढ़ जाएगा. जबकि सच इससे उलट है. यदि हम अपनी सुरक्षा स्वयं करना नहीं सीखेंगे तो हमारे लिए वैक्सीन का आना न आना एक बराबर है! 

वैक्सीन से जुड़े किंतु-परन्तु भी समझने होंगे हमें! 

किसी वैक्सीन को बनाने की शुरुआती कोशिश के किसी भी चरण में तीन माह से अधिक ट्रायल कर पाना संभव नहीं है. यही इसका प्रोटोकॉल है, जो कोरोना वैक्सीन के मामले में भी अपनाया गया है. शोध वैज्ञानिक अभी यह भी नहीं बता सकते कि कोरोना वैक्सीन का असर कितने समय तक रहेगा. हो सकता है 6 महीने बाद एंटीबॉडीज बनना बंद हो जाए, और नतीज़ा वही सिफ़र. ये भी संभव है कि आपको जीवन भर कोरोना न हो. पर अभी सारी चर्चा किंतु, परन्तु वाली ही है. वैज्ञानिक ही इस बात को लेकर कहीं-न-कहीं आशंकित हैं तो वैक्सीन बनाने वाली कम्पनीज़ तो कोई गारंटी देने से रहीं. उन्होंने हथियार बना दिया है लेकिन उनके लिए भी इस विषाणु से लड़ना अनजान दुश्मन से लड़ने जैसा है, जिसके अगले वार का कोई अनुमान फिलहाल तो वैज्ञानिकों के पास नहीं है. हार-जीत तो बाद में ही सिद्ध हो सकेगी न! अब क्या ऐसे में वैक्सीन लगने के लम्बे समय बाद तक भी हमें अपनी सुरक्षा पर ध्यान न देना होगा?

लैब की क्षमता और देश की आबादी में जमीन-आसमान का फ़र्क है!

यह भी समझ लीजिए कि चाहे वो स्वदेशी वैक्सीन हो या विदेशी, दोनों को ही हम तक पहुँचने में वक़्त लगेगा! बाहर की वैक्सीन को जिस तरह के रख-रखाव (तापमान वगैरह) की आवश्यकता है उसकी व्यवस्था करने में ही महीनों लग जाएंगे. तब तक शायद हमारी ही तैयार हो जाए. अपने देश में वैक्सीन बनाने वाली तीनों कंपनीज़ को तीसरे चरण में जाने की अनुमति मिल गई है. मान लीजिए, इनमें से किसी की वैक्सीन अगले दो माह में यदि आ भी जाती है तब भी 135 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में आम जनता तक इसको पहुँचने में न्यूनतम 6 माह और लग जाएंगे और ये तो तब होगा जब वैक्सीन का इतना प्रोडक्शन हो सकेगा! हो सकता है इस प्रक्रिया में एक और साल ही लग जाए!

कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने की राजनीति!

नियम के अनुसार पहले फ्रंट लाइन वर्कर्स, मरीज़ और महत्वपूर्ण व्यक्तियों को यह उपलब्ध होगी. मत भूलिए कि हम जिस देश में रहते हैं वहाँ भूतपूर्व मंत्री, विधायक, सरपंच, छुटभैये नेता, मोहल्ला कमेटी के अध्यक्ष भी अपने-आप को ख़ुदा समझते हैं तो जो वर्तमान में पदासीन हैं उनके रसूख़ का आलम क्या होगा! इन साब लोग के तो घर में जाकर वैक्सीन देना पड़ेगा. फिर इनके चचा, ताऊ, मौसा, फूफ़ा का नंबर लगेगा. वैक्सीन पॉलिटिकस और इसे लेकर बयानबाजी शुरू हो गई है सो अलग! हर बात का राजनीतिकरण कैसे किया जाए, इसके लिए तो हमारे नेताओं को पैसे लेकर आम जनता को क्रैश कोर्स कराना चाहिए. खैर! सरकार को चाहिए कि टीकाकरण की व्यवस्था पर बहुत ध्यान दे क्योंकि जैसे ही वैक्सीन आएगी, तुरंत ही पैसों का खेल शुरू हो जाएगा. और जैसे मंदिर में दर्शनार्थियों की लम्बी क़तार प्रतीक्षा में खड़ी रहती है, वही हाल आम पब्लिक का इधर भी होगा. पैसों के जोर से तथाकथित वी.आई.पी. सीधे मुख्य द्वार पर पहुँच जाएंगे. जनता आश्वासन की चादर ओढ़े, मास्क में मुँह बिसूरती रहेगी. कुल मिलाकर होगा ये कि जब तक वैक्सीन सबको मिलेगी, या मिलने की उम्मीद रहेगी तब तक या तो हममें रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) विकसित हो चुकेगी या फिर हम इससे हार चुके होंगे. 

इम्युनिटी बढ़ाना सबसे अधिक जरुरी है!

कुल मिलाकर बात यह है कि वैक्सीन के आ जाने के बाद भी सब कुछ ऐसा ही रहेगा क्योंकि पूरे देश को इसे मिलने में तीन वर्ष तक भी लग सकते हैं. भूलिए मत, पोलियोमुक्त भारत होने में कितने दशक लगे हैं. तब भी करोड़ों वाहक होंगे इस बीमारी के. हमें उनसे तो बचना होगा न. इसलिए वैक्सीन के इंतजार से कहीं बेहतर है कि हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दें. संतुलित भोजन, योगासन, अच्छी नींद और तनावमुक्त जीवन न केवल कोविड से बल्कि कई अन्य बीमारियों से हमें सुरक्षित रखता है. आवश्यक लगे तो अपने डॉक्टर की सलाह से फ़ूड सप्लीमेंट भी लेना शुरू कीजिए. वैक्सीन आ जाए या आपकी इम्युनिटी बढ़ जाए लेकिन फिर भी मास्क हमारे जीवन का हिस्सा रहने ही वाला है. 'हमें कुछ नहीं होगा!', इस भ्रम से जितना जल्दी बाहर निकल सकते हैं निकल आइए. क्योंकि ऐसे लोग ही कैरियर बनकर दूसरे लोगों को संक्रमित कर रहे हैं.

हमारी सुरक्षा, हमें स्वयं ही करनी है. सामने वाला आपकी नहीं सोचेगा. हर बात में सरकार को दोषी ठहराने से भी जान नहीं बचने वाली. वैसे भी सरकार देश चलाए या आपको यही सिखाती रहे कि "टॉयलेट बनवा लो!, साबुन से हाथ धो लो!, घर के अंदर और बाहर स्वच्छता का ध्यान रखो!, सड़क पर कचरा मत फेंको!, सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान न पहुँचाओ!" हमारी अपनी समझ और जिम्मेदारी भी कुछ बनती है या नहीं? देख लीजिए, क्या चुनना है... ख़तरा या सुरक्षा? क्योंकि वैक्सीन के भरोसे अमरत्व पा लेने का ख़्वाब फिलहाल तो पूरा होने से रहा!
- प्रीति 'अज्ञात'
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बुधवार, 4 नवंबर 2020

भई! जरा महिलाओं का दर्द भी समझिए!

"बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी /तेरी नींद उड़े ते उड़ जाए/ कजरा बहकेगा, गजरा महकेगा" ये वाली बात आनंद बक्षी जी ने लिखकर, बताई. लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जी ने उस पर शानदार ढुलकिया बजाकर और फिर लता जी ने सुमधुर गाकर भी बताई. उसके बाद मुमताज़ जी ने इस पर ग़ज़ब का नृत्य प्रदर्शन भी किया. और ये बात आज की नहीं, हमारे पैदा होने से भी पहले की है पर जिसे नहीं समझना उसे तो भगवान भी न समझा सके है, जी! अब देखिये इसी चक्कर में एक महाशय थाने की परिक्रमा कर आए. आप लोग भी सावधान रहिये, पत्नी जी को शृंगार करने के मौलिक अधिकार से वंचित करेंगे तो उसकी सजा जरुर मिलेगी. बराबर मिलेगी और वो भी इसी जनम में.

ख़बर आई है कि अपने प्यारे उत्तर प्रदेश में एक महिला ने थाने में अपने पति की शिकायत दर्ज करा दी. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें नया क्या है? जी, नया ही नहीं बहुत ही क्रांतिकारी हो गया है. कारण यह  कि उसके पति परमेश्वर, उसे उसकी साड़ी से मैचिंग की लिपस्टिक, बिंदी एवं अन्य वस्तुएं नहीं लेने दे रहे थे. है न हद! अब कुछ लोगों का तो इस बात पर ठहाके लगाने का जी कर रहा होगा. पर भिया, हमारा नहीं कर रहा है. रत्ती भर नहीं कर रहा है. बल्कि हमें तो ये लग रहा कि तत्काल जाकर उस महिला की बलैयाँ लें, उसकी नज़र उतारें और मैडम तुसाद में उसकी मूर्ति लगवाकर पूजें उसे! महिला के इस कदम से ये भी पाठ मिलता है कि नारी सशक्तिकरण के नाम पर ज्ञान बाँटने से अच्छा है कि सीधे उसका प्रदर्शन ही कर दिया जाए. वैसे भी थ्योरी तो भाषण और किताबों में धरी रह जानी है. बात का वज़न तो तभी है जब कुछ प्रैक्टिकल हो. बोलो, है कि नहीं! 

अब बताइये जो अपना घर-बार छोड़, बिना ना-नुकुर करे, पूरे भरोसे के साथ अपना जीवन आपके साथ गुज़ारने चली आई, अगर आप उसकी इत्तू सी मांग भी पूरी न करें तो लानत है जी आप पर! घनघोर एवं कड़ी निंदा के पात्र (कु वाले) हैं आप! मुझे तो उन पुलिसवालों पर भी भीषण गुस्सा आ रहा जिन्होंने इस महिला को समझा बुझाकर घर भेज दिया. आख़िर, क्या गलत कहा हमारी बहिन ने? क्यों न सजे सँवरे वो? अरे, दुष्टों! जरा ये तो बताओ कि उसका ये साज-शृंगार किसके लिए है? आई न शरम? उसके माथे की बिंदिया पे तुम्हारा नाम लिखा है, उसके होठों पे जो गुलाबी मुस्कान है वो तुम्हारे ही नाम से खिली है, वो रुनझुन पायल का जो संगीत है न उसमें तुम्हारी याद साथ चलती है और वो लाल-हरी हाथ भर-भर चूड़ियाँ जब खनकती हैं तो वो तुम्हारे ही प्रेम में लजा दोहरी हो रही होती है.

और ज़नाब! आप तो सुबह के निकले संध्या काल में देव दर्शन देते हैं आपके पीछे वो घर-बार ही नहीं सँभालती बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व भी निभाती है. वो ही है जो आपको इस दुनिया से जोड़े रखती है. चाहे पडोसी के बेटे की शादी हो या कि चाची की बिटिया की गोद भराई; वही बताती है कि कहाँ, क्या देना है. आपका जन्मदिन हो या बच्चों का, वो पूरे साल प्लान करती है. अरे, कोई गिनाने की बात थोड़े न है, आप भी जानते हो कि कई बार तो आपको अपने ही बच्चों की क्लास के सेक्शन भी न पता होते! तो भाईसाब! वो तो सब करे लेकिन जो उसका मौलिक अधिकार है, वो आप उसे न दें! अच्छा! बहुत सही जा रहे हो! अजी, भगवान के लिए तनिक आप भी लजा लिया करो! आज करवा-चौथ पर कितने अरमानों से उसने हाथों में मेहंदी रचाई होगी, सोलह शृंगार कर दुल्हन-सी सजी होगी, दिन भर भूखी-प्यासी रहेगी कि उसके पिया की उम्र लम्बी हो और दोनों का साथ जन्म-जन्मांतर का रहे. और एक आप हैं! न जी, मैचिंग के सामान की तो कोई जरुरत ही ना है!

पुरुषों का तो क्या है! काला, नीला और भूरा..इन तीन रंगों की पेंट में ही ज़िंदगी निकाल लेते हैं. इसी के लाइट शेड की शर्ट या टी-शर्ट ले ली. चलो, ब्लू जींस और जोड़ दो! उनका तो पता भी न लगता कि ये नई है कि बीस साल पुरानी. एक ही तरह के दिखेंगे. सावन हरे न भादों सूखे! अरे, हम स्त्रियों के जीवन में कई समस्याएं हैं. हमें कपड़े डिसाइड करने में ही इतनी माथा-पच्ची करनी होती है. एक तो रिपीट नहीं कर सकते! उस पर ट्रेंडी भी दिखना है, फ़िगर भी चकाचक लगे. अब बड़ी मुश्किल से ये जो ड्रेस फाइनल करी है उसके साथ अटैचमेंट भी तो लगते हैं न! अगर गलती से भी लास्ट मोमेंट उसने दूसरी ड्रेस पहनने की सोच ली तो आप तो न, बस चकरघिन्नी बन मार्केट ही दौड़ते फिरोगे. सराहो अपने भाग्य को कि ऐसी सलीक़ेदार पत्नी मिली है. और ये तो भोली महिला थी जो बस चूड़ी, बिंदी और लिपस्टिक तक ही कहकर रह गई. नेक समझदार होती तो इसमें पर्स, सैंडिल, ताजा ज्वेलरी और जाने क्या-क्या जोड़ देती. फिर तो केस ही पलट जाता, उल्टा आप ही उस पर मानसिक उत्पीड़न का केस दर्ज़ करा रहे होते! तो सौ बात की एक बात ये है जी कि स्त्री है तो सजेगी-सँवरेगी ही, आपकी तरह नहीं कि मुँह उठाया और चल दिए.  
- प्रीति 'अज्ञात'

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