हमें ट्रेन पकड़नी होती है तो आधे घंटे पहले स्टेशन पहुँच जाते हैं। फ्लाइट हो तो दो-तीन घंटे पहले। मूवी देखने जाना हो तो भी पॉपकॉर्न खरीदकर बैठने की गुंजाइश तो रखते ही हैं। कहीं SALE हो तो स्टोर खुलने के आधे घंटे पहले पहुँच जाना अपना फ़र्ज़ समझते हैं। रात 12 बजे यदि नया फ़ोन launch हो रहा हो तो 11.45 से ही log in करके तैयार बैठते हैं लेकिन कहीं जाना हो, किसी को समय दिया हो, कोई कार्यक्रम हो तो एकाध घंटे की देरी को तो कोई गिनता ही नहीं! कार्ड में जो भी नियत समय दिया गया हो, हम अपने दिमाग़ में उसे आधे घंटे खिसकाकर ही सामान्य महसूस कर पाते हैं।
नीचे सौ वर्ष से भी कहीं अधिक पुराना किस्सा साझा कर रही हूँ (यद्यपि यह किस्सा स्वावलम्बन पर है) ...तब और अब में इतनी प्रगति अवश्य हो गई कि अब देर से पहुँचने को 'Indian Time' कहा जाने लगा है। कुछ लोग इस बात पर भी गर्व कर अपनी पीठ थपथपा खींसे निपोरना नहीं भूलते। खीजने वाले खीजते रहें, समय पर पहुँच जाने का शोक़ मनायें या मोबाइल-मोबाइल खेलें! WHO CARES!
- प्रीति 'अज्ञात'
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* एक बार ईश्वर चन्द्र विद्यासागर को इंग्लैंड में एक सभा की अध्यक्षता करनी थी। उनके बारे में यह मशहूर था कि उनका प्रत्येक कार्य घड़ी की सुई के साथ पूर्ण होता है अर्थात् वे समय के बहुत पाबंद थे। वे लोगों से भी यही अपेक्षा रखते थे कि वे अपना कार्य समय पर करें। विद्यासागर जी जब निश्चित समय पर सभा भवन पहुँचे तो उन्होंने देखा कि लोग सभा भवन के बाहर घूम रहे हैं और कोई भी अंदर नहीं बैठा है। जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हें बताया गया कि सफाई कर्मचारियों के न आने के कारण अभी भवन की सफाई नहीं हुई है। यह सुनते ही विद्यासागर जी ने एक क्षण भी बिना गंवाए झाड़ू उठा ली और सफाई कार्य प्रारम्भ कर दिया। उन्हें ऐसा करते देख उपस्थित लोगों ने भी कार्य शुरू कर दिया। देखते ही देखते सभा भवन की सफाई हो गई और सारा फ़र्नीचर यथास्थान लगा दिया गया। जब सभा आरंभ हुई तो ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बोले- "कोई व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र, उसे स्वावलंबी होना चाहिए। अभी आप लोगों ने देखा कि एक-दो व्यक्तियों के न आने से हम सभी परेशान हो रहे थे। संभव है कि उन व्यक्तियों तक इस कार्य की सूचना न पहुँची हो या फिर किसी दिक्कत के कारण वे यहाँ न पहुँच सके हों। क्या ऐसी दशा में आज का कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाता? यदि ऐसा होता तो कितने व्यक्तियों का आज का श्रम और समय व्यर्थ हो जाता।" सार यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वावलंबी होना चाहिए और वक्त पड़ने पर किसी भी कार्य को करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
#ईश्वर_चन्द्र_विद्यासागर
*प्रसंग भारतकोश से साभार
नीचे सौ वर्ष से भी कहीं अधिक पुराना किस्सा साझा कर रही हूँ (यद्यपि यह किस्सा स्वावलम्बन पर है) ...तब और अब में इतनी प्रगति अवश्य हो गई कि अब देर से पहुँचने को 'Indian Time' कहा जाने लगा है। कुछ लोग इस बात पर भी गर्व कर अपनी पीठ थपथपा खींसे निपोरना नहीं भूलते। खीजने वाले खीजते रहें, समय पर पहुँच जाने का शोक़ मनायें या मोबाइल-मोबाइल खेलें! WHO CARES!
- प्रीति 'अज्ञात'
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* एक बार ईश्वर चन्द्र विद्यासागर को इंग्लैंड में एक सभा की अध्यक्षता करनी थी। उनके बारे में यह मशहूर था कि उनका प्रत्येक कार्य घड़ी की सुई के साथ पूर्ण होता है अर्थात् वे समय के बहुत पाबंद थे। वे लोगों से भी यही अपेक्षा रखते थे कि वे अपना कार्य समय पर करें। विद्यासागर जी जब निश्चित समय पर सभा भवन पहुँचे तो उन्होंने देखा कि लोग सभा भवन के बाहर घूम रहे हैं और कोई भी अंदर नहीं बैठा है। जब उन्होंने इसका कारण पूछा तो उन्हें बताया गया कि सफाई कर्मचारियों के न आने के कारण अभी भवन की सफाई नहीं हुई है। यह सुनते ही विद्यासागर जी ने एक क्षण भी बिना गंवाए झाड़ू उठा ली और सफाई कार्य प्रारम्भ कर दिया। उन्हें ऐसा करते देख उपस्थित लोगों ने भी कार्य शुरू कर दिया। देखते ही देखते सभा भवन की सफाई हो गई और सारा फ़र्नीचर यथास्थान लगा दिया गया। जब सभा आरंभ हुई तो ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बोले- "कोई व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र, उसे स्वावलंबी होना चाहिए। अभी आप लोगों ने देखा कि एक-दो व्यक्तियों के न आने से हम सभी परेशान हो रहे थे। संभव है कि उन व्यक्तियों तक इस कार्य की सूचना न पहुँची हो या फिर किसी दिक्कत के कारण वे यहाँ न पहुँच सके हों। क्या ऐसी दशा में आज का कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाता? यदि ऐसा होता तो कितने व्यक्तियों का आज का श्रम और समय व्यर्थ हो जाता।" सार यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वावलंबी होना चाहिए और वक्त पड़ने पर किसी भी कार्य को करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
#ईश्वर_चन्द्र_विद्यासागर
*प्रसंग भारतकोश से साभार