शुक्रवार, 26 जून 2020

सफ़लता को मारिये गोली, पहले असफ़ल होना सीखिए!


बच्चों को हर हाल में ये समझना होगा कि परिवार के लिए उनसे ज्यादा जरुरी कुछ नहीं होता! ये नाम, पैसा, शोहरत किसी के साथ नहीं टिकते, कभी नहीं टिकते फिर इनके पीछे इस हद तक क्यों भागना कि एक दिन इनके बिना जीना ही दूभर लगने लगे!
यदि आप अपनी समस्या बताएंगे नहीं, तो किसी को पता कैसे चलेगा? घर, परिवार, मित्र में से कोई-न -कोई तो अवश्य ही सुनता है, हमेशा सुनता है. ये मानती हूँ कि बहुधा हमारे पास किसी की समस्या का समाधान नहीं होता लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा ये विश्वास रखती हूँ कि कह देने से मनों बोझ हट जाता है दिल से. दुःख की परतें थोड़ी झीनी होने लगती हैं. जीवन उतना कठिन नहीं लगता कि जिया ही न जा सके! ऐसे कैसे आप किसी भी समस्या को जीवन से बड़ा मान लेते हो कि वो न सुलझी तो सब कुछ बेकार है? ख़त्म हो गया है!

जब आप इस दुनिया में अपनी मर्ज़ी से आए नहीं तो आपको कोई हक नहीं कि जाने का रास्ता स्वयं चुनें. वृक्ष में फूल आते हैं, सूख जाते हैं. फल बनते हैं, खा लिए जाते हैं. तो क्या वृक्ष फलना-फूलना बंद कर दे?  वनस्पति तो फिर उगे ही न कभी! प्रकृति में जितनी ख़ूबसूरत चीज़ें हैं, सदियों से सब अपनी जगह हैं. हम मनुष्यों ने इनका सीना चीर दिया है पर वे तब भी हैं...अडिग! पता है क्यों? क्योंकि इन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं होती. इन्होंने देना ही सीखा है, इसीलिए निराशा इनके पास फटकने के बहुत पहले उलटे पाँव लौट जाना ही पसंद करती है. आप वृक्ष बनना सीखिए. 
सपने देखना अच्छी बात है. उसे पूरा करने की कोशिश, उससे भी कहीं अधिक अच्छा. लेकिन जो ये सपने पूरे न हुए तो बिखरना क्यों है?  एक कोशिश और नहीं हो सकती क्या? भूलिए मत कि आप भी किसी का सपना हो सकते हैं.

क़ामयाबी की कहानी उन पुराने लोगों से सुनिए, जिन्होंने अपना घर बनाने में ही पूरा जीवन निकाल दिया. जिन्होंने कभी AC वाला अपना कमरा या हवाई जहाज की यात्रा का ख्व़ाब तक नहीं देखा. वो इसलिए क्योंकि उन्हें अपने पैरों और चादर का माप पता था. उनके लिए आज भी उस वस्तु की अहमियत है जो उन्होंने पाई-पाई जोडकर खरीदी थी. फिर चाहे वो पुराना रेडियो हो या फ्रिज़. आपको भी हर सुविधा की क़ीमत और अहमियत समझनी होगी. रिश्तों का मूल्य समझना होगा. उन लोगों की भावनाओं की क़द्र करनी होगी जो आपसे हृदय से जुड़े हुए हैं. मौत को गले लगाने का निर्णय लेने से पहले एक बार उन्हें गले लगाइए. कुछ भी न महसूस हो तो बात कीजिए उनसे. हद है! ऐसे कैसे सबको छोडकर यकायक चले जाते हैं लोग.

अरे, जिसका जितना जीवन है वो जीता है. परेशानियाँ, संघर्ष, दुःख किसके साथ नहीं चलते? इन्हीं से जूझते, लड़ते, कभी गिरते, कभी उठते, संभलकर चलने का नाम ही तो है ज़िंदगी. इसमें घबराने जैसा क्या है? हिम्मत है तो जीकर दिखाइए और नहीं है तो.....! सीखिए जीना!

सफ़लता को मारिये गोली, पहले असफ़ल होना सीखिए. जीने की राह यहीं से निकलती है. चखिए, हारने का स्वाद! पीजिये खून के घूँट! जी करे तो बाल्टी भर रो लीजिए. मन लगाने के लिए संगीत सुनिए, बागवानी कीजिए, पढ़िए-लिखिए. कुछ भी कीजिए, जो आपको कभी पसंद हुआ करता था पर प्लीज मरने का ख्याल भी न लाइए. जीवटता बनाए रखिए. 

एक बात जो मैं बीते 3 वर्षों से लगातार लिख रही हूँ, फिर कहती हूँ -
 इस समय के बच्चों को भी तमाम मानसिक तनावों से होकर गुज़रना होता है. उनकी छोटी-सी दुनिया में भी कई परेशानियाँ होती हैं. उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए यह बेहद आवश्यक है कि उम्र के हर दौर में उनके पास ऐसे कुछ नाम ज़रूर हों; जिनके बारे में वो निश्चिन्त होकर सोच सकें कि "हाँ, ये वे लोग हैं जिनसे मैं अपनी कोई भी समस्या कभी भी साझा कर सकता/ सकती  हूँ. जो किसी भी निर्णय को मुझ पर थोपेंगे नहीं और मेरी बात ध्यान से सुनेंगे, समझेंगे." यह काम परिवार के सदस्यों से बेहतर और कोई भी नहीं कर सकता क्योंकि यही वे लोग हैं जिनके साथ बच्चा सर्वाधिक समय व्यतीत करता है. अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं और धन के पीछे भागती दुनिया में यदि कहीं कुछ पीछे छूट रहा है तो वह बचपन ही है. वही बचपन, जो समय की माँग करता है! स्वयं को सुने जाने की गुज़ारिश करता है. कहते हैं, इंसान के पास जो घर में नहीं होता, वह उसी की खोज में बाहर जुटा रहता है. कितना अच्छा हो कि बच्चों को सबसे पहले यह बतला दिया जाए कि हम उनके 'सपोर्ट सिस्टम' हैं और वे जीवन की किसी भी रेस में जीतें या हारें, हर चिंता को छोड़ अपनी परेशानियों में आँख मूंदकर सीधे हमारे पास चले आयें, बेझिझक अपनी बात कहें! न केवल परिवार अपितु एक सकारात्मक समाज के लिए भी यह विश्वास और जुड़ाव अत्यावश्यक है.
 
बच्चे ही क्यों, हम सभी को ये प्रश्न अपने-आप से करना चाहिए और इनके उत्तर भी कंठस्थ होने चाहिए कि हमारे जीवन में ऐसे कितने 'अपने' हैं? क्या हम अपने घनिष्ठ मित्रों के संपर्क में हैं? ऐसे कितने नाम हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता है? उनसे अपनी मुश्किल साझा की जा सकती है? कौन हैं वे लोग जो हमारी बात सुनने या समाधान ढूँढने से पहले घड़ी नहीं देखेंगें और न ही समयाभाव का रोना रो अनायास विलुप्त हो जायेंगे? सोचना होगा, जब हर तरफ निराशा हो और आपका मन उदास...तो कौन है, जो ख़ुद बढ़कर आपको थाम लेगा? यदि ऐसा एक भी नाम न निकला तो विचारणीय है कि क्या कमाया? क्या जिया? क्या पाया? लेकिन हार तो तब भी नहीं माननी है.
 
हमें न केवल हमारे बच्चों का 'सपोर्ट सिस्टम' बनना है बल्कि उन्हें यह भी सिखाना है कि वे स्वयं कैसे दूसरों के जीवन में यही रोल प्ले कर कई मुस्कुराहटें उगा सकते हैं. हारते इंसानों का हौसला बन उनके जीने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं. निराशा की स्याह रात में उम्मीदों के असंख्य दीप जला सकते हैं.
'आत्महत्या' धोखा है, सारे रिश्तों के साथ.
परी सी लड़की कि छूने भर से ही मैली हो जाए. एक टिक टॉक स्टार, लाखों फॉलोअर्स  ....बस एक दिन कह गई, अलविदा! 
सिया, अभी तो जीवन शुरू हुआ था. यूँ हारना नहीं था तुम्हें! 
 -प्रीति 'अज्ञात' 
#Suicide  #Siya_kakkar #Depression #Tiktok_star 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 27 जून 2020 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.com
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. आपके द्वारा दी गई जानकारी पढने के बाद बहुत अफसोस हुआ ऐसी घटनाये आखिर कब तक होती रहेगी बहुत दुख कि बात है

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