शनिवार, 19 सितंबर 2020

#चाँद_और_सूरज

 


रात भर पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभाता चाँद, जब सुबह उबासियाँ लेते हुए चाय की एक प्याली तलाश करता है तो पहाड़ी के पीछे से अंगड़ाइयों को तोड़ते हुए सूरज बाबू आ धमकते हैं. उसे देख जैसे चाँद की सारी थकान ही मिट जाती है, चेहरा तसल्ली से खिल उठता है! क्यों न हो, आख़िर सूरज की चमक से ही तो चाँद की रोशनी है! 

उधर शाम को निढाल सूरज नदी में उतरते हुए, हौले से चाँद को देखता है. दोनों मुस्कुराते हैं. उसे विश्राम कक्ष में जाता देख, चाँद आकाश की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है और सारे सितारे भी दौड़कर उसकी गोदी में आ झूलने लगते हैं. 
सप्तऋषि साक्षी हैं इस बात के कि सूरज दूर होता ही नहीं कभी! वह तो उस समय भी नींद आँखों में भर, चाँद को ख़्वाब में देख अपनी पहली मुलाक़ात याद कर रहा होता है, जब यूँ ही एक दिन घर लौटते हुए वो चाँद से टकरा गया था. वो शैतान मन-ही-मन आज फिर सोचता है कि कल फिर चाँद को इसी बात पर चिढ़ाएगा कि "देखो, पहले मैंने ही तुम्हें सुप्रभात बोला था". 

मैं रोज़ ही शाम को छत पर टहलते हुए नीली विस्तृत चादर पर उनकी ये तमाम अठखेलियाँ देखती हूँ तो उन्हें एक ही रंग में डूबा पाती हूँ. उन दोनों के इस प्रेम को देखती हूँ, उनके सुर्ख़ गालों पर पड़े डिम्पल को देखती हूँ, एक-दूसरे की परवाह देखती हूँ. विदा न कहने की इच्छा होते हुए भी गले लग विदाई करता देखती हूँ और तुम्हें बेहद याद करती हूँ. 
-प्रीति 'अज्ञात'
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