शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

Merry Christmas!

 



कहने को क्रिसमस भले ही ईसाई धर्म से जुड़ा  त्योहार है लेकिन दुनिया भर के बच्चे इससे कनेक्ट करते हैं. उन्हें पता है कि आज के दिन सैंटा क्लॉज आकर न केवल उन्हें चॉकलेट देते हैं बल्कि उनकी बहुत सारी wishes भी पूरी करते हैं. आप किसी बच्चे से पूछो कि तुम्हें क्या चाहिए तो सबसे पहले वो चॉकलेट ही बोलेगा. बच्चों की अपनी जितनी छोटी सी दुनिया है, उसमें पलती wishes भी उतनी ही मासूम हैं. वो सामने वाले की उम्र, पद, हैसियत के आधार पर अपनी इच्छाओं का गुणन नहीं बैठाते बल्कि अपने दिल की ही बात कहते हैं. ईश्वर करे, उनकी ये निश्छलता बनी रहे और सैंटा क्लॉज पर भरोसा भी. 

 

"दुनिया अब भी ख़ूबसूरत है", ये भरोसा हमें हमारे पेरेंट्स ने दिया और हमने हमारे बच्चों को. अब समय बदला है और बच्चों को पता चल चुका है कि सुबह तकिए के पास रखी चॉकलेट और उपहार मम्मी पापा ही रखते हैं. अचानक आया वो 'मैरी क्रिसमस' वाला केक उनके सबसे प्यारे दोस्त ने ही चुपके से भिजवाया है और दरवाजे पर चमचमाती नई साइकिल ददिहाल- ननिहाल से ही आई है.

 

"जिंगल बेल, जिंगल बेल, जिंगल आल द वे....." सुनते ही मन चहकने लगता है और यूँ महसूस होता है जैसे दरवाजे पर दस्तक़ होने ही वाली है और उस लाल सफ़ेद पोटली को लिए, उन्हीं रंगों से सजे वस्त्र धारण किये, टोपी पहने कोई देवदूत बस अब हो हो कर हँसने ही वाला है. 

आपकी जानकारी के लिए एक बात बता दूँ. मैंने कहीं पढ़ा था कि जिंगल बेल,  क्रिसमस गीत न होकरथैंक्सगिविंग गीत है जिसे डेढ़ सौ से भी अधिक वर्ष पहले जार्जिया के म्यूजिक डायरेक्टर जेम्स पियरपॉन्ट ने संगीत ग्रुप के लिए लिखा था. उन्होंने इसे 'वन हॉर्स ओपन स्ले' शीर्षक से लिखा था. पर थैंक्सगिविंग गीत है, तो भी क्या! गर कोई अपनी ख़्वाहिशों के आसमान में चाँद-तारे टांकने को इसे गुनगुना लिया करता है! ये गीत, उम्मीद देता है और इसे हर दिन गाया जाना चाहिए. 

 

बच्चों के साथ, क्रिसमस ट्री’ को सजाना मुझे आज भी अच्छा लगता है.  यूँ भी मेरा मानना है कि वक़्त कितना भी बदल जाए, हम कितने ही समझदार क्यों न हो जाएं, घर कितने ही साजो- सामान से क्यों न भर लें! पर एक सैंटा क्लॉज की दरकार तब भी है, वो सरप्राइज़ सबको चाहिए. किसी भी उम्र में ये अब भी उतना ही अच्छा लगता है और इसके लिए जरूरी है कि हम भी किसी न किसी के सैंटा क्लॉज बनें.  

Merry Christmas!

-    प्रीति ‘अज्ञात’

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