गुरुवार, 22 जुलाई 2021

मन दौड़ने लगता है....

बीते समय में एक ज्ञान हमने बहुत अच्छे से ले लिया है कि जब तक किसी बात को कहने के लिए दिल स्वयं राजी न हो, जुबां पे ताला लगाकर रखना चाहिए. बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देने से लेने के देने पड़ जाते हैं. यूँ तो इस संदर्भ से जुड़े कई किस्से हैं लेकिन अभी आपको ताजातरीन घटना सुनाती हूँ. 
एक दिन रफ़ी साब की बात चल रही थी. चर्चा में पूरी तरह सहभागिता दर्शाते हुए हमने आगे होकर कह दिया कि किशोर और रफ़ी का कोई मुक़ाबला ही नहीं! गायन के मामले में मोहम्मद रफ़ी का अंदाज़ तो अद्भुत है ही, लेकिन किशोर दा भी कहीं उन्नीस नहीं ठहरते जबकि उन्होंने तो संगीत की विधिवत शिक्षा भी नहीं ली है. अब शायद तब हमारी बुद्धि ही भ्रष्ट हो चली थी जो हमने इसमें एक पंक्ति और जोड़ दी कि 'मुकेश मुझे उनसे कम पसंद हैं." मेरा यह मानना है कि जब कोई 'कम पसंद' कहता है तो वह उस इंसान की आलोचना नहीं कर रहा होता बल्कि अपना रुझान बताना चाहता है. लेकिन मित्रों के सामने इतनी आसानी से कोई बात कह बचकर निकल जाओ तो लानत है ऐसी मित्रता पर! 
रफ़ी-किशोर की प्रशंसा तत्काल समाप्त करके मित्र की सुई मुकेश पर अटक गई. उन्होंने हमारी बात को सुन तुरंत ही जिस टोन में 'अच्छा!' कहा, हम समझ गए कि "अबकी कुल्हाड़ी पर सीधे ही पैर मार लिया है हमने, बचना मुश्किल है". उनकी खतरनाक मुखमुद्रा देख हमें अपनी गलती का जरूरत से ज्यादा ही एहसास हो गया था. सच्चाई यह है कि मुकेश ने राज कपूर जी के जितने भी गाने गाए हैं, हमने जमकर सुने हैं और सदैव दिल से उनके प्रशंसक रहे हैं. इसके अलावा भी बेशुमार बेहतरीन गीत हैं उनके. 

तो हमने बात संभालते हुए कहा, "अरे! मेरा ये मतलब नहीं था. राज कपूर जी की तो आवाज़ थे वे. आवारा, श्री 420, संगम, मेरा नाम जोकर, अनाड़ी और कितनी ही अनगिनत फ़िल्मों का पार्श्वगायन उन्होंने किया है. जिस देश में गंगा बहती है का 'होठों पे सच्चाई रहती है' गीत तो हम भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि गीत मानते हैं. 
तुमको क्या पता, जब हमको प्रेम हुआ था न तो हमने अपने प्रेमी को सबसे पहले यही गीत सुनाया था, "खयालों में किसी के, इस तरह आया नहीं करते" और चिट्ठी लिखकर हम दोनों ने परस्पर "फूल तुम्हें भेजा है खत में" भी गुनगुनाया था. सावन के महीने में पवन ने उन दिनों भी खूब सोर किया था. हमारे नसीब में बिछोह था जिसके कारण रो-रोकर "छोड़ गए बालम, हमें हाय अकेला छोड़ गए" का सहारा भी हमने लिया ही है". 

हमारे दुख को दरकिनार कर मित्र ने दूसरी गोली दागी. "राज कपूर जी की तो आवाज़ थे वे!!!" ये कहकर आप क्या सिद्ध करना चाह रही हैं? दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ तक सबको सुपरहिट गाने दिए हैं उन्होंने". अब हम समझ गए कि उन्होंने हमारी बात सीधे दिल पर ले ली है, समझाने का कोई फायदा नहीं! हाथ जोड़कर शब्द वापिस लेना ही एकमात्र उपाय बचता है. शर्मिंदगी में सिर को जमीन में गाड़ते हुए भरे गले से हमने कहा कि 'हाँ, दिल तड़प तड़प के कह रहा है आ भी जा', 'कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है', 'मैं पल दो पल का शायर हूँ, मुझे भी बेहद प्रिय हैं. उन्होंने तो मनोज कुमार, संजीव कुमार, राजेश खन्ना सबके लिए शानदार गाया है. 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए', 'महबूब मेरे', 'धीरे-धीरे बोल कोई सुन न ले', 'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे', 'इक प्यार का नगमा है','सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं', 'चल अकेला' और ऐसे ही शानदार सैकड़ों गीत उनके खाते में हैं. तभी तो उनकी आवाज़ को 'गोल्डन वॉयस' कहा जाता है". हमने उनकी जानकारी में इज़ाफ़ा कर रिरियाते हुए अपनी खिसियाहट दूर करने की एक और नाकाम कोशिश की. 

खैर! दिल का मामला था और वो भी संगीत से जुड़ा. दोनों पक्षों का भावुक होना स्वाभाविक था.  हम मौन होकर 'दोस्त दोस्त न रहा', 'सजन रे झूठ मत बोलो', 'सजनवा बैरी हो गए हमार' जैसे दर्द भरे नगमों में डूब गए. उस दिन इतने गहरे दुख और सदमे में चले गए थे कि स्वयं ईश्वर ने आकर हमारी स्मृति से सभी गायकों को विलुप्त कर केवल मुकेश को छोड़ दिया था. हम तबसे यही सिद्ध करे जा रहे हैं कि वे मेरे भी प्रिय गायक हैं. 
लेकिन सच तो ये है कि हम उन्हें दीवानों की तरह चाहते हैं. हमारे दुख को उन्होंने अल्फ़ाज़ दिए हैं. 'वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते', 'दीवानों से ये मत पूछो', 'मुझको इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो' ने हमारे आँसुओं को खूब कांधा दिया है. 
उस दिन जरूर हम, अपनी बात हम ठीक से रख नहीं पाए थे, इसलिए मित्र की नाराज़गी छलक पड़ी. बाद में उनको हमने ग्रुप छोड़ते हुए 'हम छोड़ चले हैं महफ़िल को, याद आए कभी तो मत रोना' गीत व्हाट्स एप कर दिया था.  जिस पर उन्होंने सहृदयता दिखाते हुए हमें मुस्कान वाला इमोजी भेजा था. 

लेकिन मुकेश जी, आप तक हमारा प्यार पहुँचे. सैकड़ों गीतों के साथ-साथ, आपके लंदन अल्बर्ट हॉल वाले कार्यक्रम का कैसेट भी था घर में, जिसे सुनकर हम बड़े हुए हैं. पता नहीं कैसा जादू है आपकी गायकी में कि हजारों बार सुनकर भी जी नहीं भरता! आपके गीत इतना चलाते थे कि कई बार कैसेट की रील उलझ जाती. फिर जैसे-तैसे उसमें पेंसिल फंसा धीरे-धीरे घुमाते और ठीक करके ही दम लेते थे. जब तक ठीक न होता, मुँह लटका ही रहता था. 
आप सबके प्रिय गायक हैं और हमेशा रहेंगे. मन टेप रिकॉर्डर और कैसेट के जमाने की स्मृतियों के पन्ने पलट रहा है. एक बार फिर रजनीगंधा महक रहा है. आप मन के भीतर उतर आए हैं, रील गोल गोल घूमने लगी है -
कई बार यूँ भी देखा है
ये जो मन की सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
अन्जानी प्यास के पीछे
अन्जानी आस के पीछे
मन दौड़ने लगता है....  
- प्रीति अज्ञात 
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9 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा प्रीति दी कि कभी कभी सहज रुइप से कही गई बात भी अगले इंसान के दिल पर चोट कर जाती है। इसलिए बहुत सोच समझ कर बोलना पड़ता है।

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  2. सुरों के जादूगर को की पुन्य स्मृति को सादर नमन |बढिया आलेख |

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  3. जुलाई में आकर अगस्त में जाने वाले फनकार को याद करते आपके आलेख के बहाने ...
    "जाने कहाँ गए वो दिन (?) ..." (मेरा नाम जोकर) और "दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ (?) ..." (पुष्पांजली) - जैसे दो अहम सवाल .. मुकेश जी उर्फ़ मुकेश चंद माथुर जी से .. उन्हीं की अमर रेशमी आवाज़ों में .. बस यूँ ही ...

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