बीते कई वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है कि भिया का जन्मदिन आया और हमने उन्हें विश नहीं किया। यूँ तो हमारी शुभकामनाओं से उन्हें अंतर भी क्या पड़ना है! कौन सा वो उन तक पहुँचती ही रही हैं! उन्हें तो ये भी कहाँ पता होगा कि बचपन से लेकर आज तक यदि हम किसी हीरो की बुराई सुनकर दुनिया से भिड़ गए हैं तो वो अमिताभ ही हैं। इधर किसी ने उनके बारे में कुछ गलत कहा और हम कमर कसके बिना लट्ठ, युद्ध के लिए तैयार हो जाते।
सामने वाले से तुरंत ही उनकी भाषा, व्यवहार, व्यक्तित्व, संतुलित-अनुशासित जीवन, कर्मठता की तमाम कहानियाँ और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के लिए किये गए कार्यों की सूची लेकर लड़ बैठते। अभिनय के मामले में तो कोई क्या ही कहेगा उनके बारे में। 50 वर्षों से जो व्यक्ति निरंतर काम कर रहा है। टीवी और फ़िल्मों का सरताज़ बना बैठा है। उसे नमन कर, उससे केवल प्रेरणा ली जा सकती है पर उसने भारतीय फ़िल्म उद्योग को क्या दिया है, इस पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता।
अब अमिताभ बच्चन जैसा तो बना ही नहीं जा सकता! दूसरा कोई अमिताभ न हुआ है और न हो सकता है। होने की जरूरत भी क्या है! गायकी में जो लता हैं, खेल के मैदान में जो सचिन हैं, आसमान में जैसे सूरज-चाँद हैं वैसे ही अपने भिया भी हैं। सबसे अनोखे, अलबेले, हँसाने-रुलाने वाले, जिन्हें नाचना न आता हो, उनको भी नचाने वाले। पाषाण हृदय को संवेदना से भर देने वाले, उदासी भरे दिल में उम्मीद की मुस्कान भरने वाले, जुझारूपन से हर लक्ष्य को हासिल करने वाले! दुनिया को ये सिखाने वाले कि अदाएं कॉपी नहीं की जातीं, स्वयं बनानी होती हैं। प्रेरणा की कोई मूरत होती तो उसकी शक्ल अमिताभ से हूबहू मिलती।
ये अपने भिया ही हैं जिनके कारण हमें फ़िल्मों से बेशुमार मोहब्बत हुई। ये भी सीखा कि अपने-आप पर और अपनी मेहनत पर भरोसा कैसे किया जाता है! बोलने का सलीक़ा क्या होता है! भाषा का सबसे सुंदर रूप कैसा होता है! लोग चाहे लाख आरोप लगाएं, आपकी चुप्पी उन पर हमेशा भारी क्यों पड़ती है। आखिर व्यक्ति के स्थान पर जब उसका काम बोले, तो दुनिया झुकती ही है। अमिताभ के सामने भी झुकी।
बॉलीवुड के अमित जी वही शख्स हैं, जिनके कारण हमने ब्लॉग-लेखन शुरू किया क्योंकि कहीं पढ़ा था कि वे ब्लॉग लिखते हैं। हमें तो पहले ब्लॉग का अर्थ भी नहीं पता था। उससे पहले हम डायरी लिखा करती थे। कविता-शविता भी लिख लिया करते थे। मन में विचारों की खूब रेलमपेल चलती तो नोटबुक में कूचुर-पुचुर लिख लेते। लो जी, हो गई जय राम जी की।
जिस दिन भिया के ब्लॉग का मालूम हुआ, अपन ने भी ब्लॉग बनाया। उस समय तो निपट अनाड़ी थे, ऑनलाइन कुछ भी करना नहीं आता था। 2010 में जैसे-तैसे लैपटॉप ऑन करना सीखे थे। अब भी कोई बहुत खिलाड़ी नहीं बन गए हैं पर हिम्मत नहीं हारते हैं। हाँ, खुद पर झुँझलाते जरूर हैं। ज़्यादा दुखी हुए तो तनिक रो लिए और फिर उठ खड़े हुए।
अब आप इसे फ़िल्मों का असर समझिए, हमारा उनके प्रति दीवानापन या कुछ और पर हमने हमारे इस हीरो से बहुत सीखा है। और सीखना तो अच्छा ही होता है न!
इस बार 'कमला पसंद' के विज्ञापन में उन्हें देखकर हम बेहद आहत थे। कुछ भी कहते-सुनते नहीं बन रहा था। कंपनी कुछ भी कहकर विज्ञापन करवा ले पर सब जानते हैं कि बात तो पान-मसाले की ही हो रही। पहली बार हमारे प्रिय कलाकार के एक निर्णय से हम निराश थे। मन को समझाया कि अंततः वे एक कलाकार हैं और इस निर्णय के पीछे आर्थिक आधार भी हो सकता है। लेकिन गलत तो गलत ही है फिर भी। यह भी लग रहा था कि उनके विरोधियों को उन्हें बहुत कुछ कहने का अवसर मिल गया। हम तो अब क्या ही बोलेंगे, किसी से उनके लिए क्या ही लड़ सकेंगे! परेशान तो हम खुद इतने थे कि इतने दिनों से इस विषय पर कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था। दुख भी था और गुस्सा भी बहुत आ रहा था। सो, हमने उन्हें विश किया ही नहीं! हालाँकि भीतर से बहुत खराब भी लगता रहा।
ये जानते हुए भी कि उन्हें कौन सा हमारी शुभकामनाओं के मिलने- न मिलने का फ़र्क़ पड़ने वाला है, अपने-आप के इस व्यवहार से थोड़ा मलाल भी रहा।
दिन इसी ऊहापोह में गुज़रा और थोड़ा व्यस्त भी रहा। लेकिन अभी आधा घंटे पहले पढ़ी एक खबर ने दिल खुश कर दिया है। पता चला है कि जब अमिताभ उस ब्रांड से जुड़े थे, तो उन्हें नहीं पता था कि वह भी सरोगेट एडवर्टाइज़िंग के अंतर्गत आता है। फ़िलहाल भिया ने उस ब्रांड के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट समाप्त कर दिया है एवं प्रमोशन के लिए मिले पैसे भी लौटा दिए हैं। अब आप इसे कमलानापसंद कहिए जी!
अमित जी, ये खबर खुशी की लहर लेकर आई है। आपने हमारे जैसे करोड़ों प्रशंसकों की लाज रख ली! थोड़ी देर से ही सही, पर आपको जन्मदिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं!
आप शतायु हों!
आप न पढ़ें, कोई गम नहीं! लेकिन अब दिल को बहुत हल्का महसूस हो रहा।
- प्रीति 'अज्ञात'
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सराहनीय प्रस्तुति
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