#प्रसंगवश
सम्मेद शिखर जी के पर्यटन स्थल बनाए जाने की योजना के विरोध के बाद, कल जो निर्णय सामने आया उससे सभी प्रसन्न हैं। यह हर्ष, स्वाभाविक है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से यह सीख भी ले लेनी चाहिए कि यदि आप सत्य के साथ खड़े होकर अपनी बात को सभ्य, अहिंसक तरीके से रखते हैं, तो वह अवश्य सुनी जाती है एवं परिणाम भी प्रायः सुखद होते हैं। हर धर्म इसी प्रेम भावना से ही तो जीवन जीने की बात करता है। यही बुद्ध ने भी कहा और गांधी जी ने भी। इसमें कुछ नया नहीं, बस हृदय से पालन करने की बात है।
वे जो अपनी बात मनवाने के लिए या धर्म की रक्षा का ढोंग कर तोड़फोड़, आगजनी और दंगे पर उतर आते हैं, राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं, अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं इन सबको चिह्नित करते चलिए। क्योंकि ये सब कुछ हो सकते हैं पर इनका धर्म/ आस्था या देशप्रेम से दूर-दूर का नाता नहीं। अतः इन अराजक तत्वों पर ध्यान देना एवं उनसे प्रभावित होना बंद कीजिए। क्योंकि बेहतर समाज की स्थापना एवं देश की प्रगति में सबसे बड़ा रोड़ा यही लोग हैं।
धर्म आपको शुद्ध करता है, समाज को बेहतर बनाने की प्रेरणा देता है, सकारात्मकता की ओर ले चलता है। यह सबका मान करना भी सिखाता है। हृदय को इतना पवित्र बना देता है कि द्वेष, ईर्ष्या या कोई भी कलुषित, नकारात्मक भाव आपके पास फटके तक नहीं। धार्मिक स्थलों पर जाकर जिस असीम शांति और ऊर्जा का अनुभव होता है, वह इसी उत्तम भाव से उपजती है।
यह जरूरी है कि हम सदा याद रखें कि किसी धर्म के सम्मान के लिए, उसी में जन्मना आवश्यक नहीं होता! और यह भी कि धर्म की रक्षा के लिए आक्रोश की कोई आवश्यकता नहीं होती। यह हमारे इस दुनिया में आने से पहले भी सुरक्षित था और जाने के बाद भी रहेगा। धर्म तो संयम सिखाता है। यदि हम आहत होने के नाम पर क्रोध में आ जाते हैं तो इसके संस्कार की प्रथम सीढ़ी पर ही ढेर हो चुके हैं। इस समय घोषित आस्था, कोरे दिखावे से अधिक कुछ नहीं होती और केवल किसी से हिसाब बराबर करने के उद्देश्य से प्रदर्शित की जाती है। जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं वे यह भी मानते हैं कि सर्वशक्तिमान सब देख रहा है। तो उसे शांति से अपना काम करने दीजिए और हम अपना करें। हमें मनुष्य रूप में इस धरती पर भेजा गया है। यक़ीन मानिए यदि हम अपने मानव रूपी संस्कारों को सुरक्षित रखेंगे तो यह दुनिया बेहद सुंदर हो जाएगी। हम स्वयं और आने वाली पीढ़ियों के लिए यही स्वप्न तो साकार होने देना चाहते हैं न!
- प्रीति अज्ञात
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शानदार अभिव्यक्ति
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