कहाँ तो रोशनी के लिए बल्ब के स्विच को ऑन करने के लिए उठना पड़ता था, अब लेटे-लेटे ही अलेक्सा को कह दिया जाता है। घर से बाहर निकलो तो पूरे शहर का नक्शा एक क्लिक पर साथ चलता है। जिस रास्ते को समझने के लिए दसियों जगह रुकना होता था, अब जीपीएस से पल भर में ज्ञात हो जाता है। यह वही विज्ञान है जिसने हमारी सुख-सुविधा हेतु वह सब बनाकर दिया जिसने मनुष्य का जीना अत्यंत सरल कर दिया, लेकिन ध्यातव्य हो कि घातक हथियार और परमाणु बम भी यही बनाता है। अब उससे रक्षा होगी या विध्वंस, यह प्रयोग करने वाले पर निर्भर करता है। तात्पर्य यह कि चमत्कार का प्रयोग कैसे किया जाता है, यह प्रयोगकर्ता की विचारधारा, बुद्धि और मानसिकता पर आधारित है। विज्ञान का काम तो सदा सृजन ही है, इसलिए इसने सब कुछ कल्याणकारी ही किया। यही कारण है कि किसी को बरगलाने का कार्य इससे न हुआ। किसी वैज्ञानिक ने स्वयं को ईश्वर के समकक्ष न रखा बल्कि खुलकर अपनी खोज की विधि बताई और सिद्धांत भी प्रतिपादित कर दिया जिससे आने वाले समय में उससे मार्गदर्शन भी प्राप्त हो सके।
कुल मिलाकर विज्ञान, विकास का पूर्णतः पक्षधर है और ईमानदारी तथा स्पष्टवादिता इसका सर्वश्रेष्ठ गुण है। कहीं कोई प्रयोग गलत भी हुआ तो कुछ वर्षों बाद किसी अन्य वैज्ञानिक द्वारा उसका संशोधित रूप भी हृदय से स्वीकार हुआ। लैमार्कवाद के ‘उपार्जित लक्षणों की वंशागति के सिद्धांत’ में कमी लगी तो सहज भाव से डार्विन के ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ को माना जाने लगा क्योंकि उसके तर्कों से सहमति बनी।
अतिशय चमत्कारी होते हुए भी विज्ञान, भ्रम और माया से स्वयं को कोसों दूर रखता है। दुर्भाग्य यह कि जब भी संकीर्णता, कुंठा और स्वयं को महाशक्तिमान समझने वाले व्यक्तियों के हाथ यह लगा, इसने विध्वंस ही किया। अध्यात्म भी ठीक ऐसा ही सृजनकारी है, यह आपको सत्कर्म एवं शांति की ओर प्रेरित करता है। गहराई से इसमें उतरो तो चमत्कार और गलत हाथों में गया तो कोरा ढोंग और शोर ही बनकर रह जाएगा।
ध्यान से देखें तो विज्ञान और अध्यात्म की दुनिया एक ही हैं। दोनों ही मानव कल्याण के पक्षधर हैं। ये परस्पर विरोधी नहीं अपितु सच्चे साथी हैं। एक आपको बाहरी दुनिया से जोड़ता है और दूसरा भीतरी अंतरात्मा तक ले जाता है। दोनों ही तार्किक ज्ञान की ऊर्जा से संचालित होते हैं। इनका लक्ष्य भी एक ही है, मानव का भौतिक और आत्मिक सुख। दोनों ज्ञान के रास्ते से बढ़ते हैं और परम की ओर ले जाते हैं। परंतु जब भी ये निम्न मानसिकता और संकीर्णता में घिर स्वार्थी हुए, मानो विनाश की रूपरेखा तय हुई। फिर उस मार्ग पर सुख के सारे द्वार बंद हो जाते हैं और उससे उत्पन्न हुआ अंतर्द्वंद्व एवं कोलाहल सब कुछ नष्ट कर देता है।
यही कारण है कि जब हम विज्ञान और अध्यात्म को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर उनकी सच्चाई परखने लगते हैं, तब परेशानी उत्पन्न होती है। जबकि उद्देश्य की दृष्टि से ये दोनों ही आपको सकारात्मक जीवन की ओर ले जाते हैं। यद्यपि उत्तम परिणाम और विकास के लिए आवश्यक है कि इनका प्रयोग करने वालों के हृदय में कोई खोट न हो अर्थात उनकी नीयत साफ़ और राजनीति से परे हो। इसे उनकी भाषा और व्यवहार से स्पष्टतः समझा जा सकता है।
सार यह कि विज्ञान हो या अध्यात्म, इसी दुनिया में पनपे और हमारी सुख शांति इनके संतुलन में ही निहित है। जो इस संतुलन में अड़चन लाए या अनर्गल तथ्य फैला वातावरण को अशांत करने का प्रयास करे, उसे संदेहास्पद और मानवता का दुश्मन समझिए।
एक बात और कि कोई बाबा को माने या विज्ञान को, यह मलीन राजनीति का विषय क़तई नहीं है। बल्कि दोनों ही स्थितियों में यह व्यक्ति विशेष की पसंद, श्रद्धा, विश्वास और अटूट आस्था का नितांत व्यक्तिगत मसला है। इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर दिन-रात उछाला जाएगा तो राजनीतिक हित भले ही सध जाए लेकिन इसकी आड़ में कई ढोंगियों को प्रश्रय मिल जाएगा और देश के विकास की गाड़ी एक स्टेशन पीछे चली जाएगी। यूँ भी देश में कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो ध्यानाकर्षण की बाट जोह रहे।
चलते-चलते: फरवरी माह में हम ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाते हैं। इस वर्ष का विषय है- वैश्विक खुशहाली के लिए विज्ञान। उद्देश्य है वैश्विक संदर्भ में जागरूकता पैदा कर, वैश्विक एकीकरण का अवसर प्रदान करना। जब उद्देश्य इतना विशाल है तो युद्ध के साये में जीती इस दुनिया को भी ‘मेरा तेरा महान’ की गलियों से बाहर निकल प्रेम और सभ्यता से साथ चलना सीख लेना चाहिए।
प्रीति अज्ञात
'हस्ताक्षर' फरवरी 2023 में प्रकाशित संपादकीय -
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