हाल ही में एक ट्वीट देखने को मिला जिसमें एक महिला ने अपने दामाद के लिए 67 आंध्र व्यंजनों के साथ लंच तैयार किया है. इसमें स्वागत पेय( welcome drink), स्टार्टर, चाट, मेन कोर्स और स्वीट्स शामिल हैं! निश्चित रूप से इसमें एक माँ का, अपनी बेटी और दामाद के लिए विशुद्ध प्रेम और ममता से भरा भाव ही है और कुछ नहीं. भारतीय समाज में सास और दामाद का रिश्ता बहुत मधुर भी होता है (कम से कम सास की ओर से तो होता ही है).
अब इसका एक अन्य पक्ष भी है और कई बार युवक ससुराल जाने के नाम से ही घबराते हैं. जो कारण हैं न, उसके साक्षी आप भी कभी-न-कभी जरूर ही रहे होंगे.
अब आपको भले ही अतिश्योक्ति लगे पर हमारे समाज में दामाद को ईश्वर तुल्य ही मान लिया गया है. वह घर का सदस्य होते हुए भी सदैव विशिष्ट अतिथि के पद पर मनोनीत रहता है. यही वह प्राणी भी है जिसकी उपस्थिति में घर का सबसे रोशन चिराग़ स्वयं को उपेक्षित, तिरस्कृत और सेवक महसूस करता है. बेटा तो लात भी खाता ही है. ख़ैर! अब साले साहब बने हैं तो ये उनका नैतिक कर्तव्य है कि जीजू की सेवा सुश्रुषा में कोई कमी न रह जाए. 'जिनके आगे जी, जिनके पीछे जी' के सामने खिलखिलाने और वातावरण को सुरमई बनाए रखने में साली की भूमिका भी अहम होती है. ये वही देवी हैं जो बारात के आने पर सबसे अधिक चहकती हैं और 'जूता चुराई' के समय इक्कीस हजार से शुरू कर इक्कीस सौ (कभी-कभी 500 पर भी) पर समझौता कर लेती हैं. दरअसल विवाह पद्धति में ये सब परम्पराएँ बनी ही इसलिए हैं कि दो अज़नबी परिवारों में स्नेह और सौहार्द्र के भाव पनपें और आगे जाकर एक अटूट, प्रगाढ़ रिश्ता बने.
होता क्या है कि जैसे बहू गृहप्रवेश के साथ ही पूरा घर सँभालने लगती है, इसके ठीक उलट दामाद जी के चरण पड़ते ही पूरा घर उन्हें सँभालने लगता है. परिजन स्वागतातुर हो उनकी राहों में फूल बिछा दिया करते हैं. प्रबल प्रेम पक्ष तो अपनी जगह है ही लेकिन कहीं एक भय भी रहता है कि दामाद नाराज़ न हो जाए. उसकी नाराज़गी का अप्रत्यक्ष मतलब बेटी को दुःख मान लिया जाता है. यद्यपि ऐसा हर घर में होता नहीं है परन्तु आम सोच यही है. तो जब इतनी सारी बातें जुड़ी हुई हैं तब आवभगत तो होनी ही है.
हमारे समाज में आवभगत का एक ही सीधा-सीधा अर्थ है कि जमकर खिलाओ (इसे ठुंसाओ की तरह लें). हफ़्तों पहले से ही किसी रेस्टोरेंट के menu की तरह व्यंजन-सूची तैयार कर ली जाती है. फिर दामाद जी का पदार्पण होते ही 9 मिठाइयों से सजे मिष्ठान थाल के साथ उनका और इस सूची का भव्य उद्धाटन होता है. तत्पश्चात आगामी प्रयोगों हेतु प्रयोगशाला खोल दी जाती है. मिठाई यह कहकर खिलाना शुरू होता है, 'अजी, इतने समय बाद आए हैं कनपुरिया लड्डू से मुँह तो मीठा करना ही पड़ेगा!' ये चॉकलेट बरफ़ी तो मेरी बिट्टो ने ख़ास आपके लिए ही बनाई है. कह रही थी कि 'जब तक जीजाजी नहीं चखेंगे, कोई हाथ भी न लगाना'. और ये सोनहलवा तो बरेली वाली मौसी ने आज सुबह ही भिजवाया है कि 'भई, दामाद जी को हमारा आशीर्वाद जरूर देना'.
उसके बाद चाय-नाश्ता, फिर फ़लाहार(Fruit Salad) कराया जाता है. दामाद आराम करने का मन बना लेता है, तभी साली जी ठुमकती हुई आकर कहती हैं, 'अरे, जीजू अभी लंच तो किया ही नहीं!' उसके बाद शाम की चाय के साथ समोसे और फिर रात्रिभोज में पड़ोस वाली आंटी जी के यहाँ भी जाना जरुरी होता है वरना वो बुरा मान जाएंगी जी. अब दिल पर हाथ रखकर आप ही बताइए कि जिस फ़ूफ़ा के साथ ऐसा हो रहा है और उस पर सदियों से देश मज़ाक भी उड़ा रहा है, उसे नाराज़ होना चाहिए कि नहीं?
अब सबकी इच्छाओं की पूर्ति करते-करते दामाद जी का जो हाल होता है, वो तो वह ही जानें. लेकिन याद है न! अगली बार ससुराल जाते समय पहले से ही कैसे झूठी कहानी बनाकर तैयार रखते हैं कि मम्मी को कह देना 'डॉक्टर ने घी-तेल खाने को मना किया है'.
अच्छा, एक मज़ेदार बात और है कि पहले के समय में जब दामाद अपनी ससुराल आता था न! तो अड़ोस-पड़ोस के लोग किसी न किसी बहाने से उसे देखने आते थे या फिर अपनी छत पर खड़े हो उसकी एक झलक पाने को बेताब रहते थे. कुछ-कुछ ऐसा ही सीन बनता था जैसे शहर में तेंदुआ घुस आने पर लोग बावरे से हो जाते हैं. खैर! वो ज़माना ही अलग था. बहुत प्यारा समय था. 😊
सौ बात की एक बात! स्नेहिल भावनाओं का पूरा सम्मान. यह भी सच है कि प्रेम की कोई सीमा नहीं होती पर क्या करें! लाख अच्छे व्यंजन सामने होते हुए भी ये दुष्ट पेट और ग्रहण करने से रोक देता है. आप तो न जी, बस इतना समझ लो और भगवान के लिए मान भी लो कि दामाद, हमारी-आपकी तरह ही एक मनुष्य है, वह कोई असुर लोक से नहीं पधारा है बल्कि इसी पृथ्वी ग्रह का प्राणी है. प्यार करो, खिलाओ भी पर जबरन खिला-खिलाकर इतना अत्याचार न करो! कहीं ऐसा न हो कि अगली बार ससुराल का नाम सुनते ही बंदा चीत्कार मार अचेतन अवस्था को प्राप्त हो जाए जैसा कि प्रायः बहुएँ हो जाया करती हैं. 😂
😰 उफ़! अचानक बहुत जोर से जी घबरा रहा है! हे प्रभु, किरपा बनाए रखना.
चलो, जै राम जी की 🙏
- प्रीति 'अज्ञात' #Son_in_law #Indianculture #दामाद #संस्कृति
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सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंहा हा, मज़ा आ गया। मजेदार और पुराने वक्तों के सही किस्से कहानियां। कराओ मज़े, हम करने को बैठे हैं।
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