पूरा किस्सा
बैतूल (मध्यप्रदेश) के एक युवक की शादी उसके घरवालों ने कहीं और तय कर दी थी जबकि युवक, अपनी प्रेमिका से विवाह रचाना चाहता था. जैसा कि आम भारतीय परिवारों में होता ही आया है कि घरवालों ने अपनी इज़्ज़त की दुहाई दी. बेटा ज़िद पर अड़ा रहा. उधर प्रेमिका के घरवाले भी लड़के की कहीं और शादी तय होने पर लगातारआपत्ति दर्ज़ कर रहे थे. मामला बढ़ा तो पंचायत बुलाई गई. एक अविश्वसनीय निर्णय सुनाते हुए पंचायत ने उस लड़के को दोनों से विवाह की अनुमति दे दी. आश्चर्यजनक बात यह भी है कि पंचायत के इस निर्णय से लड़का, लड़की और प्रेमिका सहमत हो गए. तीनों के परिवार भी इसका स्वागत करते दिखे.
प्रशासन का दख़ल
यूँ तो इस विवाह में पूरा गाँव शामिल हुआ लेकिन प्रशासन ने आदतानुसार इस मामले की जाँच शुरू कर दी है. अब इन्हें कौन समझाए कि नफ़रतों से भरी इस दुनिया में प्रेम को ग़ुनाह समझना, किसी ग़ुनाह से कम नहीं!
हम तो इतना ही कहेंगे कि जब मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी! वैसे भी यह पूरा प्रकरण उन सभी मामलों से तो बेहतर ही है, जहाँ किसी एक को सरेआम सूली पर लटका दिया जाता है और अगले दिन कोई ग़वाह तक नहीं मिलता!
सरपंचों ने शायद परिवारों को आपसी रंज़िश से बचाने के लिए ये बीच का रास्ता अपनाया हो! ख़ैर! ये तो वही लोग बता सकते हैं. हाँ, बात का बतंगड़ जरूर बनने लग गया है.
लड़कों की प्रतिक्रिया और
बैतूल मॉडल की पुरज़ोर सिफ़ारिश
*एक ओर तो पुरुष वर्ग इस लड़के की क़िस्मत से ईर्ष्या कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर उन्हें अपनी अंधियारी ज़िंदगी में आशा की फूटती किरण भी दिखाई देने लगी है. 'अपना टाइम आएगा' के मंत्र के साथ ख़्वाबों की नॉनस्टॉप आवाजाही जारी है.
*जो वैवाहिक जीवन के भुक्तभोगी हैं उन्होंने साफ़ कह दिया है कि अब इस लड़के की खुशियों पर ग्रहण लगा ही समझो.
*चरमराती अर्थव्यवस्था पर ध्यानाकर्षित करते हुए कुछ लोग सहानुभूति दर्शाते भी नज़र आए. वे इस युवक की तनख़्वाह दोगुनी करने की सिफ़ारिश कर रहे हैं.
*कई लोगों ने इस पूरी घटना को लड़के का अभूतपूर्व साहस मानते हुए उसके लिए 'परमवीर चक्र' की मांग की है.
*किसी ने एक साल बाद अपडेट देने की गुज़ारिश की है तो कोई पंचायत के इस फ़ैसले को अद्भुत बताते हुए यह प्रक्रिया देश भर में अपनाने की कह रहा है. इसे 'बैतूल मॉडल' के नाम से प्रस्तुत किया जा सकता है.
*इसी सबके बीच एक गंभीर प्रश्न यह भी उठा कि इनके घर में होने वाले भावी झगड़ों में पंचायत हस्तक्षेप करेगी या ये स्वयं ही मामला सुलटा लेंगे?
*भई, लड़कियों ने तो दो टूक कह दिया है कि जब सर्वसम्मति से यह निर्णय उचित मान ही लिया गया है तो हम भी इस सुविधा के उम्मीदवार बनना चाहेंगे. अब न्यायिक संतुलन तो बनता ही है, जी.
*उन्होंने अपने विचारों को बेझिझक स्पष्ट करते हुए आगे कहा कि समय का बँटवारा भी होगा.अर्थात लड़की छह माह अपने चुने हुए प्रेमी के साथ प्रसन्नतापूर्वक बिताएगी और छह माह परिवार द्वारा थोपे गए पति के साथ भुगत लेगी.
*दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय' को बार-बार याद दिलाने वालों की भी कोई कमी न रही. इन्होंने व्याख्या करते हुए कहा कि चार दिनों में प्यार का बुख़ार उतर जाएगा और दोनों आपस में सौतन-सौतन खेलेंगीं.'
*कई स्त्रियाँ इस प्रकरण से क्षुब्ध भी हैं. उनका मानना है कि यदि मामला उलट होता तो यह निर्णय किसी भी स्थिति में नहीं आता. हमारे साथ भेदभाव तो सदियों से चला आ रहा है.
'अखिल भारतीय प्रेमी संघ' ने, प्रेम के ऊपर साक्षात् पहरा (पत्नी की उपस्थिति) बताते हुए इस
पूरी घटना की कड़ी निंदा की है.
मिश्रित वर्ग के जलकुकड़ुओं के विचार भी जान लीजिये
*इनका विचार है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. अब इन्होंने जो कहा वो भले ही पुरानी कहावत है. लेकिन हमें इस बात पर घनघोर आपत्ति है कि लड़कियों को 'तलवार' कैसे कह दिया? आई मीन, हाउ डेयर यू!! फूल सी कोमल लड़कियों के लिए यह हिंसक नाम क़तई शोभा नहीं देता!
*एक साहब ने तो तालियाँ पीटते हुए यहाँ तक कह डाला कि यही इसके लिए उचित सजा है. बच्चू को केवल आटे-दाल के भाव ही नहीं पता चलेंगे बल्कि जब बाइक पर किसी एक को क़रीब बिठाएगा और दूसरी को पीछे; असल खेल तो तब शुरू होगा.
भई, हम तो कहते हैं ये परिवार ख़ूब खुशहाल जीवन जिए. बस, कोरोना काल में ऐसी ख़बरें आती रहनी चाहिए. तनाव दूर होता है और बैठे-ठाले मुस्कुराने की वज़ह मिल जाती है. प्रसुप्तावस्था में पड़ी उम्मीद को क़रार आ जाता है, सो अलग.
नारायण-नारायण
- प्रीति 'अज्ञात'
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हा हा मेरी भी नजर पड़ ही गयी थी खबर में। आपने पूरा पोस्टमार्टम कर डाला। बीबी को दिखा रहा था एक के साथ एक फ्री का जमाना आ गया है। तुम तो अकेले चली आई :)
जवाब देंहटाएंहाहा :D
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