शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

'इकतरफ़ा दोस्ती' कहानी का एक अंश

खुशक़िस्मत हो, जो इतने दोस्त हैं तुम्हारे ! जब जी चाहा, हाथ थामे घूमने निकल गये, घंटों फोन पर बातें कीं, या फिर यूँ ही जंगल में भटकते फिरे. उदासी के पलों में उनके काँधे पे सर रख चार आँसू भी गिरा सकते हो. या गले लग फूट-फूटकर रो भी सकते हो ! पर उसका क्या, जिसका कोई दोस्त ही नहीं ? वो तो सबको अपना मान बैठ उन्हें दिलासा दिया करती है, उनकी मायूसी तक भाँप लेती है, हर संभव कोशिश भी करती है: कि सबके होंठों पर मुस्कान रहे !
पर आज जब उसे तुम्हारी ज़रूरत है, तो कहाँ हो तुम ? क्या उसने तुम्हें परेशानी के पलों में एक बार भी अकेला छोड़ा ? तुम्हारी लाख नाराज़गी पर भी सब कुछ भुलाकर हर बार ही बावली सी दौड़ी चली आती थी. तुम्हारी हँसी में अपने हर ग़म को भूलकर कैसे खिलखिलाती थी वो, और तुम्हारे माथे पर चिंता की लकीरें देख कैसे मुँह बना बैठ जाती थी. कभी भगवान को कोसा करती, तो कभी उस इंसान को..जिसकी वजह से तुम चिंतित दिखते थे. चुपके से तुम्हारे लिए प्रार्थना भी किया करती थी, ताकि तुम हमेशा खुश, स्वस्थ, निश्चिंत रहो.
कहते हैं, 'प्यार एकतरफ़ा भी होता है' और 'दोस्ती' ? क्या वो भी एकतरफ़ा ? वो तुम्हारी दोस्त है, पर तुम उसके नहीं ? जानते हो ना, कि उसकी ज़िंदगी में तुम्हारे सिवा और कोई नहीं ! रोएगी कुछ दिन कोने में अकेले बैठ, फिर आँसू पोंछ आ जाएगी वही फीकी सी हँसी लेके ! पता है उसे, कि तुम अफ़सोस भी नहीं जताओगे ; इसलिए तुम्हारे कुछ कहने के पहले ही सारी ग़लती अपने सर मढ़ लेगी और मुस्कुराते हुए वही चिर-परिचित शब्द कह देगी..'कोई बात नहीं' ! पर बात है, बहुत बड़ी बात है..समझो उसे ! टूट चुकी है वो बेतरह, हार गई है खुद से ! इस बार संभालना ही होगा तुम्हें उसे, क्योंकि अब बिखरी तो नहीं समेट सकेगी खुद को, जुदा हो जाएगी उम्र-भर के लिए ! बोलो...'खोना चाहते हो उसे' ?  आदत हो गई है न तुम्हें उसकी दोस्ती की ! लेकिन अकड़ भी है कि लौटकर खुद ही आएगी. इस बार नहीं आ सकी तो ? रह पाओगे उसके बिना ? फिर न कहना कि तुम्हें उसकी पीड़ा का अंदाज़ा नहीं था !किस बात से डरते हो तुम इतना ? कुछ नहीं चाहती वो तुमसेबस साथ रहो एक सुंदर अहसास की तरह न रखो ईर्ष्या, द्वेष या, प्रतिस्पर्धा का भाव उससे...उसकी कोमल भावनाओं को समझो ! आज भी उसे उम्मीद हैपर  मर रही है वो रोज, अब भी राहें ताका करती है उसकी; हाँ तुम्हारी ही.....अब कौन से सबूत का इंतज़ार है तुम्हें ?

'इकतरफ़ा दोस्ती' कहानी का एक अंश
प्रीति 'अज्ञात'

2 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी उम्मीद रख कर भी क्या ? जब समझ पा रहे की दोस्ती एक तरफा है .........
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    बेहतरीन प्लॉट, पूरी कहानी चाहिए :)

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    1. धन्यवाद, मुकेश जी ! इस कहानी के पात्र बेहद अजीब हैं...कहानी पूरी लिख तो गई है, शीघ्र ही पोस्ट करूँगी !

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