शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

घटिया नेता, घटिया सोच

दृश्य: एक व्यक्ति कहता है "एक कहावत है कि यदि आप रेप रोक नहीं सकते हैं तो लेटो और मजे लो!" यह सुनकर सामने कुर्सी पर बैठा तथाकथित सम्माननीय व्यक्ति ठहाका लगाने लगता है और फिर उसका साथ देने को इस हँसी में अनगिनत भद्दी आवाजें शामिल हो जाती हैं।

यह किसी C- ग्रेड फ़िल्म की पटकथा नहीं बल्कि कर्नाटक विधानसभा से प्रसारित निर्लज्जता की जीती जागती तस्वीर है। इन आदमियों और बलात्कारियों के बीच में कितना अंतर है, यह आप तय कीजिए! मैं इतना ही कहूँगी कि जानवरों का चेहरा इनसे बेहद खूबसूरत है।
हाँ, हम स्त्रियाँ चाहें तो फिर एक बार इस अश्लील हँसी पर शर्मिंदा हो सकते हैं जो गाहे-बगाहे हमारे कानों में अक्सर पड़ती ही रहती है।
हमने इस बात पर हैरान होना तो अब छोड़ ही दिया है कि जिस देश में हर रोज बलात्कार होते हैं वहाँ तमाम कानूनों के बाद भी बलात्कारियों को सजा क्योँ नहीं होती! फाँसी तो बहुत दूर की बात है। नेताओं को तो इन खबरों से ही फ़र्क़ नहीं पड़ता! और पड़े भी क्यों? सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे जो हैं!
क्या हम भूल गए कि अपराधी नेता अकड़ के साथ कैसे मुस्कुराते घूमते हैं! ये बलात्कार करने के बाद, उस लड़की के पूरे परिवार को खत्म करने से नहीं हिचकते। कभी लड़कों से हुई गलती का नाम देकर बात को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश करते हैं तो कभी उसके छोटे कपड़ों को दिखा उसके चरित्र पर ही उंगली उठा देते हैं। महिला नेताओं के चरित्र को लेकर, तथाकथित स्वामियों के विचार भी हाल ही में वायरल हुए थे। याद पड़ता है क्या, कि किसी मामले में इन नेताओं का कुछ बिगड़ा हो?
क्यों बिगड़ेगा भला! जब लगभग सभी की सोच इतनी ही छिछली और बजबजाती हुई हो! इस तरह की सारी घटनाएं, सभी दलों के लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सुनहरा मौका हैं। उससे अधिक और कुछ भी नहीं! कांग्रेस नेता ने बोल दिया तो बीजेपी को मजे आ गए, बीजेपी ने बोल दिया तो कांग्रेसी खेमे में खुशी की लहर दौड़ने लगती है। सजा की मांग, हमेशा सामने वाले के लिए ही की जाती है और अपने वाले पक्ष को बचाने की कोशिशें! यही राजनीति का चरित्र है जिसमें हम सबको पिसते रहना है।
स्त्रियों के प्रति अपमानजनक वक्तव्य यूँ ही बोलते जाते रहेंगे क्योंकि जिन्हें हमने चुना है उनका स्तर ही यही है। उन्हें न तो किसी के सम्मान से वास्ता है और न ही किसी प्रकार का संवेदनशील भाव ही उनके मन में कभी उपजता है। स्त्री को उसका अधिकार दिलाने वाले, सम्मान की बात करने वाले, बेटी-बहन को पूजने की सोच दिखाने वाले सब ढोंगी हैं। जरा सी भी हिम्मत हो तो सब बलात्कारियों को फांसी देकर दिखाएं!
यह भी प्रश्न है कि जो भरी सभा में स्त्रियों के प्रति इतनी भद्दी, निर्लज्ज सोच दिखाते हैं वे अपने आसपास या कार्यालय की स्त्रियों को किन नज़रों से देखते होंगे, कहने की जरूरत नहीं! लेकिन इनके आसपास के लोगों और समाज को अब इनसे ही सावधान रहने की जरूरत अवश्य है!
क्यों न इन सब हँसने वालों के हाथ-पैर बाँधकर इन्हें सड़कों पे घसीटा जाए कि "आप कुछ कर नहीं सकते हो न! इसलिए एन्जॉय करो!"
जिस दिन अपराधी को धर्म, जाति और राजनीति से परे देखकर सजा दी जाने लगेगी, तब ही समझिएगा कि कहीं कुछ उम्मीद बाकी है। वरना हत्या, बलात्कार जैसे मामलों पर यूँ ही ठहाके लगते रहेंगे!
एक बात और, यह जिस दिन की घटना है उस दिन निर्भया कांड की बरसी थी! 16 दिसंबर याद है न? पर मरी हुई आत्माओं को इससे भी क्या लेना-देना!