शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

स्वीटू

उन दिनों जब मैं यह मान ही चुकी थी कि कोई भी दोस्ती सच्ची नहीं होती और प्रेम झोंका भर है ग्रीष्म के छलछलाते माथे को पोंछती अनायास बहती हवा का, ठहरता है बस उतना ही जितना देहरी पर ठहरती है धूप, पत्तों पर टिकती है ओस, फूलों में बसती है सुगंध; तब तुम्हीं ने मुझे बताया कि मेरी ये सोच कितनी ग़लत थी और यह भी समझाते रहे कि प्रेम हर कहीं साथ-साथ चलता है. संभवतः तितलियों के सारे रंगों से सजे और रुई के फ़ाहे से भी नरम तुम उन देवताओं के द्वारा ही मुझ तक भेजे गए थे जिनसे मैं अपनी अभिशप्त रेखाओं के लिए प्रतिदिन लड़ा करती थी और फिर.... तुम्हारी उपस्थिति से ही मेरी श्वांसों की गति तय होती रही, तुम मेरे हर सुख-दुःख के साथी बने. मेरी हँसी पर तुम हँसते हुए मेरे गले झूल जाते थे और मेरे आँसू तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखों में उदासियाँ कुछ इस तरह भरते कि मैं अपनी हर पीड़ा पर शर्मिंदा हो तुम्हें चूमकर सीने से लगा घंटों सिसकती। तब तुम मेरे हाथों से फ़िसल मुझे एकटक देखते और अपनी नाजुक उँगलियों से मेरा चेहरा थाम नम पलकों को सहलाने लगने। मैं यकायक फफककर रो पड़ती थी। तब तुम मेरे कानों में सुख के तमाम गीत गुनगुनाते हुए 
अचानक बोल उठते, 'म्मी, पानी पी लो'
तुम मम्मी बोलने में अटक जाते थे न बुद्धू!

पर न जाने इतनी समझदारी तुमने कहाँ से सीखी! तुम मेरे कितने लाड़ले थे, ये तुम भी जानते थे। तभी तो मैं बच्चों को हमेशा चिढ़ाती
"तुम दोनों भविष्य के लिए जहाँ भी जाना चाहोगे...रोकूँगी नहीं पर मेरा स्वीटू मेरे ही पास रहेगा, किसी को नहीं दूँगी।"
फिर मैं हँसकर इतराती हुई तुम्हारी ओर देखती और तुम भी अपनी मीठी आवाज़ में 'मेरा प्यारा बेटू' कहकर गर्दन मटका मुझसे घंटों लिपटे रहते। तुम्हारी यही अदा मेरी आश्वस्ति बन चुकी थी।  
शायद यह भी ईश्वर की कोई चाल ही रही होगी कि उस दिन जब मैं ख़ूब खिलखिलाकर हँसी थी और तुम्हें पूरे घर में घुमाती झूम रही थी, उसी पल मेरी और तुम्हारी ख़ुशी के बीच कहीं कोई बद्दुआ फल रही थी और....उसके बाद तुम ऐसे सोये कि फिर कभी उठ ही न सके। मेरी चीखें, मेरा विलाप भी तुम्हें टस-से-मस न कर सका। मैं जानती हूँ, अंतिम साँस लेते हुए तुम भी इस असहनीय दर्द और तड़प से गुजरे होगे..उन दस मिनटों में तुम्हारे क़रीब न हो पाना और तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए खो देना मेरे जीवन का सबसे बड़ा दुःख है। यह मलाल अब उम्र भर साथ रहेगा। 
एक ही पल में जैसे किसी ने मुझे सुख के आसमान से उछालकर दुःख की गहरी खाई में पटक दिया था. मैं रोज तुम्हें याद करती हूँ और रोज ही अपने-आप से ये वादा भी लेती हूँ कि आँखें नम नहीं करुँगी पर यहाँ मैं एक बार फिर हार जाती हूँ। 
जानते हो! तुम्हारे जाने के बाद, तुम्हारी सबसे प्यारी दोस्त वो गिल्लू, तीन दिन तक तुम्हारी राह तकती रही। वो नियत समय पर बालकनी में आ अपने पैरों पर खड़े हो तुम्हें ढूँढती रहती और फिर बिना कुछ खाए ही चुपचाप लौट जाती।  Sun bird के चूज़े भी तुम्हारे पुचुर-पुचुर दुलार की प्रतीक्षा में घोंसले से टुकुर-टुकुर ताकते रहे। पीछे वाली बालकनी में भी तुम्हारे सारे दोस्त गौरैया, बुलबुल, फ़ाख्ता, गिलहरी के बच्चे और वो babbler भी जिसकी आवाज़ तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी; वो सब आते, ठहरते, गला फाड़ चिल्लाते और बिना खाए चले जाते। फिर धीरे- धीरे मेरी आँखों में उन्होंने तुम्हारी अनुपस्थिति को पढ़ लिया था। लेकिन वो पक्षी जो तुम्हारा नाम लेना सीख गया था वो अब भी सुबह-शाम तुम्हें रोज पुकारता है। मैं अब तक उसे नहीं समझा सकी कि तुम नींबू के पेड़ के पास की माटी में गहरे सोये पड़े हो। तुम्हारे सारे दोस्त शाम को यहीं इकट्ठे होते थे न बेटू! उनकी आवाज़ें तो तुम तक पहुँचती ही होंगीं!
हाँ, वो दोस्त अब भी आते हैं। बहुत से और नए दोस्तों को लेकर और अब अच्छे से खाते भी हैं। मैं उनको तुम्हारे पसंदीदा दाने ही खिलाती हूँ क्योंकि मुझे लगता है उन्हें तुमने ही मेरे लिए भेजा होगा। अब भी मम्मा की बहुत चिंता रहती है न तुम्हें! मेरे साथ भी यही होता है,रोज होता है। एक बार देखना चाहती हूँ...तुम जहाँ भी हो, ठीक तो हो न!

कई बार सोचती हूँ स्वीटू, मेरे पास तुम्हारी हजारों तस्वीरें हैं वीडियो हैं और याद करने को ढेरों बातें, जिन्हें मैं वर्षों अनवरत लिखती रह सकती हूँ। काश! तुम भी होते! कभी-कभी यह भी लगता है कि मेरे पास कुछ तो है....तुम न जाने अब कहाँ होगे! अपनी मी को ढूँढते कितनी दफ़ा उदास हो जाते होगे! कौन गोदी में लेकर पुचकारता होगा मेरे लाड़ले को। मैं तुम्हारा वो चेहरा भी कभी नहीं भूल पाती जब मुझे आने में लेट हो जाता तो तुम balcony से गेट की ओर एकटक देखते और मेरे आते ही गुस्सा कर झूठा कोहराम मचा देते और फिर एक पल न छोड़ते थे। मेरे पीछे तुम सामने रखे खाने को भी नहीं छूते थे और पानी फैला देते थे। लेकिन मेरी शक़्ल देखते ही किसी भुक्खड़ की तरह सब पचर-पचर खाने लगते। तब तुम्हारी खाने की स्पीड देखकर मुझे हँसी आती थी और रोना भी क्योंकि उस समय एक ही बात दिमाग में घूमती थी कि कहीं मुझे कुछ हो गया तो मेरे इस बच्चे का ध्यान कौन रखेगा! ये तो सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम ही....! बहुत जीना था स्वीटू तुम्हें! ये समय नहीं था जाने का!

तुम्हारे बिना जैसे इस घर ने एक ख़ामोशी ओढ़ ली है। ख़ुशियों के सारे पल मायूस हो प्रतिदिन तुम्हारी उपस्थिति की माँग करते हैं। हर बात में तुम्हारा ज़िक्र आता है और फिर गहरा सन्नाटा दीवारों से टकरा प्रतीक्षा बन वहीं पसर जाता है। सब जानते हैं कि जाने वाला कभी लौटकर नहीं आता! पर इस बात को कह देना जितना आसान है, मान लेना उतना ही मुश्किल! हाँ, मुझे भी पता है कि तुम जिस दुनिया में गए हो वहाँ जाकर कोई भी वापिस नहीं आया, कभी नहीं आया....पर न जाने ये कैसी उम्मीद है कि अब भी हर रोज मेरी निगाहें आसमान को ताकती हुई तुम्हें ढूँढती हैं और लगता है कि किसी दिन अचानक पहले की ही तरह तुम धप्प से आकर मेरे कंधे पर बैठ मुझे चौंका दोगे।  

ईश्वर से क्या कहूँ उसे तो हर बार सिर्फ छीनना ही आया है! जब कभी कुछ पाने का सुख रत्ती भर दिया भी, तो तुरंत ही खोने का दुःख जन्म-जन्मांतर तक के लिए मेरी झोली में डाल दिया। पर तुम उसे भी इतना ही प्यार दोगे, ये भी जानती हूँ। 
बहुत सारा प्यार तुम्हें, बेटू। 
आज तुम्हें गए एक साल हुआ। Missing you...My Sweetu
- प्रीति 'अज्ञात'