सोमवार, 13 अप्रैल 2015

जो 'दर्द' लिखता है , सोचो.....उसकी रगों में कितना बहता होगा !


जो 'दर्द' लिखता है , सोचो.....उसकी रगों में कितना बहता होगा ! जो बढ़कर गले न लगा सको तो ,भूले से भी कभी उसके कंधे पर हाथ न रख देना कि फिर उम्र-भर रिसता रहेगा ये। सागर का पानी यूँ ही खारा नहीं होता ! अरमानों के इतने मचलते उफान के साथ दौड़ती चली आती हैं जो, उन लहरों की साहिल पे सर पटकने की मायूसी देखी है कभी ? थके-हारे क़दमों से उनका लौट जाना जीकर तो देखो !

टूटा ही सही....पर फिर भी जुटा लेती है ज़िद्दी हौसला और कुछ सीप, कुछ मोती अपने गीले आँचल में भर तुम्हारी देहरी पर छोड़ आती है। डूब जाती है, फिर उसी खारे समुन्दर में। निहारती है कुछ पल, धुंधली आँखों से। वक़्त की रफ़्तार में भागते चेहरे ठिठककर चुन लेते हैं, मोतियों को।  लहरों की उदासी किसने महसूसी है कभी ! रुदाली का रुदन सबने देखा और उसे दोषी ठहरा चलते बने ! 
रुदाली....तुम कब हंसती हो !

आसान है, कह देना
'चले जाओ ' 
पर कोई, 'जाता कहाँ है' !
छोड़ जाता है इक हिस्सा 
दर्द को सहलाने के लिए 
गहराते हैं ज़ख्म 
कभी न भर पाने  लिए 
खुद ही रीतता जाता है 
इच्छाओं का समंदर 
जिसमें तड़पकर
आस की अनगिनत मछलियाँ 
चुपचाप दम तोड़ देती हैं ! 
 
अभिशप्त जीवन 
अधूरी श्वांस की 
टूटी बैसाखी 
कोई भूले भी तो, भूले कैसे 
कि बस वर्ष बदलते हैं
लोग बदलते हैं  
तारीखें और दिन तो 
वहीँ-के-वहीँ 
फूटे भाग्य-से  
ठिठककर रह जाते हैं !
- प्रीति 'अज्ञात'
Pic : Google