रविवार, 31 दिसंबर 2017

दिलचस्प दिसंबर

दिसंबर बड़ा ही दिलचस्प महीना है। यही वो ज़ालिम माह है जिसमें सी.आई.डी. के आखिरी दो मिनटों की तरह बीते ग्यारह महीनों के सारे गुनाहों की लंबी फ़ेहरिस्त आँखों के आगे इच्छाधारी नागिन की तरह फुफकारती नज़र आती है और सभी झूठे/ धोखेबाज़ लोग अपने कानों को पकड़, उठक-बैठक करते हुए ये प्रण लेते हैं कि अब वे सज्जन बनकर ही रहेंगे।
* सभी सज्जन/ दयालु /संवेदनशील लोग इस बैरी दुनिया की चोटों से आहत हो दर्पण के सामने अपना उदास मुखड़ा लटकाते हुए गर्दन में अचानक ही भयंकर वाला ट्विस्ट मारकर खुद को लाचारगी से देखते हैं और बिन मौसम बारिश की तरह अकस्मात् ही अपनी दोनों मुट्ठियाँ भींचकर गुस्से टाइप नकली फड़फड़ाता मुंह लिए ये भीषण प्रतिज्ञा करते हैं कि अब तो प्रैक्टिकल बनके ही रहेंगे। खूब झेल लिए दुनिया के जुल्मो-सितम। ये इनका हर साल का fixed episode है। 
* सारे साल न पढ़ने वाले बच्चे आगामी बचे-खुचे महीनों में दिल लगाकर पढ़ने की विद्या क़सम खा लेते हैं। मार्च फीवर यहाँ से प्रारम्भ होने लगता है। 
* सभी मोटे-मोटियाँ (ऊप्स, अतिरिक्त स्वस्थ) मॉर्निंग वाक की शुरुआत की तिथि एक जनवरी तय करते हुए चुपचाप ही कैलेंडर पर पेंसिल से बिलकुल अपने ही जैसा एक प्यारा-सा गोला बना देते हैं, कुछ इस तरह कि बस उन्हें ही दिखे! :D
* हाफ़ सेंचुरी तक पहुंचे लोग अब नौकरी के बचे-खुचे दस वर्षों में नौकरी पर जाने से पहले नियमित रूप से ईश्वर को हेल्लो/हाय करने का महान धार्मिक फैसला लेते हैं कि फिर बाद में पेंशन की अर्ज़ियाँ खारिज़ होने की कोई आशंका शेष न रहे!
* लड़ाकू सास-बहू मन ही मन शांति वार्ता या चुप्पा-संधि का क्रांतिकारी उद्घोष करती हैं पर ये कश्मीर मुद्दे-सा उलझा मसला है कि चाहते तो हैं पर कर नहीं पाते। 
* शैतान बच्चे पड़ोसी की बगिया से फूल न तोड़ने और बेमतलब घंटी बजाकर उन्हें डिस्टर्ब न करने का और तुरंत ही इसके बदले कोई और नया तरीका ईज़ाद करने का खुसपुस प्लान करते हैं।
* भावुक लोग एक्स्ट्रा सेंटियाने लगते हैं। (जैसे हम अभी हो रहे) :P
* प्रेम में हारे बंटी और बबली अब भी हिम्मत नहीं हारते और वे अपने टूटे हुए दिल की बची-खुची इश्कियाहट को दोबारा भुनाने के लिए वेटिंग लिस्टेड मुरीदों के प्रोफाइल की दूरी बिना झिझक दिन में सैकड़ों क्लिक करके जस्ट चेक इन का आइसपाइस गेम खेलते हैं।
* फूडी बंदे, अब होम डिलीवरी में कम फ़ूड पैक मंगाने का लाचार, बेबस निर्णय लेते हैं.
* सिक्स पैक लिए इठलाता मेहनती मानव अब एट पैक बनाने की उम्मीद लिए फेफड़ों में जोरों से पसलियों के भीतर तक वर्ष के अंतिम दिन की अंतिम ऑक्सीजन खींच स्वयं को दर्पण में देख मुग्धावस्था प्राप्त करता है. 

मने जो भी हो, जनवरी में सबको नहा-धो के, चमचमाते चेहरों पे हंसी का पलस्तर चढ़ाके ही एकदम हीरो-हिरोइनी टाइप एंट्री मारनी है। थिंग्स टू डू एंड नॉट टू डू की सूची दिसम्बर की पहली तारीख़ से बनना शुरू हो जाती है और 31 दिसंबर तक तमाम मानवीय कम्पनों और हिचकिचाहटों से गुजरते हुए एक भयंकर भूकंप पीड़ित अट्टालिका की तरह भग्नावशेष अवस्था में नज़र आती है। मुआ, पता ही न चलता कि क्या फाइनल किया था और क्या लिखकर काट दिया था। आननफानन में एक नई तालिका बनाकर तकिये के कवर के अंदर ठूँस दी जाती है और फिर होठों को गोलाई देते हुए, उनके बीच के रिक्त स्थान से बंदा उफ्फ़ बोलते हुए भीतर की सारी कार्बन डाई ऑक्साइड यूँ बाहर फेंकता है कि ग़र ये श्रेष्ठतम कार्यों की सूची न बनती तो इस आभासी सुकून के बिना रात्रि के ठीक बारह बजे हृदयाघात से उसकी मृत्यु निश्चित थी। 
और इसी तरह भांति-भांति के मनुष्य अपने मस्तिष्क के पिछले हिस्से की कोशिकाओं का विविधता से उपयोग करते हुए अत्यंत ही नाजुक पर मुमकिन-नामुमकिन के बीच पेंडुलम-सा लटकता पिलान बना ही डालते हैं। तो भैया, जे तो थी Exam की तैयारी। अरे हाँ, exam अर्थात परीक्षा वह दुर्दांत घटना या कृत्य है जो जाता तो अच्छा है पर आता नहीं! ;)
-  प्रीति 'अज्ञात

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