गुरुवार, 4 अक्तूबर 2018

#सत्य घटनाओं पर आधारित #KBC

सत्य घटनाओं पर आधारित 

टाटा स्काई ने सोनी पिक्चर्स और टीवी टुडे नेटवर्क के सभी चैनलों को अचानक बंद कर देश भर को जिस सदमे की हालत में पहुँचा दिया था, अब लोग धीरे-धीरे उससे उबर रहे हैं. कुछ हम जैसे दुखियारे भी हैं जो अब तक केबीसी का बिनीता जी के एक करोड़ रुपये जीतने वाला एपिसोड नहीं देख पाए हैं. चूँकि हम सदैव ही स्वयं के लिए पनौती सिद्ध होते रहे हैं तो पहले-पहल तो जब रात्रि के 8.59 बजे टीवी स्क्रीन पर टाटा स्काई का संदेश देखा तो हमारे चेहरे पर 12 तो बजे पर रत्ती भर भी आश्चर्य नहीं हुआ. क्योंकि यह हमारा इतिहास रहा है कि "हमने जब-जब किसी चीज़ को शिद्दत से पाने की कोशिश की है, सारी क़ायनात ने उसे हमसे दूर हटाने की कोशिश की है." इसलिए दुःख तो अपार हुआ पर यह लीला भी सह गए! वो तो कुछ समय बाद जब पता चला कि सबके साथ ही यही हो रहा तो सच्चे भारतीय की तरह थोड़ी शांति अवश्य मिली कि चलो, टाटा स्काई ने हमें ही टाटा नहीं किया है; पीड़ितों का एक लंबा कारवाँ साथ खड़ा है. कुल मिलाकर टाटा स्काई ने सबको 'लाइफ झिंगालाला' का सही अर्थ समझा दिया. अब तक सब इस शब्द को बड़ा funny समझते थे.   

अब तमाम बुद्धिजीवियों की भौंहें प्रश्नवाचक मुद्रा में 'टाटा थैया' कर रही होंगी कि इतना हाहाकार किसलिए? एक ठो फ़ोन ही तो करना था न! तो भैया, जब मुसीबत आती है न तो चहुँ दिशा से प्रक्षेपास्त्र की तरह दनादन बरसती है.
सोचिये यदि वो रजिस्टर्ड नंबर आपके पतिदेव के साथ विदेश यात्रा पर गया हो और अभी-अभी लगेज बेल्ट पर अपना बैग उठाते मिस्टर की जेब में घनघना उठे तो आप किस मुँह से कहेंगे, "सुनो, जरा इस नंबर पे मिस्ड कॉल कर देना." शास्त्रों में लिखा है कि थके-हारे बंदे को सबसे पहले चाय पिलाई जाती है, उसके बाद तमाम घर की चुगलियाँ, अपने दुखड़े, तत्पश्चात राष्ट्र की समस्या पर बात करते हुए चुपके से एक काम सरका दिया जाता है. यदि तब भी बात न बने तो बीवी-बच्चों द्वारा कलेश करना बेशक़ जायज़ है.
मज़े की बात ये है कि उस दिन मिस्ड कॉल देने वाला नंबर केबीसी की तरह इतना हसीन हो गया था कि 'ये वो आतिश था ज़ालिम, जो लगाए न लगे' मुआ, बुझ तो जाता था! और जब लगा तो....THE GAME WAS OVER! 
*अगले दिन की कहानी और भी दुःख भरी है, तनिक ठहरिये; Moral के बाद बताते हैं.

मोरल: इस देश में पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दाम ही एकमात्र समस्या नहीं है और न ही प्रेम अकेला है जो सुख कम और पीड़ा अधिक देता है. कुछ मासूम दिल अपने प्रिय कार्यक्रम को न देख पाने पर भी एवीं तबाह टाइप फ़ीलिंग ले लेते हैं. 

* हुआ यूँ कि जब हम टाटा स्काई को घड़ा भर-भर कोस रहे थे, उसी समय श्रीमान जी ने सूचित किया कि "टाटा स्काई की तरफ़ से संदेश आया है कि हम चाहें तो अपना सर्विस प्रोवाइडर बदल सकते हैं." उसके बाद हम ग्लानि और पश्चाताप की जिस गहरी खाई में गिरे हैं कि उससे अब जैसे-तैसे करके खुद ही निकलना होगा. लग रहा कोई परेशानी होगी न उनको, तभी तो इतनी ज़िल्लत झेलने को मजबूर हुए होंगे. इस तरह स्वयं की महानता की पुष्टि कर हमने उन्हें माफ़ कर दिया. हम तो अब भी 'टाटा स्काई' ही रखेंगे, इतने सालों से उनकी बेहतरीन सर्विस के प्रशंसक रहे हैं और payment method तो, अहा! Too good! जियो रे!
आप टाटा, सोनी टाइप बड़े-बड़े लोग काहे पैसे के द्वंद्व में फंसे रहते हो जी? सब मोह माया है, जब तक ये काया है! उसके बाद जो नीरज जी ने कहा वही अंतिम सत्य है -
"खाली-खाली कुर्सियां हैं / खाली-खाली तंबू हैं /खाली-खाली घेरा है 
बिन चिड़िया का बसेरा है
न तेरा है, न मेरा है..........!"
- प्रीति 'अज्ञात'

4 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे दिमाग की ताथैया से मन में कलाबाजी होने लगती है ।ख़ैर यह तो बहुत गंभीर समस्या थी जिसने पसीने से भिगो दिया होगा, वैसे हमारी प्रीति कहां इतनी कमज़ोर है जो चुप होकर बैठ जाए?अपनी अंतर्व्यथा को कितने सधे हुए कलम से उकेरा है ,सदा की भांति ----

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  2. आप बड़े दिल वाली हैं प्रीती जी , वर्ना लोग माफ़ी मांगने के बाद भी पसीजते नहीं और कनेक्शन पर कैची चलवा ही देते, खैर अंत भला तो सब भला ... बड़ा रोचक अंदाज है आपके लिखने का

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    1. इन स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत शुक्रिया. :)

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