बुधवार, 4 नवंबर 2020

भई! जरा महिलाओं का दर्द भी समझिए!

"बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी /तेरी नींद उड़े ते उड़ जाए/ कजरा बहकेगा, गजरा महकेगा" ये वाली बात आनंद बक्षी जी ने लिखकर, बताई. लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जी ने उस पर शानदार ढुलकिया बजाकर और फिर लता जी ने सुमधुर गाकर भी बताई. उसके बाद मुमताज़ जी ने इस पर ग़ज़ब का नृत्य प्रदर्शन भी किया. और ये बात आज की नहीं, हमारे पैदा होने से भी पहले की है पर जिसे नहीं समझना उसे तो भगवान भी न समझा सके है, जी! अब देखिये इसी चक्कर में एक महाशय थाने की परिक्रमा कर आए. आप लोग भी सावधान रहिये, पत्नी जी को शृंगार करने के मौलिक अधिकार से वंचित करेंगे तो उसकी सजा जरुर मिलेगी. बराबर मिलेगी और वो भी इसी जनम में.

ख़बर आई है कि अपने प्यारे उत्तर प्रदेश में एक महिला ने थाने में अपने पति की शिकायत दर्ज करा दी. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें नया क्या है? जी, नया ही नहीं बहुत ही क्रांतिकारी हो गया है. कारण यह  कि उसके पति परमेश्वर, उसे उसकी साड़ी से मैचिंग की लिपस्टिक, बिंदी एवं अन्य वस्तुएं नहीं लेने दे रहे थे. है न हद! अब कुछ लोगों का तो इस बात पर ठहाके लगाने का जी कर रहा होगा. पर भिया, हमारा नहीं कर रहा है. रत्ती भर नहीं कर रहा है. बल्कि हमें तो ये लग रहा कि तत्काल जाकर उस महिला की बलैयाँ लें, उसकी नज़र उतारें और मैडम तुसाद में उसकी मूर्ति लगवाकर पूजें उसे! महिला के इस कदम से ये भी पाठ मिलता है कि नारी सशक्तिकरण के नाम पर ज्ञान बाँटने से अच्छा है कि सीधे उसका प्रदर्शन ही कर दिया जाए. वैसे भी थ्योरी तो भाषण और किताबों में धरी रह जानी है. बात का वज़न तो तभी है जब कुछ प्रैक्टिकल हो. बोलो, है कि नहीं! 

अब बताइये जो अपना घर-बार छोड़, बिना ना-नुकुर करे, पूरे भरोसे के साथ अपना जीवन आपके साथ गुज़ारने चली आई, अगर आप उसकी इत्तू सी मांग भी पूरी न करें तो लानत है जी आप पर! घनघोर एवं कड़ी निंदा के पात्र (कु वाले) हैं आप! मुझे तो उन पुलिसवालों पर भी भीषण गुस्सा आ रहा जिन्होंने इस महिला को समझा बुझाकर घर भेज दिया. आख़िर, क्या गलत कहा हमारी बहिन ने? क्यों न सजे सँवरे वो? अरे, दुष्टों! जरा ये तो बताओ कि उसका ये साज-शृंगार किसके लिए है? आई न शरम? उसके माथे की बिंदिया पे तुम्हारा नाम लिखा है, उसके होठों पे जो गुलाबी मुस्कान है वो तुम्हारे ही नाम से खिली है, वो रुनझुन पायल का जो संगीत है न उसमें तुम्हारी याद साथ चलती है और वो लाल-हरी हाथ भर-भर चूड़ियाँ जब खनकती हैं तो वो तुम्हारे ही प्रेम में लजा दोहरी हो रही होती है.

और ज़नाब! आप तो सुबह के निकले संध्या काल में देव दर्शन देते हैं आपके पीछे वो घर-बार ही नहीं सँभालती बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व भी निभाती है. वो ही है जो आपको इस दुनिया से जोड़े रखती है. चाहे पडोसी के बेटे की शादी हो या कि चाची की बिटिया की गोद भराई; वही बताती है कि कहाँ, क्या देना है. आपका जन्मदिन हो या बच्चों का, वो पूरे साल प्लान करती है. अरे, कोई गिनाने की बात थोड़े न है, आप भी जानते हो कि कई बार तो आपको अपने ही बच्चों की क्लास के सेक्शन भी न पता होते! तो भाईसाब! वो तो सब करे लेकिन जो उसका मौलिक अधिकार है, वो आप उसे न दें! अच्छा! बहुत सही जा रहे हो! अजी, भगवान के लिए तनिक आप भी लजा लिया करो! आज करवा-चौथ पर कितने अरमानों से उसने हाथों में मेहंदी रचाई होगी, सोलह शृंगार कर दुल्हन-सी सजी होगी, दिन भर भूखी-प्यासी रहेगी कि उसके पिया की उम्र लम्बी हो और दोनों का साथ जन्म-जन्मांतर का रहे. और एक आप हैं! न जी, मैचिंग के सामान की तो कोई जरुरत ही ना है!

पुरुषों का तो क्या है! काला, नीला और भूरा..इन तीन रंगों की पेंट में ही ज़िंदगी निकाल लेते हैं. इसी के लाइट शेड की शर्ट या टी-शर्ट ले ली. चलो, ब्लू जींस और जोड़ दो! उनका तो पता भी न लगता कि ये नई है कि बीस साल पुरानी. एक ही तरह के दिखेंगे. सावन हरे न भादों सूखे! अरे, हम स्त्रियों के जीवन में कई समस्याएं हैं. हमें कपड़े डिसाइड करने में ही इतनी माथा-पच्ची करनी होती है. एक तो रिपीट नहीं कर सकते! उस पर ट्रेंडी भी दिखना है, फ़िगर भी चकाचक लगे. अब बड़ी मुश्किल से ये जो ड्रेस फाइनल करी है उसके साथ अटैचमेंट भी तो लगते हैं न! अगर गलती से भी लास्ट मोमेंट उसने दूसरी ड्रेस पहनने की सोच ली तो आप तो न, बस चकरघिन्नी बन मार्केट ही दौड़ते फिरोगे. सराहो अपने भाग्य को कि ऐसी सलीक़ेदार पत्नी मिली है. और ये तो भोली महिला थी जो बस चूड़ी, बिंदी और लिपस्टिक तक ही कहकर रह गई. नेक समझदार होती तो इसमें पर्स, सैंडिल, ताजा ज्वेलरी और जाने क्या-क्या जोड़ देती. फिर तो केस ही पलट जाता, उल्टा आप ही उस पर मानसिक उत्पीड़न का केस दर्ज़ करा रहे होते! तो सौ बात की एक बात ये है जी कि स्त्री है तो सजेगी-सँवरेगी ही, आपकी तरह नहीं कि मुँह उठाया और चल दिए.  
- प्रीति 'अज्ञात'

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6 टिप्‍पणियां:

  1. 😄😄😃🤣बहुत खूब प्रीति जी!! आखिर एक नारी ही दूसरी नारी के मन के दर्द को पहचान उसका सही विश्लेषण कर सकती है. और इन पतियों से पूछा जाए, ये जो कमा- कमा कर बैंक भर रहे हैं उस धन को लेकर कहाँ जायेंगे? देवलोक से लेकर मृत्यु लोक तक हम नारियों को ही तो सजने का सर्वाधिकार प्राप्त है. श्रृंगार से ही हम नारियाँ पुरुषों से अलग पहचानी जाती हैं. रोचक लेख😄😄

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  2. वाकई बधाई का पात्र है वह सशक्त पुरुष जो अपनी पत्नी के इस आध्यात्मिक यज्ञ के आड़े आने का दुस्साहस कर गया। लेकिन फिर भी ठहरा तो बेचारा ही! पुलिस की गिरफ्त से तो निकल गया, लेकिन साहित्यिक चपेट में आ ही गया।

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