गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

वो दिन हम ही ला सकते हैं!

 इन दिनों जिधर देखो, प्रतीक्षा है. एक ऐसी प्रतीक्षा, जो ईश्वर करे कि किसी के हिस्से में कभी न आये! आदमी बीमार है लेकिन बीमारी पता करने के लिए एक लम्बी लाइन है. टेस्ट हो गया तो उसकी रिपोर्ट के लिए भी प्रतीक्षा करनी होगी. कोरोना पॉजिटिव निकले तो अस्पतालों के दरवाजे खटखटाने होंगे, जहाँ बेड के लिए फिर उसी अंतहीन लाइन से जूझना होगा. हो सकता है किसी अस्पताल की लॉबी में या सड़क किनारे कहीं आपका ठिकाना बना दिया जाए. हालत गंभीर हुई तो इंजेक्शन और ऑक्सीजन के इंतज़ाम के लिए दर बदर ठोकरें खानी होंगी. एम्बुलेंस भी न जाने मिलेगी या नहीं! लेकिन इतने पर भी दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ने वाला क्योंकि जो साँसें टूटीं तो मृत्यु बाद भी यह प्रतीक्षा जारी रहेगी. लाश रखने की जगह अब कम पड़ने लगी है तो उन्हें सामान की तरह एक-दूसरे पर रखा जा रहा है. सड़ती हैं तो सड़ा करें, क्या करें अस्पताल वाले!

अभी तो कहानी और भी है क्योंकि इसके बाद श्मशान घाट पर भी आपकी मृत देह को एक टोकन मिलेगा और जब नंबर आएगा, तब ही आपका जैसे-तैसे अंतिम संस्कार हो सकेगा. कहीं पुरानी क़ब्रों को खोदकर किया जा रहा तो कहीं यूँ ही फेंक भी दिया जाता है क्योंकि अपनी जान सबको प्यारी होती ही है तो कभी-कभी घरवाले ही घबरा जाते हैं. कहीं लकड़ियों की भी कमी हो रही.
ये बात पढ़ने में जितनी क्रूर लग रही, सच्चाई उससे कहीं अधिक कठिन और भयावह है. लेकिन ऐसा असहाय मनुष्य पहले कभी न देखा होगा आपने! वो अस्पताल की देहरी पर दम तोड़ती उम्मीदों के साथ वहीं कहीं, दीवारों पर सिर मारते रह जाता है, चीखता चिल्लाता है. जाने वाले को पुकारता रह जाता है लेकिन जो गया है वो लौटकर कभी नहीं आ पाता! ये एक ऐसी बेबसी है जिससे लाखों परिवार जूझ रहे हैं.
बहुत सी बातें हैं जो इस समय दिमाग़ में घूम रही हैं. न जाने कितनी कह पाऊँगी और कितनी अनकही रह जाएंगी. लेकिन सच तो यह है कि जिस कोविड महामारी ने पिछले वर्ष दस्तक़ दी थी इस बार इसके क़हर से बच पाना मुश्किल हो रहा है. आप कितने भी बड़े तोप हों या किसी भी उम्र के, ये वायरस सबको निगलने को तैयार है. इधर आप अपनी तैयारियों में ढीले पड़े और उधर इसने सेंध बना ली.
हम हमारी जर्जर व्यवस्था पर आँसू बहा सकते हैं, स्वयं बीमार होने या परिजनों को लेकर भटकते हुए हम चिकित्सा व्यवस्था को कोस सकते हैं, प्रशासन पर प्रश्न उठा सकते हैं, सरकार पर आरोप मढ़ सकते हैं. हम मास्क, सैनिटाइज़र और सोशल डिस्टेंसिंग का मज़ाक उड़ा सकते हैं. उनसे होने वाली असुविधाओं पर घंटों बात कर सकते हैं. वैक्सीन न लगाने के पक्ष में ललित निबंध लिख सकते हैं. मोदी-राहुल, कुम्भ-तबलीगी ज़मात पर घंटों बहस कर सकते हैं, चुनाव होने, न होने पर पर गहरा वक्तव्य बाँच सकते हैं. लेकिन इससे हमें मिलेगा क्या? और अब तक क्या पा लिया है हमने? यक़ीन मानिए, कोविड वायरस इन सब बातों से बेअसर है. वो आपके राजनीतिक रुझान को समझ नहीं पाता और आपकी मूर्खताओं पर हँसते हुए पीछे से आकर चुपचाप आपका गला दबोच लेता है.
हमारे हाथ में इतना ही है कि हम वैक्सीन लगवाएं, मास्क का उपयोग करें, अपनी सुरक्षा पर स्वयं ध्यान दें. उसके बाद अगर बीमार हो भी गए तो इस वायरस को हराने की उम्मीद बढ़ जाती है. हमारी जान, हमारे अपनों के लिए बहुत क़ीमती है. हम इसे बचाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं. इस महामारी से मुक्त दुनिया में मनुष्य चैन की साँसें ले सकें, वो दिन भी हम ही ला सकते हैं. ईश्वर सबको सुरक्षित रखे. 🙏
18 अप्रैल 2021 को MP MediaPoint में प्रकाशित

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