शनिवार, 8 जनवरी 2022

जावेद, जो अब हबीब नहीं लगते!

एक समय था जब हम केश कर्तनालय या सीधे-सीधे कहें तो नाई की दुकान का नाम सुनते ही नाक-मुँह सिकोड़ दिया करते। बच्चों को तो पकड़-पकड़ जबरन वहाँ ले जाते हुए मैंने स्वयं देखा है। बच्चा भी हाथ पैर पटकते हुए ऐसी चीखें निकालता, मानो बिना anesthesia के उसकी शल्य चिकित्सा हो रही। भई, नाई और उसके उस्तरे का खौफ़ ही ऐसा था। वो बात अलग है कि कटिंग के अंतिम चरण में जब मुलायम वाले ब्रश में पॉन्ड्स पाउडर भरकर गर्दन पर फिराया जाता, तो इसी बच्चे की खी खी करते हुए बत्तीसी चमकती। गुदगुदी होती थी न!

सब कुछ होता पर 'बाल कटाने जाना है', यह कोई कहने वाली बात नहीं होती थी। लेकिन समय बदला और यहाँ जाना भी बड़ा ईवेंटफुल हो गया। बाकायदा अपॉइंटमेंट लिए जाने लगे और यह एक महत्वपूर्ण और सम्मानजनक व्यवसाय बन गया। 

इस परिवर्तन में जिस व्यक्ति का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता रहा, वह हैं जावेद हबीब।  जी, हाँ! यह हेयर कटिंग करने वाले व्यक्ति को हेयर स्टाइलिस्ट का भद्र नाम देने वाले शख्स का ही नाम है। उनके आने के बाद इस पेशे को बहुत अधिक सम्मान के साथ देखा जाने लगा। अब सैलून खोलना, संकोच का काम नहीं रहा था। इसमें कलात्मकता आ गई थी। देखा जाए तो जैसे भारतीय महिलाओं को अपनी त्वचा की देखभाल या सौन्दर्य के प्रति जागरूक करने की क्रांतिकारी शुरुआत शहनाज़ हुसैन ने की, ठीक वैसा ही बदलाव यह भी रहा। 

आज देश में जावेद हबीब के 300 से अधिक सैलून और कई एकेडमी हैं, जहाँ हेयर डिजाइनिंग/ हेयर स्टाइलिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है। कुल मिलाकर यह नाम एक ब्रांड बन चुका है, जिसके समकक्ष अभी कोई नहीं है। कहते हैं उन्होंने दिन-रात एक कर अपने पिता के इस व्यवसाय को प्रतिष्ठा दिलवाई थी। पर अब उसे गंवा चुके हैं। 

कुछ दिन पहले एक workshop में जावेद हबीब एक महिला के बाल पर यह कहते हुए थूक रहे थे कि ‘जब पानी की कमी हो तो ऐसे काम चलाया जा सकता है।' जिस बात को सुनकर भी घिन आ जाए, तो जिस पर बीती हो उसे कितना गंदा लगा होगा! ज़ाहिर है इसके विरोध में उस महिला ने अपनी प्रतिक्रिया दी। उसके बाद इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर भी जारी हुआ,जहाँ जावेद हबीब की इस घटिया हरकत की जमकर लानत-मलानत हुई। 

अब जब पानी सिर से ऊपर गुजर गया तो अपने इस कृत्य पर माफ़ी मांगते हुए उन्होंने कहा कि 'लंबे शो होते हैं तो हमें उसको थोड़ा ह्यूमरस बनाना पड़ता है। एक ही बात बोलता हूँ, दिल से बोलता हूँ। अगर आपको सच्ची में ठेस पहुंची है, हर्ट हुए हैं तो दिल से माफ़ी माँगता हूँ। माफ करो न।'

अब आप भी मेरी तरह माथा पकड़ ये सोच रहे होंगे कि क्या किसी के ऊपर थूकने से humour पैदा हो सकता है? नहीं, न! लेकिन इस कार्यक्रम में ऐसा हुआ। जब जावेद हबीब ने थूकते हुए पानी की कमी वाली बात बोली तो वहाँ उपस्थित महिलाएं न केवल हँसीं बल्कि उन्होंने जमकर तालियाँ भी बजाईं। इससे हबीब का हौसला और बढ़ा, उन्होंने चहकते हुए आगे कह डाला, 'इस थूक में जान है।' हास्य का इससे घृणित रूप और क्या होगा! 

और जिस तरह से उन्होंने माफी माँगी है, उससे भी साफ़ ज़ाहिर हो रहा कि उसमें अफ़सोस का रत्ती भर भाव नहीं है बल्कि यह ज्यादा दिख रहा कि 'अरे!,ऐसी कौन सी बड़ी बात हो गई! हँसाने के लिए थूक ही तो दिया था।'

महिला के साथ तो बहुत गलत हुआ ही। पर इस 'humour' के मद्देनज़र जावेद हबीब ने अपनी ही साख पर खुद तगड़ा वाला बट्टा भी फेर दिया है। 

ऊंचाई पर चढ़ने में चाहे कितना वक़्त लगे पर आपकी एक गलती आपको वहाँ से पल भर में ज़मीन पर ला पटक देती है। इंसान चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, यदि उसके व्यवहार में विनम्रता नहीं, दूसरों के प्रति सम्मान नहीं तो वह बेहद छोटा महसूस होता है जैसा कि इन दिनों जावेद हबीब लग रहे हैं। उनकी एक ओछी हरकत, उनके नाम को ले डूबी है!

- प्रीति अज्ञात 

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