मस्तिष्क की सारी नसें फटने लगती हैं, मुट्ठियाँ भिंचती हैं, कलेजा मुँह को आता है. अपना ही सिर दीवार से मार फोड़ देने का मन करता है कि आख़िर हम इस देश में क्यों रह रहे हैं? किसलिए रह रहे हैं? आख़िर कब तक सुनें कि सब ठीक हो जाएगा? कब तक हम अपने आप को घरों में क़ैद सहमे बैठे रहें कि बाहर भेड़ियों की फ़ौज है? उन आवारा जानवरों को अंदर क्यों नहीं किया जाता? उन राक्षसों को गोलियों से भून देने में तुम्हारे हाथ क्यों कांपते हैं जो ऐसा जघन्य कृत्य बार-बार लगातार करते रहने में भी आनंद प्राप्त करते हैं?? क्या इंसानियत की क़ीमत एक वोट भर रह गई है? जिसके एवज़ में तुम अपनी संस्कृति, सभ्यता और बची-खुची मानवता की भी बोली लगाने से नहीं चूकते??
हाँ, हम सहिष्णु बने रहें... देशभक्त कहलाए जाने की यह पहली शर्त है.
आप गाय बचाएँ क्योंकि वो आपकी माता है लेकिन सामने खड़ी स्त्री का चीरहरण देखते रहें, उसकी लाश को धर्म और राजनीति के कैमरे से क़ैद करें, बेचें, भुनाएँ! कहानियाँ बना दें! आपकी कौन लगती है भला!
आप तो विलुप्त होती प्रजातियों को बचाएँ, उनके संरक्षण की डींगें भरें, 'मेरा भारत महान' बोल स्त्रियों को देवीतुल्य मानने का ड्रामा करें लेकिन उसी हिरणी-सी चंचलता लिए एक मासूम बच्ची की आत्मा तक को कुचल-कुचलकर आग में झोंक दें. क्या जरुरत है उसे बचाने की!!! बहुतायत में जो है!!!
किसी की भी सरकार रही हो, बलात्कारियों और दरिंदों को बचाने में सत्ता हमेशा सफ़ल रही है. बल्कि ऐसे लोगों के क़दमों में लोटती नज़र आई है. यही तो वो लोग हैं जो हथियारों के दम पर इनका वोट बैंक का खाली कटोरा भरवाते हैं.
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' कहने में ही अच्छा भर है, असलियत में हम उस राक्षसी, असुर युग में रह रहे हैं जहाँ अपराध, हत्या और .. छी शर्म भी नहीं आती तुम जैसों को तो! स्त्रियों को पूजा की कोई अभिलाषा नहीं, बस उसे इंसान समझ लो, इतना ही काफ़ी है.
अब वह दिन दूर नहीं जब हर घर में एक फूलन देवी पैदा होगी और एक झटके में तुम सबको ख़त्म कर देगी. तुम सब इसी लायक हो कि तुम्हें घसीटकर सड़क पर लाया जाए, जनता तुम पर लात-घूंसे बरसाए और उसके बाद तुन्हें ज़िंदा जला दिया जाए! तुम्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, न्याय को अपनी जेब में रखकर घूमते हो, जब चाहे जिसे उठवा सकते हो तो अब डरो! लड़कियों से डरो! अब तुम्हारी शल्य-क्रिया के लिए इनकी सेना तैयारी पर है! ध्यान रखना तुम जैसे लोगोंका खात्मा होगा अब और गर भूल जाओ तो सारी देवियों की तस्वीरें याद कर लेना!
- प्रीति 'अज्ञात'
https://www.youtube.com/watch?v=o_m8AQ2c2bY&t=1s
हाँ, हम सहिष्णु बने रहें... देशभक्त कहलाए जाने की यह पहली शर्त है.
आप गाय बचाएँ क्योंकि वो आपकी माता है लेकिन सामने खड़ी स्त्री का चीरहरण देखते रहें, उसकी लाश को धर्म और राजनीति के कैमरे से क़ैद करें, बेचें, भुनाएँ! कहानियाँ बना दें! आपकी कौन लगती है भला!
आप तो विलुप्त होती प्रजातियों को बचाएँ, उनके संरक्षण की डींगें भरें, 'मेरा भारत महान' बोल स्त्रियों को देवीतुल्य मानने का ड्रामा करें लेकिन उसी हिरणी-सी चंचलता लिए एक मासूम बच्ची की आत्मा तक को कुचल-कुचलकर आग में झोंक दें. क्या जरुरत है उसे बचाने की!!! बहुतायत में जो है!!!
किसी की भी सरकार रही हो, बलात्कारियों और दरिंदों को बचाने में सत्ता हमेशा सफ़ल रही है. बल्कि ऐसे लोगों के क़दमों में लोटती नज़र आई है. यही तो वो लोग हैं जो हथियारों के दम पर इनका वोट बैंक का खाली कटोरा भरवाते हैं.
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' कहने में ही अच्छा भर है, असलियत में हम उस राक्षसी, असुर युग में रह रहे हैं जहाँ अपराध, हत्या और .. छी शर्म भी नहीं आती तुम जैसों को तो! स्त्रियों को पूजा की कोई अभिलाषा नहीं, बस उसे इंसान समझ लो, इतना ही काफ़ी है.
अब वह दिन दूर नहीं जब हर घर में एक फूलन देवी पैदा होगी और एक झटके में तुम सबको ख़त्म कर देगी. तुम सब इसी लायक हो कि तुम्हें घसीटकर सड़क पर लाया जाए, जनता तुम पर लात-घूंसे बरसाए और उसके बाद तुन्हें ज़िंदा जला दिया जाए! तुम्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, न्याय को अपनी जेब में रखकर घूमते हो, जब चाहे जिसे उठवा सकते हो तो अब डरो! लड़कियों से डरो! अब तुम्हारी शल्य-क्रिया के लिए इनकी सेना तैयारी पर है! ध्यान रखना तुम जैसे लोगोंका खात्मा होगा अब और गर भूल जाओ तो सारी देवियों की तस्वीरें याद कर लेना!
- प्रीति 'अज्ञात'
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