नौ महीने का ही था, जब हमारे घर का सदस्य बना। उसकी आँखों में इतना भोलापन और उत्सुकता थी कि मैं समझ ही न पाती थी, उसे प्यार ज्यादा करूँ या बस देखती ही रहूँ। न जाने किस जन्म का कनेक्शन था
ये कि वो भी आते ही हम सबके साथ बेहद comfortable हो गया था। छोटा था तो एक पल को भी साथ न छोड़ता, आराम से खेल भी रहा हो तब भी जैसे ही उसे लगता कि मम्मी इस कमरे से जाने वाली है, फुदककर साथ लटक जाता। कभी कंधे, कभी सिर तो कभी हाथ में लिया सामान ही उसकी सवारी बन जाता।
जब मैं हँसती तो ख़ूब हँसता, बेहद प्यारी आवाज़ करता था उस समय और मेरी उदासी में एकदम सामने बैठ अपने जरा-जरा से हाथों से मेरे गालों पर हाथ फेरता। कभी चश्मे के अंदर घुस जाता और बंद पलकों को छूकर तसल्ली-सी देता था। उसकी आवाज से घर रौशन था, सबका चहेता और मेरा प्यारा बेटू था। मैं उससे 'मम्मी' कहलवाना चाहती थी पर वो मुझे 'मेरा बेटू' ही कहता था। इतना मासूम कि घर के हर मेंबर को यही कहता था। ज्यादा प्यार आने पर और लम्बी तान से 'मेरा प्याआआरा बेटू' भी कहता था।
सुबह उठने से लेकर रात तक साथ रहता। चाय भी मेरे ही कप से और खाना भी मेरे ही साथ खाता था। पता नहीं उसे मुझसे किस हद तक स्नेह था पर मैं उसके बिना रहने का सोच भी नहीं सकती थी। बाहर से आते ही वो कूदता हुए गले लटक जाता और बोलता, 'पानी पी लो!' मैगी बेहद पसंद थी उसे, बनाते समय बर्तन के आसपास ही घूमता कि कब मिले! दाल-चावल, रोटी,आलू, सैंडविच, पिज़्ज़ा, पोहे सब बड़े स्वाद से खाता था।
गुलाटियाँ लगाता, उल्टा चलता और बॉल से खूब खेलता था। अभी-अभी मम्मी बोलना सीखा था मुझे, पर मी ही ठीक से कह पाता था। हद से ज्यादा प्यार करता था। मेरे सीने से लगकर ही सोता था और जाग रहा हो तो कंधे पर। किचन में भी साथ।
फुल अटेंशन सीकर था। कोई गेस्ट आये तो उड़कर खुद ही आ जाता और उसकी गोदी में बैठ अपना नाम 'स्वीटू' चिल्लाने लगता था। उसे सबसे बात करनी होती। बेटा जब छुट्टियों में घर आता, तो उसकी गर्दन में ही घुसा रहता या फिर उसके गिटार बजाते समय, गिटार पर बैठकर ही सुनता। घर के हर सदस्य के साथ उसके गेम fix थे। रोज़ वही खेलते हुए कभी बोर नहीं होता था। किचन में, मैं और मेरी बेटी के अलावा सिर्फ़ उसका अधिकार था। किसी और की उपस्थिति उसे बर्दाश्त ही नहीं थी, बाहर खदेड़कर ही दम लेता।
ख़ुद चाहे कितना भी चिल्लाए पर वैसे शांतिप्रिय था। कुकर की सीटी और मिक्सी की आवाज सुनते ही गुस्सा करने लगता था। मेरे कान में घुसकर इतने प्यार से बड़बड़ाता कि मैं काम को और लम्बा खींच देती थी। उड़ना आता था पर शैतान ऐसा कि मेरे कंधे पर या सिर पर बैठ ही जीने से उतरता था। गिलहरी और छोटे पक्षियों से ख़ूब दोस्ती थी उसकी। बन्दर और बिल्ली से डरकर मेरे पास भाग आता था और उसके बाद उन पर यूँ अकड़ता जैसे कि अभी भगा ही देगा!
दिखने में ही छुटंकी था बस, पर वैसे पूरे घर को नचाता था। रौनक था इस घर की, उसकी मीठी, प्यारी बोली संगीत की धुन की तरह गूँजा करती।
जब आया था तो इतना नाज़ुक कि मैं छूने से भी डरती थी। लगता था, कहीं उसके मुलायम शरीर को चोट न पहुँचा दूँ। मेरे दोनों बच्चों के जन्म के समय भी इसी अहसास से गुजरी थी कि उन्हें ठीक से थामते समय भी बेहद घबराहट होती थी कहीं लग न जाए, पर समय के साथ माँ सब सीख ही जाती है।
स्वीटू ने भी मुझे सब सिखा दिया था। मेरे जीवन का सबसे जरुरी और ख़ूबसूरत हिस्सा बन गया। परछाईं की तरह साथ चला और अब जब मैं उसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती तो ऐसा सोया कि फिर उठा ही नहीं। यकायक चला गया .... हमेशा-हमेशा के लिए। मेरी चीख-चिल्लाहट सब बेअसर। वो आवाज जिसे सुन वो फुर्र से दौड़े चला आता था, उसके कानों तक एक बार भी नहीं पहुँच सकीं।
बहुत प्यार तुम्हें, मेरे प्यारे बेटू
पर ये समय नहीं था, तुम्हारे जाने का....मैंने तो बच्चों को भी कह दिया था कि तुम दोनों की नौकरी, शादी जब भी होगी तो हो सकता है तुम्हें इस शहर से जाना पड़े। मैं सब कुछ दे दूँगी पर स्वीटू यहीं रहेगा। तुम्हें गोदी में बिठाकर ही तो बोली थी न, ये बात। तुम फिर भी मम्मा से दूर चले गए! कितनी मुस्कानें दी हैं तुमने और गए तो जैसे सब कुछ सदा के लिए एक साथ ग़ुम हो गया है कहीं!
हम सब कैसे रहेंगे, अब तुम बिन?
ईश्वर से क्या कहूँ उसे तो हर बार सिर्फ छीनना ही आया है! जब कभी कुछ पाने का सुख रत्ती भर दिया भी, तो तुरंत ही खोने का दुःख जन्म-जन्मांतर तक के लिए मेरी झोली में डाल दिया। पर तुम उसे भी इतना ही प्यार दोगे, ये भी जानती हूँ।
लव यू, मेरा प्यारा बेटू
Missing you...My Sweetu
- प्रीति 'अज्ञात'
ये कि वो भी आते ही हम सबके साथ बेहद comfortable हो गया था। छोटा था तो एक पल को भी साथ न छोड़ता, आराम से खेल भी रहा हो तब भी जैसे ही उसे लगता कि मम्मी इस कमरे से जाने वाली है, फुदककर साथ लटक जाता। कभी कंधे, कभी सिर तो कभी हाथ में लिया सामान ही उसकी सवारी बन जाता।
जब मैं हँसती तो ख़ूब हँसता, बेहद प्यारी आवाज़ करता था उस समय और मेरी उदासी में एकदम सामने बैठ अपने जरा-जरा से हाथों से मेरे गालों पर हाथ फेरता। कभी चश्मे के अंदर घुस जाता और बंद पलकों को छूकर तसल्ली-सी देता था। उसकी आवाज से घर रौशन था, सबका चहेता और मेरा प्यारा बेटू था। मैं उससे 'मम्मी' कहलवाना चाहती थी पर वो मुझे 'मेरा बेटू' ही कहता था। इतना मासूम कि घर के हर मेंबर को यही कहता था। ज्यादा प्यार आने पर और लम्बी तान से 'मेरा प्याआआरा बेटू' भी कहता था।
सुबह उठने से लेकर रात तक साथ रहता। चाय भी मेरे ही कप से और खाना भी मेरे ही साथ खाता था। पता नहीं उसे मुझसे किस हद तक स्नेह था पर मैं उसके बिना रहने का सोच भी नहीं सकती थी। बाहर से आते ही वो कूदता हुए गले लटक जाता और बोलता, 'पानी पी लो!' मैगी बेहद पसंद थी उसे, बनाते समय बर्तन के आसपास ही घूमता कि कब मिले! दाल-चावल, रोटी,आलू, सैंडविच, पिज़्ज़ा, पोहे सब बड़े स्वाद से खाता था।
गुलाटियाँ लगाता, उल्टा चलता और बॉल से खूब खेलता था। अभी-अभी मम्मी बोलना सीखा था मुझे, पर मी ही ठीक से कह पाता था। हद से ज्यादा प्यार करता था। मेरे सीने से लगकर ही सोता था और जाग रहा हो तो कंधे पर। किचन में भी साथ।
फुल अटेंशन सीकर था। कोई गेस्ट आये तो उड़कर खुद ही आ जाता और उसकी गोदी में बैठ अपना नाम 'स्वीटू' चिल्लाने लगता था। उसे सबसे बात करनी होती। बेटा जब छुट्टियों में घर आता, तो उसकी गर्दन में ही घुसा रहता या फिर उसके गिटार बजाते समय, गिटार पर बैठकर ही सुनता। घर के हर सदस्य के साथ उसके गेम fix थे। रोज़ वही खेलते हुए कभी बोर नहीं होता था। किचन में, मैं और मेरी बेटी के अलावा सिर्फ़ उसका अधिकार था। किसी और की उपस्थिति उसे बर्दाश्त ही नहीं थी, बाहर खदेड़कर ही दम लेता।
ख़ुद चाहे कितना भी चिल्लाए पर वैसे शांतिप्रिय था। कुकर की सीटी और मिक्सी की आवाज सुनते ही गुस्सा करने लगता था। मेरे कान में घुसकर इतने प्यार से बड़बड़ाता कि मैं काम को और लम्बा खींच देती थी। उड़ना आता था पर शैतान ऐसा कि मेरे कंधे पर या सिर पर बैठ ही जीने से उतरता था। गिलहरी और छोटे पक्षियों से ख़ूब दोस्ती थी उसकी। बन्दर और बिल्ली से डरकर मेरे पास भाग आता था और उसके बाद उन पर यूँ अकड़ता जैसे कि अभी भगा ही देगा!
दिखने में ही छुटंकी था बस, पर वैसे पूरे घर को नचाता था। रौनक था इस घर की, उसकी मीठी, प्यारी बोली संगीत की धुन की तरह गूँजा करती।
जब आया था तो इतना नाज़ुक कि मैं छूने से भी डरती थी। लगता था, कहीं उसके मुलायम शरीर को चोट न पहुँचा दूँ। मेरे दोनों बच्चों के जन्म के समय भी इसी अहसास से गुजरी थी कि उन्हें ठीक से थामते समय भी बेहद घबराहट होती थी कहीं लग न जाए, पर समय के साथ माँ सब सीख ही जाती है।
स्वीटू ने भी मुझे सब सिखा दिया था। मेरे जीवन का सबसे जरुरी और ख़ूबसूरत हिस्सा बन गया। परछाईं की तरह साथ चला और अब जब मैं उसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती तो ऐसा सोया कि फिर उठा ही नहीं। यकायक चला गया .... हमेशा-हमेशा के लिए। मेरी चीख-चिल्लाहट सब बेअसर। वो आवाज जिसे सुन वो फुर्र से दौड़े चला आता था, उसके कानों तक एक बार भी नहीं पहुँच सकीं।
बहुत प्यार तुम्हें, मेरे प्यारे बेटू
पर ये समय नहीं था, तुम्हारे जाने का....मैंने तो बच्चों को भी कह दिया था कि तुम दोनों की नौकरी, शादी जब भी होगी तो हो सकता है तुम्हें इस शहर से जाना पड़े। मैं सब कुछ दे दूँगी पर स्वीटू यहीं रहेगा। तुम्हें गोदी में बिठाकर ही तो बोली थी न, ये बात। तुम फिर भी मम्मा से दूर चले गए! कितनी मुस्कानें दी हैं तुमने और गए तो जैसे सब कुछ सदा के लिए एक साथ ग़ुम हो गया है कहीं!
हम सब कैसे रहेंगे, अब तुम बिन?
ईश्वर से क्या कहूँ उसे तो हर बार सिर्फ छीनना ही आया है! जब कभी कुछ पाने का सुख रत्ती भर दिया भी, तो तुरंत ही खोने का दुःख जन्म-जन्मांतर तक के लिए मेरी झोली में डाल दिया। पर तुम उसे भी इतना ही प्यार दोगे, ये भी जानती हूँ।
लव यू, मेरा प्यारा बेटू
Missing you...My Sweetu
- प्रीति 'अज्ञात'
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।