एक समय था जब मैं भी बहुत क्रिकेट देखती थी। शौक़ तो उतना नहीं था पर तब ये चैनल वगैरह तो थे नहीं सो मैच के समय जब सारा घर तैयार होकर टीवी के सामने विराजमान होता तो अपन भी हो जाते थे। फिर धीरे-धीरे इसमें आनंद आने लगा। भारत के हर चौके-छक्के पर पागलों की तरह चीखना, नाचना और अपने खिलाड़ियों के आउट होते ही मातमपुर्सी मनाना कब आदत में शुमार हो गया, पता ही नहीं चला! क्रिकेट का दीवाना भैया ऐसा माहौल बनाकर रखता था कि मैच के समय धड़कनें बढ़ जातीं और आख़िरी पलों में हृदयाघात की आशंका भी। कई बार तो हम लोग शगुन भी करते। जैसे किसी के रूम से बाहर जाते ही या पानी पीते ही कोई आउट होता तो हम बार-बार वही करते। कुछ लोग अपने सौभाग्यशाली सोफ़े या कुर्सी पर बैठते और जरा भी न हिलते। गोया इनकी विराजमान अवस्था से ही उधर बैट हिल रहा है। क्रिकेट प्रेमी हर घर में आप इस तरह की अज़ीबोग़रीब हरक़तें देख सकते हैं। हम भारतीयों के इसी पागलपन ने इस खेल को उच्चतम शिखर पर पहुँचाकर खिलाड़ियों को भगवान् का दर्ज़ा तक दे डाला। सचिन, कपिलदेव, श्रीकांत, युवराज, द्रविड़, धोनी, विराट की मैं भी ख़ूब प्रशंसक रही हूँ।
किसी भी टूर्नामेंट में, मैं केवल भारतीय टीम के ही मैच देखती आई हूँ पर कहते हैं न कि अति हर बात की बुरी होती है। टेस्ट मैच, फ़िफ्टी ओवर, बीस ओवर तक भी ये जुनून थोड़ा क़ायम था पर IPL के आते ही मेरा तो इस खेल से मोहभंग हो गया। समझ ही नहीं आता कि किस टीम का सपोर्ट करो! ऐसे में सारा उत्साह जाता रहता है। मैंने क्रिकेट देखना लगभग छोड़ ही दिया था। वर्ल्ड कप में भी भारत के मैच के अलावा और किसी में कभी रूचि नहीं रही।
जब भारत सेमीफ़ाइनल में हार गया तो बुरा तो लगा पर उतना नहीं! बल्कि इससे अधिक बुरा तो कुछ लोगों की प्रतिक्रियाओं से लगा जिन्होंने तुरंत इस मैच को फ़िक्स घोषित कर दिया और विराट, धोनी पर दोषारोपण की बौछार शुरू कर दी। हम भारतीय, जीत को जितना उल्लास और उत्साह के साथ किसी त्योहार की तरह मनाते हैं, हार को उतनी आसानी से पचा नहीं पाते और बेहद कड़वाहट और तीख़ेपन से हमारे खिलाडियों का मनोबल तोड़ने में भी नहीं चूकते!
खेल, खेल भावना से ही खेला जाना चाहिए। ये हार-जीत भी इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है। हर बार हम ही जीतेंगे तो बाक़ी टीमें ग्राउंड पर चने फाँकने तो नहीं आई हैं! यह बात कुछ लोगों को अवश्य समझनी चाहिए।
ख़ैर! कल रात जब विंबलडन अपने रोमांचक दौर में था और वहाँ भी टाई ब्रेकर था, बेटा लैपटॉप पर उसे देखने में व्यस्त था, तभी यूँ ही विश्वकप-2019 का परिणाम जानने की उत्सुकता से मैंने टीवी ऑन कर लिया। अंतिम तीन या चार ओवर का मैच शेष था और उफ़्फ़! क्या मैच था! इतना जोरदार मैच क्रिकेटप्रेमियों के लिए किसी उपहार से कम नहीं था। वर्षों बाद ऐसा रोमांचक मैच देखा है जिसमें अपनी टीम थी भी नहीं! पर धड़कनें उसी गति से रफ़्तार पकड़ चुकीं थीं।
कल जीत का सेहरा भले ही इंग्लैंड के सिर बँधा पर मैं तो न्यूजीलैंड के साथ थी। उनकी संघर्ष क्षमता कमाल की थी। और भला ये भी कोई बात हुई कि मैच के बाद जब सुपरओवर भी टाई रहा तो आप बॉउंड्रीज़ गिनकर नतीजा तय करने लगे! फिर विकेट क्यों नहीं गिने? अब क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को अपने नियमों पर पुनर्विचार की बहुत आवश्यकता है। भले ही इंग्लैंड अपने शानदार प्रदर्शन के बलबूते पर ही फाइनल में पहुँचा था पर ये तो एकदम आरक्षण टाइप जीत हुई भई!
कहने को तो कह लो कि इस रोमांचक मैच में जीत क्रिकेट की हुई पर न जाने क्यों इंग्लैंड के विजेता होते ही मेरे मन में ये डायलॉग बारबार चल रहा था "डुगना लागान डेना परेगा।"
- प्रीति 'अज्ञात'
#worldcup2019 #cricket #Indianfan #ICCRules
Photo Credit: Google
किसी भी टूर्नामेंट में, मैं केवल भारतीय टीम के ही मैच देखती आई हूँ पर कहते हैं न कि अति हर बात की बुरी होती है। टेस्ट मैच, फ़िफ्टी ओवर, बीस ओवर तक भी ये जुनून थोड़ा क़ायम था पर IPL के आते ही मेरा तो इस खेल से मोहभंग हो गया। समझ ही नहीं आता कि किस टीम का सपोर्ट करो! ऐसे में सारा उत्साह जाता रहता है। मैंने क्रिकेट देखना लगभग छोड़ ही दिया था। वर्ल्ड कप में भी भारत के मैच के अलावा और किसी में कभी रूचि नहीं रही।
जब भारत सेमीफ़ाइनल में हार गया तो बुरा तो लगा पर उतना नहीं! बल्कि इससे अधिक बुरा तो कुछ लोगों की प्रतिक्रियाओं से लगा जिन्होंने तुरंत इस मैच को फ़िक्स घोषित कर दिया और विराट, धोनी पर दोषारोपण की बौछार शुरू कर दी। हम भारतीय, जीत को जितना उल्लास और उत्साह के साथ किसी त्योहार की तरह मनाते हैं, हार को उतनी आसानी से पचा नहीं पाते और बेहद कड़वाहट और तीख़ेपन से हमारे खिलाडियों का मनोबल तोड़ने में भी नहीं चूकते!
खेल, खेल भावना से ही खेला जाना चाहिए। ये हार-जीत भी इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है। हर बार हम ही जीतेंगे तो बाक़ी टीमें ग्राउंड पर चने फाँकने तो नहीं आई हैं! यह बात कुछ लोगों को अवश्य समझनी चाहिए।
ख़ैर! कल रात जब विंबलडन अपने रोमांचक दौर में था और वहाँ भी टाई ब्रेकर था, बेटा लैपटॉप पर उसे देखने में व्यस्त था, तभी यूँ ही विश्वकप-2019 का परिणाम जानने की उत्सुकता से मैंने टीवी ऑन कर लिया। अंतिम तीन या चार ओवर का मैच शेष था और उफ़्फ़! क्या मैच था! इतना जोरदार मैच क्रिकेटप्रेमियों के लिए किसी उपहार से कम नहीं था। वर्षों बाद ऐसा रोमांचक मैच देखा है जिसमें अपनी टीम थी भी नहीं! पर धड़कनें उसी गति से रफ़्तार पकड़ चुकीं थीं।
कल जीत का सेहरा भले ही इंग्लैंड के सिर बँधा पर मैं तो न्यूजीलैंड के साथ थी। उनकी संघर्ष क्षमता कमाल की थी। और भला ये भी कोई बात हुई कि मैच के बाद जब सुपरओवर भी टाई रहा तो आप बॉउंड्रीज़ गिनकर नतीजा तय करने लगे! फिर विकेट क्यों नहीं गिने? अब क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को अपने नियमों पर पुनर्विचार की बहुत आवश्यकता है। भले ही इंग्लैंड अपने शानदार प्रदर्शन के बलबूते पर ही फाइनल में पहुँचा था पर ये तो एकदम आरक्षण टाइप जीत हुई भई!
कहने को तो कह लो कि इस रोमांचक मैच में जीत क्रिकेट की हुई पर न जाने क्यों इंग्लैंड के विजेता होते ही मेरे मन में ये डायलॉग बारबार चल रहा था "डुगना लागान डेना परेगा।"
- प्रीति 'अज्ञात'
#worldcup2019 #cricket #Indianfan #ICCRules
Photo Credit: Google
Behatreen vishleshan, ek baar fir se criket ke rules ko modifiy karne ki jarurat sach me lagti hai...
जवाब देंहटाएंजी, धन्यवाद :)
हटाएंमन है कितने ख्याल बुनता रहता है ...
जवाब देंहटाएंदुगना लगान ...
जी, शुक्रिया
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