गुरुवार, 4 जून 2020

कोरोना के दौर में कन्या राशि वालों के साथ ऐसा क्रूर मज़ाक!



'आज का राशिफल', गूगल सर्च पे ये पेज अचानक ही खुल गया. अब इस मुश्क़िल समय में देश-दुनिया के भविष्य को लेकर अपन चिंतित तो हैं ही. सो थोड़ा जानने का कौतुहल हुआ. यूँ  तो हम सब आधुनिक लोग बिल्ली के रास्ते काटने वाली बात पर भी विश्वास नहीं करते, पर किसी न किसी बहाने से रुक तो जाते ही हैं न! बस, डिट्टो इसी भाव से ओतप्रोत थे हम. बस दिक़्क़त ये है कि हमारी राशि अब तक क्लियर नहीं हो पाई है. पंडिज्जी ने 'ह' पर नाम रख कर्क राशि डिक्लेअर कर दी. नाम रखा गया 'प' से, तो अपन कन्या की तरफ लुढ़क लिए. अब जन्म की तारीख़ अगस्त में है, वो हमें सीधा लियो(Leo) बन दहाड़ने को कहती है. सो अपन इन तीनों त्रिवेणी को बड़े चाव से पढ़ते हैं और अपनी पसंद का माल चुन लिया करते हैं. आज बहुत फ़ुर्सत थी तो हमने सारी राशियों की सैर की. अब पछता रहे.

जैसे ही पढ़ा कि "कन्या राशि वालों के विदेशी लोगों से रिश्ते बनेंगे", मारे घबराहट हम तो पसीना-पसीना हो गए. कोरोना दौर में कन्याओं के साथ ऐसा क्रूर मज़ाक करना अच्छी बात नहीं है. ये तो हमें मारने की सरासर धमकी है? आगे लिखते हैं, "विदेश यात्रा के योग हैं." क़सम से पहली बार हमको किसी अच्छी बात को पढ़कर भीषण दुःख और अपमान महसूस हुआ. आपसे ही अंतिम आसरा बँधा था हमरा. बहुत चोट पहुंची है आज हमारे कोमल ह्रदय को. 
मतलब महाराज, आप कहना क्या चाह रहे? कोरोना काल में जबकि यातायात के सभी साधन बंद हैं तो बताइये प्रभु, ऐसे में ये योग बनेगा कैसे! आप पर्सनल पुष्पक विमान भेज रहे हैं क्या? वरना तो एक ही तरीक़ा बचता  है कि यहाँ से सीधा नदी में छलांग मारें, लाश बनें और बहते-बहते डायरेक्ट अरब की खाड़ी में जा मिलें. अब आरती शाह तो हैं नहीं कि तैरते तैरते इंग्लिश चैनल पार कर लेंगे. आपको क्या पता कि इधर तो बरसाती खड्डों को लाँघते हुए भी चार बार 'पवनसुत हनुमान की जय' का जाप लगता है. उस पर भी तीन बार घनघोर कीचड़ में सनने का लुत्फ़ उठा चुके हैं. वो हमारी टाँग छोटी है न तो कैलकुलेशन गड़बड़ा जाता है. अब आप मुस्कियाकर कहेंगे कि कीचड़ में ही कमल खिलता है. लेकिन हम इस बात के राजनीतिकरण के सख़्त ख़िलाफ़ हैं. हो सकता है आप रातोंरात हमें पाकिस्तानी बॉर्डर पे ही फिंकवा दो, बाक़ी तो हमें कंटीले तारों के पास से घसीटते हुए ले जाने वाले कर ही देंगे. लो, जी हो गई विदेश यात्रा! आपके कट्टर वाले समर्थक तो इसे भी सही सिद्ध कर देंगे कि गुरूजी ने ज़िंदा या मुर्दा स्पष्ट ही कहाँ किया था! 
सुनो, आप हमको इधर ही गोली मार दो न. विदेशी कोरोना से काहे मरवा रहे. स्वदेशी भी ईक्वली (Equally) गुड हैं. अब लोकल पे वोकल होना तो मांगता है.

कन्या से निराशा मिली तो सिंह की ओर बढ़े. लेकिन आज तो भगवान जी ने हमसे जन्मों की खुन्नस निकालने का तय ही कर लिया था जैसे. यहाँ जो लिखा था उसने हमें गहरे शोक और अवसाद के कुँए में फिर जा फेंका. आदरणीय मुए जी ने लिखा था कि आपको रोज़गार में घाटा होगा. हमें इस 'घाटा' शब्द से तनिक भी आपत्ति नहीं है बल्कि दिक्कत 'रोज़गार' से है. अब ये तो सारी दुनिया जानती कि हम घोषित ‘कट्टर बेरोजगार’ हैं. हम ही क्या सभी हिंदी लेखक, समाज सेवक ही हैं. एक दिन स्वयं के ही समर्पण और लगन से सम्पूर्ण आहत होकर हमने ही खुद को ये नाम दे दिया था. वो क्या है न दुख की जड़ पता हो तो दरद थोड़ा कम होता है! अपनी लाइफ तो जैसे-तैसे धक्का मार चल ही रही, पर जाने क्यों आज ये तीन शब्द देख 'कंगाली में आटा गीला' वाला मन हो गया है. थोड़ा आगबबूला और मुँह फूला सा भी प्रतीत हो रहा.

सोचा, चलो कर्क राशि दग़ा न देगी. अब इस को पढ़कर ही अपने छालों पर रुई का ठंडा फाहा रख लेते हैं. इस उमस भरे मौसम में दिल की फ़िज़ूल जलन पे कुछ तो कूल लगे. पर या तो हम नासपीटे हैं या आज का दिन ही शनिच्चर निकला. यहाँ लिखा था कि "दोस्तों से मेल मिलाप का उत्तम योग है." अब हम समझ गए कि हमारा कुछ न हो सकता! मौत ने हमको चारों तरफ से घेर लिया है. मित्रों के गले लग उनकी हेल्थ को तो नुकसान नहीं पहुँचा सकते. क्या पता हम ही कोरोना पीड़ित हों. अब ये दुष्ट वायरस भी तो asymptomatic हो चला है. बस सारे मित्रों को दुआ देने के पश्चात हमने हालात से हार मानते हुए बिना लाइसेंस वाली चोरी की बंदूक निकाल ली है. पर अब भी एक भयंकर परेशानी है. सोच रहे हैं  कि गोली दाईं कनपटी में मारें कि बाईं? वो क्या है न कि हमें हिंसक गतिविधियों में लिप्त होने का थोड़ा कम एक्सपीरियंस है. हम तो झाड़ू मारते समय अगर चींटी  भी आ जाए तो उसे झाड़ू संग घसीटते नहीं बल्कि रुक जाते हैं. और प्यार से कहते हैं कि "कोई बात नहीं मुनिया रानी, पहले तू क्रॉस कर ले!" तो अब आप ही इस समस्या का निदान करो कि किधर मारना शुभ होगा पंडिज्जी? पिलीज़ निश्चित समय भी बता दो कि डायरेक्ट स्वर्ग में, फ्रंट रो में ही एंट्री मिले. हमको उधर पहुँच श्री बेजान दारुवाला जी को उनकी शानदार भविष्यवाणियों के लिए धन्यवाद देना है. तभहि चुपके से पूछ भी लेंगे कि "क्यूट वाले अंकल जी, क्या आप अपनी मृत्यु  का राज़ जानते थे?"

इधर शेष राशियों वाले कह रहे, "सावधानी बरतें वरना धोखा हो सकता है." अब ये इन्होने कौन सा आर्कमिडीज़ का नया सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया है जो जनता को नहीं पता था? कोई सलाह दे रहा, "अपनी आँखें और नाक-कान खुले रखें." बताओ, हमाये मोई जी ख़ुद टीवी पे भी गमछा बाँध के आ रहे और ये लोग हैं कि हमें देशद्रोही बनाने को उकसा रहे!
बारह राशियाँ और जनता 130 करोड़. बहुत नाइंसाफ़ी है ठाकुर! औसतन 11-12 करोड़ लोगों के साथ रोज़, एक सा मज़ाक हो रहा जिसमें सारे अख़बार और चैनल वाले लोग भी सहायक हैं. आप भी कान खोलकर सुन लो जी. हम ये अत्याचार और नहीं सह सकते! हमारी कोमल भावनाओं की हत्या करके आपकी करोड़ों की कमाई आपको फलेगी नहीं!
ग्रह अपने हिसाब से घूम रहे, कोरोना अपने हिसाब से. इस समय 'कौन सी राशि फ़लदायक है', देखने से अच्छा है कि फ़ल को धोकर खाया जाए. 

अभी रात्रि के दो बजकर अठ्ठाईस मिनट हुआ चाहते हैं. कुछेक उलूक भी साथ जग रहे हैं. कुत्तों के रोने की आवाज़ वातावरण को मदहोश कर रही है. सन्नाटे ने ग़ज़ब हसीन समां बना रखा है. पेट में चूहों का कत्थक महोत्सव चल रहा है. आँखें मालपुए का रूप ले चुकी हैं. बस अब लाइट और चली जाए तो जीने का सही लुत्फ़ आए! हम अब अपने प्रेमी की तस्वीर को प्यार से देख उसे गुडनाइट कह रहे हैं. उफ़! ये क्या! अचानक जीवन की ललक बढ़ गई है. हाइला! अब हम जीकर ही रहेंगे.
सुनिए, राशिफ़ल वाले ज्योतिषी जी "स्टॉप प्लेयिंग विथ अवर मासूम इमोशंस. वन मोर थिंग...हे! व्हाई डोंट यू प्लीज किल योर सेल्फ़!"
क्या कहें, माथा ऐसा ठनका हुआ है कि जी कर रहा सबकी सामूहिक ठुकाई कर दें. पर हम हिंसक हो नहीं सकते न! मजबूरी है.
- प्रीति ‘अज्ञात’
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1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर व्यंग्य! हमने भी खंगाला। राशि फल! लिखा था 'बड़ी राशि मिलेगी'। तब से माथा पर हाथ धरे सोंच रहा हूँ 'पैसा या पुनर्जन्म!'

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