मंगलवार, 11 अगस्त 2020

आज भी क्यों जरुरी हैं कृष्ण?

 

हम आस्थाओं से तरबतर देश के नागरिक हैं. संस्कृति के रक्षक कहलाते हैं और इसे बचाने के लिए कट्टर कहलाये जाने से भी तनिक गुरेज़ नहीं करते! सनातन परम्पराओं की रक्षा हेतु हम अपने प्राण तजने को भी आतुर हैं (ऐसा बहुत से लोग कहते हैं). 

प्रश्न यह है कि जिस ईश्वर की हम शपथ लेते हैं, जिसे दिन-रात पूजते हैं, जिसकी छवि अपने हृदय में बसाए रखने का भरम पालते हैं फिर उस ईश्वर के आदर्शों को कैसे भूल जाते हैं?

मैं बहुत धार्मिक तो नहीं हूँ पर किसी अदृश्य, अनाम शक्ति के प्रति आस्था अवश्य रखती हूँ. प्रकृति की अपार सुन्दरता को जब-जब निहारती हूँ तो सदैव ही उस चेहरे को खोजती हूँ जिसने जल को इतनी निर्मलता दी. वृक्षों को हरियाली देकर उनकी गोदी फल-फूलों से लबालब कर दी, साथ ही उन्हें छाया का हुनर देकर अपनी पूँजी को बाँटना भी सिखा दिया. नदियों को तमाम झंझावात के मध्य भी कलकल करते हुए बहना सिखाया.  पर्वतों को हमारा प्रहरी बनाया और सूर्य में जीवन तत्व भर दिया. उसके बाद इन सभी की आपस में ऐसी मित्रता कराई कि सृष्टि के निर्माण से लेकर अब तक ये समस्त तत्व हम सबका जीवन सुरक्षित रखे हुए हैं. बिना किसी बैरभाव के इनका एक ही लक्ष्य है, हमारे अस्तित्व को बचाए रखना. बदले में हमने इन्हें क्या दिया, यह सोचने मात्र से ही हमारा हृदय अपराध-बोध से भर जाता है.

खैर! मनुष्य को तो जीवन मूल्य भी सीखने थे परन्तु वह प्रकृति से कोई ज्ञान नहीं ले सका. स्वभावतः उस पर अपना अधिकार ही समझ बैठा! इन्हीं नासमझ मानवों के लिए श्रीकृष्ण अवतरित हुए. मुझ जैसा सतही तौर पर धार्मिक जानकारी रखने वाला इंसान भी इतना तो समझता ही है कि उन्होंने जन-जन को प्रेम के मायने सिखाए. मित्रता कैसी होती है, यह बतलाया. श्रीकृष्ण ने न केवल स्त्रियों की कोमल भावनाओं को महत्त्व दिया बल्कि उन्हें सशक्त करने में भी अपार योगदान दिया. उन्हें सम्मानपूर्वक देखा, उनकी भक्ति का मान रखा. विष को अमृत में बदल दिया. करुणा के भाव का जनमानस में संचार किया. धनवान और निर्धन के मध्य कोई अंतर न रखा और सारे उदाहरणों को प्रस्तुत कर मानव जाति को भेदभाव से ऊपर उठ जीवन जीने का सन्देश दिया. 

 कृष्ण, स्त्रियों को इसीलिए सर्वाधिक प्रिय हैं क्योंकि वे उन सा साथी चाहती हैं, जो प्रेम करे तो ऐसा जो उन्होंने राधा से किया. वो दोस्त बने तो गोपियों के सखा जैसा या फिर ऐसा जो सुदामा के प्रति था. भाई हो तो ऐसा जो सुभद्रा ने पाया. एक रक्षक हो तो ऐसा जो द्रौपदी के लिए था. नायक हो तो ऐसा जिसके होंठों पर मुरली सज प्रेमधुन गुनगुनाती है और सब उसकी ओर खिंचे चले आते हैं. एक ऐसा प्यारा साथी जो अवसर मिलते ही मीठी शैतानियों से भी बाज़ नहीं आता! 

कृष्ण के हर रूप में प्रेम है. उनके व्यवहार में प्रेम है. उनकी आँखों से प्रेम घटा बरसती है और उनकी मुरली जब कोई मीठी धुन छेड़ती  है तो सम्पूर्ण वातावरण प्रेममय हो जाता है. राधा-कृष्ण का प्रेम अमर है तो इसलिए क्योंकि उन्हें एक दूसरे का सम्मान करना आता था, परस्पर भावनाओं की क़द्र थी, प्रेम इतना कि दूर होकर भी रत्ती भर कम न हुआ. दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे थे. प्रेम वही सच्चा होता है जो अनकंडीशनल हो, जिसमें हम दूसरे पक्ष को जस का तस स्वीकार करें, जिसमें आकर्षण  से परे आत्माओं का मिलन पहली प्राथमिकता हो. यही वह प्रेम है जो बिछोह के बाद भी रहता है. युगों- युगों तक रहता है.

जब ईश्वर ने हमें प्रेम के हर रूप से मिलवाया है तो उसके पूजक ईर्ष्या, वैमनस्य, अपराध कहाँ से सीख गए? हम जिस मुरलीधर का गुणगान करते नहीं थकते, जिसका रूप हमें मोह लेता है. उसके जीवन मूल्यों को क्यों नहीं अपना पाते? हम तो प्रेम के दुश्मन अधिक बन बैठे हैं. परिवारों को ख़त्म कर देने को तैयार हैं! हमें प्रेम कहानियाँ पसंद तो हैं पर फ़िल्मी! असल जीवन में तो तलवारें खिंच जाती हैं, इज़्ज़त दाँव पर लगती नज़र आती है, समाज में नाक कट जाने का भय खाने दौड़ता है. 

जो हम कृष्ण के सच्चे साधक हैं तो हमें उन्हें  पूजने के साथ ही, इस वर्तमान समाज का प्रहरी मान उनसे सीख लेनी चाहिए. श्रीकृष्ण का सांस्कृतिक और सामाजिक स्वरुप हमारी संस्कृति और सभ्यता के लिए आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पूर्व रहा होगा.

- प्रीति 'अज्ञात'  

#श्रीकृष्ण #राधाकिशन #प्रेम 

 #Photo Credit: Google

6 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक आलेख _ कृष्ण हर काल , हर युग में प्रासंगिक रहेंगे😊

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  2. कृष्ण ने मिथ्या मर्यादाओं और पुरुष के दम्भ की दीवारों से नारी चेतना को मुक्त किया। इसीलिए सबसे अधिक संख्या में भक्ति काल में नारी कवयित्रियीं ने कृष्ण को ही अपना आराध्य बनाया।
    https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2020/03/blog-post_65.html?m=1

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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