मंगलवार, 5 जनवरी 2021

#संन्यास विवाह से ट्विटर के कौवों को सीख लेनी चाहिए!

हाल ही में एक ख़बर वायरल हो रही है जिसमें संन्यास जीवन को अपनाने के बाद दो लोगों ने विवाह का निश्चय किया और अब वे गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर चुके हैं. कारण था मोहब्बत! विवाह की इससे अधिक ख़ूबसूरत वज़ह कुछ और होनी भी नहीं चाहिए! प्रेमियों का हक़ है ये कि वे उम्र भर साथ रहें! प्रेम में डूबे लोग, किसी का दिल नहीं दुखाते, किसी को लूटते नहीं, परेशान नहीं करते. वे प्रेम से रहना चाहते हैं और इसी भाव की अपेक्षा दूसरों से भी रखते हैं.

अच्छी बात ये है कि इस शादी से वहाँ उपस्थित लोग भी प्रसन्न होते नज़र आ रहे हैं और किसी ने भी अब तक कोई ऊलजलूल बात नहीं की है बल्कि कई संन्यासी इस शादी के गवाह बने हैं. उस वीडियो को देखने-सुनने के बाद लगता है कि समाज के एक विशेष टेढ़े वर्ग को इन गाँव वालों से सीख लेनी चाहिए! ये वर्ग जो सोशल मीडिया पर अपने आपको कूल और अल्ट्रा मॉडर्न समझते नहीं थकता लेकिन अमृता सिंह से लेकर प्रियंका चोपड़ा और मलाइका अरोड़ा तक को अपने पति की माँ बोलने से नहीं चूकता! उन पर छींटाकशी और भद्दे मजाक करता है! उस पढ़े लिखे, नफ़रत पोसते वर्ग को बटेश्वर के इन लोगों से यह ज्ञान प्राप्त कर ही लेना चाहिए कि 'खग ही जाने खग की भाषा'. प्रेम का अर्थ केवल प्रेम ही होता है और यह उसके अलावा और किसी भी भाषा में यक़ीन नहीं करता. प्यार में उम्र तो कोई मायने ही नहीं रखती!

'न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन
नयी रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो'
इंदीवर के लिखे इस गीत को जगजीत सिंह ने हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि लगभग 40 साल बाद भी यह रीत अब तक इस समाज में सहजता से नहीं स्वीकारी गई है. बल्कि समाज तो शब्दशः  इसका उल्टा करके चलता है. वो उम्र देखता है, जन्म, जाति, पैसा सब में भरपूर दखल देता है पर मन देखना और उसे समझना इसने सीखा ही नहीं! दुनिया भर को प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले हमारे देश में सबसे ज्यादा गाज प्रेमियों पर ही गिरती आई है. सबसे अधिक प्रश्न प्रेमियों से ही पूछे गए हैं, सबसे अधिक तिरछी निगाहों का सामना उन्हें ही करना पड़ा है. सबसे अधिक हतोत्साहित (ज़लील ही पढ़िए इसे) उन्हें ही किया गया है, सबसे अधिक नफ़रत और बद्दुआ उन्हीं के पवित्र हृदय को पीड़ा देती आई है. धर्म और इज्ज़त के नाम पर हिंसा का ख़ूनी खेल, सबसे अधिक प्रेमी युगल के साथ ही खेला जाता है. 

हम जिस 'भद्र' समाज का हिस्सा हैं उसी में आज भी स्त्री की उम्र अधिक होने पर, पुरुष को फँसाने जैसे घिनौने इल्ज़ाम भी उसी के मत्थे मढ़ दिए जाते हैं. अक्सर ही प्रेम को किसी एक पक्ष की साज़िश कहकर, उसके ख़िलाफ़ नई क़िस्म की साज़िश रच दी जाती है. इस तरह के लोगों का लक्ष्य एक ही है, प्रेम को नष्ट करके, घृणा के बीज बोना और फिर ये उम्मीद भी करना कि इसका मैडल भी उनको नवाजा जाए कि कैसे वे  इस समाज के कट्टर रक्षक बन इस दुनिया में अवतरित हुए हैं.

बटेश्वर धाम के इस जोड़े का विवाह, निम्न मानसिकता से भरे लोगों की सोच के सामने एक सहज उत्तर बनकर प्रस्तुत होता है. ये हारे-घबराए हुए लोगों को उम्मीद का उजाला भी देता है. साथ ही समाज को ये उदाहरण भी देता है कि जीवन के किसी भी दौर में जब अकेलापन महसूस हो, बेहिचक उस अपने का हाथ थाम लो जिसे हमारे लिए ही बनाया गया है.
ईश्वर करे कि उसके दरबार में फलते-फूलते इस प्रेम को, विशेष आशीर्वाद प्राप्त हो. इस युगल का वैवाहिक जीवन इसी प्रेम की छाया में पल्लवित होता रहे और हमें प्रेम की इतनी कहानियाँ पढ़ने को मिलें कि हमारा मन अचरज़ से न भरे! 
अब समय आ चुका है कि प्रेम इस समाज का अभिन्न भाव बनकर रहे, उसमें भीतर तक समा जाए. प्यार, इश्क़, मोहब्बत की कहानियाँ इतनी आम हो जानी चाहिए कि इन्हें ख़ास समझ, इस पर चर्चा बंद ही हो जाए.  
- प्रीति 'अज्ञात' 
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