सोमवार, 1 मार्च 2021

एक चिट्ठी, इस दुनिया की हर आयशा के नाम!

मेरी प्यारी आयशा 

अभी जबकि लगभग एक सप्ताह बाद पूरा देश मिलकर, महिलाओं को उनके दिवस की बधाई देने में जुट जाएगा, इस बीच तुमने साबरमती में कूदकर अपनी जान दे दी है. इतना ही नहीं बल्कि आत्महत्या से पहले एक वीडियो भी बनाया है जिसका एक-एक शब्द झकझोर कर रख देता है. जीवन के आखिरी पलों के दौरान भी अभिवादन की तुम्हारी तहज़ीब देखकर मैं हैरान हूँ. तुम अंत में थैंक यू कहना भी नहीं भूलतीं. लेकिन सच कहूँ तो तुम्हारी निडर आवाज़ और मुस्कान ने डरा दिया है  मुझे. न जाने वो कौन से पल रहे होंगे कि तुमने मृत्यु को सुख पाने का मार्ग समझ लिया.

मुझे बेहद दुःख और अफ़सोस है कि हम इस दुनिया को तुम्हारे जीने लायक बनाने में विफ़ल रहे.

हम एक ही शहर के हैं पर कभी मिले नहीं. मेरा तुमसे जो नाता है वो साबरमती का है, रिवर फ्रंट का है. ये जगह मुझे हमेशा से सुकून भरी लगती रही है. तुमने भी अपने वीडियो में सुकून की बात कही है. पर कितना फ़र्क है तुम्हारे और मेरे सुकून में! तुम कहती हो "मैं हवाओं की तरह हूँ, बस बहना चाहती हूँ और बहते रहना चाहती हूँ. किसी के लिए नहीं रुकना". और मैं चाहती हूँ कि काश तुम नदी के पानी से अठखेलियाँ करतीं और जीवन धार में बहती जातीं. हर संघर्ष का सामना करतीं. ये जीवन तुम्हारा अपना है, तुम्हें इसे पूरा और बेबाकी के साथ जीना था.

तुम्हारे चेहरे पर सहज मुस्कान है लेकिन आँखों में दर्द का इक सैलाब भरा है. एक ऐसा सैलाब, जिससे हर स्त्री किसी-न-किसी रूप में जरुर रिलेट कर सकेगी. तुम्हारे जो शब्द हैं, वो हमारे मस्तिष्क पर तमाचे की तरह पड़ते हैं. तमाचा, जो बार-बार यही याद दिलाता है कि तुम में और आयशा में कोई फ़र्क नहीं! 

लेकिन ये बताओ कि इतनी मानसिक पीड़ा के बावजूद भी तुमने महान बनने का वह नैसर्गिक गुण क्यों नहीं छोड़ा? जिसे हम स्त्रियों ने सदियों से किसी मंगलसूत्र की तरह दिल से लगाकर रखा है. तुम्हें एक बार को भी नहीं लगा? कि जब तक स्त्रियाँ अन्याय को सहती रहेंगी, उसके विरोध में आवाज़ उठाने की बजाय चुप्पी साध लेंगी और उफ़ तक न करेंगी, तब तक उनकी असमय मृत्यु का ये दौर अनवरत जारी रहेगा! तुम्हें बहुत हिम्मत दिखानी थी, गुड़िया. 

आयशा, तुम्हारी बातें सुन जितनी पीड़ा हुई है, उतना ही क्रोध भी आया है. यूँ भी दिल किया कि तुम्हें डांटकर कहूँ "पागल लड़की! तुम्हें निकल आना था, उस ज़हन्नुम से! डूबते हुए भी तुम एक दहेज़ लोभी इंसान को बचाना चाहती हो? उसे बरी करना चाहती हो? ये कैसी मोहब्बत है तुम्हारी कि जिसने तुम्हारा जीवन बरबाद कर दिया, तुम अपनी जान देकर उसे बचा रही हो?" तुम्हारे पापा-मम्मी ने तुम्हें कितना रोका, क़समें दीं, मिन्नतें कीं. यहाँ तक कि दहेज़ का केस वापिस लेने को भी तैयार हो गए, तब भी तुम हार गईं? तुम्हें नहीं पता कि तुम कितनी भाग्यशाली थीं कि तुम्हारे पेरेंट्स तुम्हारे साथ थे. 

पता है, तुम केवल मोहब्बत हो! और तुम्हें खोने वाले अभागे. तुम अपने पिता से आग्रह करती हो कि "कब तक लड़ेंगे अपनों से? आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी. प्यार करते हैं उससे, उसे परेशान थोड़े न करेंगे. अगर उसे आज़ादी चाहिए, ठीक है वो आज़ाद रहे".

काश! तुम्हारी ये बात दुनिया समझ ले तो हर चीज़ सुंदर हो जाए. जो तुम ठहरतीं तो दुनिया आसानी से समझ पाती.

जानती हो, तुमसे कोई गलती नहीं हुई थी और न ही तुम में या तुम्हारी तक़दीर में कोई कमी थी. बस, तुम अपने-आप को नहीं जान पाई. तुम उन अपनों को भी नहीं देख पाई जो तुमसे बेपनाह प्यार करते हैं. तुमने अपना जीवन एक ऐसे इन्सान की ख़ातिर गँवा दिया, जिसे पैसे से प्यार था. लेकिन सारे इन्सान बुरे नहीं होते! 

हाँ, तुम्हारी ये बात सच है कि "मोहब्बत करनी है तो दोतरफा करो एकतरफा में कुछ हासिल नहीं!" इसमें एक बात और जोड़ती हूँ कि मोहब्बत दोबारा भी हो सकती है. ये बात याद रखना अब. 

तुम्हारा आखिरी फोन कॉल दिल दहला देने वाला है, आयशा. तुम्हारे आँसुओं ने बेहद रुलाया है. तुम्हारे माता-पिता का सोचकर भी कलेज़ा कांप उठता है. मैं उस पिता की निरीह अवस्था और हताशा को सोचती हूँ जिसे फ़ोन पर पता चलता है कि अगले ही पल उसकी बेटी नदी में छलांग लगाने वाली है. उस माँ के दर्द को समझने की नाकाम कोशिश करती हूँ जो बार-बार तुमसे रुकने का अनुरोध कर रही है. मासूम लड़की, तुम्हें परिस्थितियों का डटकर सामना करना था. अपने आप को किसी से कम नहीं आंकना था. तुम अपार संभावनाओं से भरा चेहरा थीं.

तुम्हारी विदाई का गुनहगार ये समाज भी है जो तुम्हारे लिए ऐसा वातावरण ही नहीं बना पाया कि तुम स्वयं को अकेला न महसूस कर सको. या फिर इसे तुम्हें अकेले चलना सिखा देना चाहिए था. तुम्हें बता देना चाहिए था कि तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारे जीवन की तरह कितनी अनमोल है. 

मैं तुम जैसी तमाम लड़कियों से कहना चाहती हूँ कि आख़िर हम क्यों अपने सपनों और खुशियों को किसी और के जीवन से जोड़ें? हम क्यों न अपने हक़ की लड़ाई खुद लड़ें? किसी से इतनी अपेक्षा क्यों रखें कि उनके पूरा न होने पर हम ही टूट जाएँ. आत्महत्या, तो अवसाद की पराकाष्ठा है. हम इस राह से बाहर निकल, आत्मसम्मान के साथ जीना क्यों न चुनें? सब अच्छे लोग यूँ दुनिया को छोड़ देना चुन लेंगे, तो इसे संवारेगा कौन?

तुम जहाँ भी हो, हर ख़ुशी तुम्हारे साथ हो.

स्नेह तुम्हें 

प्रीति अज्ञात 

https://www.ichowk.in/society/ayesha-suicide-due-to-dowry-in-jalore-sabarmati-riverfront-in-ahmedabad-recorded-video-is-heart-breaking-open-letter-to-ayesha/story/1/19565.html

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6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रीतिजी , समाज और परिवार से क्षुब्ध और पराजित एक युवा लड़की का यूँ ख़ुशी- ख़ुशी   मौत को गले लगाना  आँखें  नम कर गया ! आयशा का     वीडियो  आपके लेख के बाद ही देखा !स्तब्ध हूँ ! आखिर एक लडकी सबके होते इतनी मायूस क्यों हुई कि अपनी अनमोल जान इसनी आसानी से गँवा दी |  काश कोई आयशा    को   आशा  की एक किरण दे  पाता !आयशा की निष्कलुष  मुस्कान  मन को विदीर्ण कर गयी |ये घटनाएं देखकर लगता है  कि शिक्षित होकर  समाज सभी क्यों ना  हो सका  ? मर्मान्तक लेख !

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  2. दिल को बेचैन और प्रेरित दोनों ही एक ही समय में करता है आपका यह लेख प्रति जी। सचमुच हर ऐसी लड़की यदि परिस्थितियों का सामना करने का विकल्प चुने तो समाज की दशा कुछ अलग ही होती। जीवन से जूझने वाले कुछ उदाहरण भी इसी समाज में मौजूद हैं। बहुत सही लिखा आपने। 🙏🌹💖🌹🙏

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  3. श्याम सुन्दर शर्मा10 नवंबर 2022 को 11:38 am बजे

    आत्महत्या वास्तविकता से पलायन ही होती है, इस उम्मीद की उस पार जाकर सब कुछ पीछे छूट जाएगा... पर ऐसा कभी नहीं होता... काश आयशा समय रहते यह समझ पाती... साहस पूर्वक चुनौतियों का डट कर सामना करते रहती...

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