गुरुवार, 30 नवंबर 2017

जब तक जीवन शेष है, हर बात की गुंजाइश शेष है।

पता है तुम्हें? प्रत्येक स्त्री के जीवन में वह क्षण एक बार तो आता ही है जब उसे यह लगने लगता है कि किसी को उसकी ज़रुरत नहीं और उसके चले जाने से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला। वो अपने-आप को जी भरकर कोसती है कि कैसे इसके लिए, उसके लिए; उसने सब कुछ किया। अपने त्याग भी मन-ही-मन गिनती है और उदास रहने लगती है। इसे हॉर्मोन्स के मत्थे मढ़ तसल्ली भले ही कर ली जाए पर इस तनाव, चिड़चिड़ाहट के बाद का पड़ाव अवसाद ही है। जो उसके अंदर जीने की इच्छा को ख़त्म कर देता है या फिर उसकी उपस्थिति दूसरों का जीना भी दूभर कर सकती है। स्त्री की समस्याओं को समझने और उसके निवारण के लिए जितने समय, धैर्य और सहानुभूति की आवश्यकता होती है....ज़िम्मेदारियों से जूझते पुरुष से उसकी उम्मीद कर पाना बेमानी ही है। आख़िर वह भी तो एक इंसान ही है, उसे कोई अदृश्य शक्ति या सुपरपॉवर नहीं मिली हुई हैं। इसलिए स्त्री को स्वयं ही ख़ुश रहना सीखना होगा...किसी और को ख़ुश करने के लिए नहीं बल्कि अपने भीतर की 'पीड़िता' को दूर भगाने के लिए। उसे मज़बूरी के बस्ते में बंद अपनी पसंद को झाड़-पोंछकर बाहर निकालना होगा। घर-गृहस्थी की व्यस्त्तता को सुव्यवस्थित करना होगा। याद रहे जब चाहत हो तो हर काम के लिए समय निकल आता है। चाहे वो बाग़वानी हो, पेंटिंग हो, पॉटरी, पढ़ाई, लेखन, संगीत कुकिंग या कोई भी शौक़। उम्र के गणित में क्यों पड़ना? जब तक जीवन है, हर बात की गुंजाइश शेष है।

जब आप दिल से हँसतीं हैं न, तो सारी प्रकृति गुनगुनाने लगती है। जीवन पहले से सरल हो जाता है। फूल-पत्ती, चाँद-तारे सब बोलने लगते हैं। पक्षियों की भाषा समझ आती है। नदी, पहाड़, झरने सब बाहें फैलाये अपने-से लगते हैं। ह्रदय की दहलीज़ पर सुनहरे ख़्वाबों की बेरोकटोक आवाजाही शुरू हो जाती है। मन ख़ूब जोरों से खिलखिलाता है। मारकाट और ख़ुन्नस भरी दुनिया में इन मुस्कुराहटों की बड़ी आवश्यकता है।है, न!
- प्रीति 'अज्ञात' 
* अपनी मित्र के लिए स्नेह सहित