गुरुवार, 9 मई 2019

मेरा #रूह_अफज़ा



लगभग दो महीने पुरानी बात है। महीने भर का राशन लेने सुपरस्टोर गई हुई थी। सूची में लिखे सब सामान के आगे टिक लग गया था सिवाय रूह-अफज़ा के। Cash-counter पर जो लड़का था, उससे पूछा तो उसने कहा कि "स्टॉक में ख़त्म हो गया होगा मेम।" मैं भी यही मान रही थी तो उसकी बात सही लगी। कुछ दिन बाद एक Grocery-shop पर जाकर पूछा तो वहाँ भी नहीं था। दुकानदार ने जब बताया कि "बेन, अभी आपको कहीं नहीं मिलेगा!" तो जैसे एक झटका- सा लगा। शरबत तो नहीं बनाती पर मिल्कशेक और लस्सी की तो ये जान रहा है। "नहीं मिलेगा माने? भैया, फिर कैसे चलेगा काम।" मेरे ये कहते ही उसने Mapro की इसी फ्लेवर वाली बोतल coolz sharbat मेरे सामने रखते हुए कहा, "ये बिलकुल वैसा ही है।" 
"अच्छा! ठीक है! यही दे दीजिये।" कहते हुए मेरी आवाज में विश्वास की कमी थी और लग रहा था जैसे मैं अपने बचपन के साथी के साथ धोखा कर रही हूँ। Mapro के उत्पादों से मेरी कोई दुश्मनी नहीं और इनका Ginger-lemon syrup मेरा favourite है। महाबलेश्वर-पंचगनी यात्रा के दौरान तो मैं इनकी स्ट्रॉबेरी फार्म पर भी गई थी। पर भई.... रूह-अफज़ा तो रूह-अफज़ा है! किसी की क्या मज़ाल जो इससे मुक़ाबला करने का सोचे भी! मुझे तो इसे पाना मेरा संवैधानिक अधिकार लगता है, जी! ये आपसे मुझसे नहीं छीन सकते! एक पल को तो शक़ भी हुआ कि "कहीं......!" पर तुरंत ही अपनी इस सोच पर शर्मिंदा हो स्वयं को धिक्कारते हुए टोकरा भर लानतें भेजने में हमने जरा सी भी देरी नहीं की। 😔

सुनने में ये हँसी की बात लगती है पर रूह-अफज़ा और पारले-जी दो ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें मैं सृष्टि की देन मानती आई हूँ। ये प्राकृतिक संसाधनों सरीखे प्रतीत होते हैं। जैसे सूरज है, चाँद है, आसमान है, तारे हैं...वैसे ही रूह-अफज़ा है। इसे सदा सामने ही पाया है। नानी के यहाँ, दादी के यहाँ, उनकी भी नानी-दादी के यहाँ। कोई बताये, कहाँ नहीं था ये? कब नहीं था ये? 😋
ये अलग बात है तब लाड़ में सब इस बिल्लू, टिल्लू की तरह इसका भी नाम बिगाड़कर रुआब्ज़ा बोलते थे। 

गर्मियों में जब भगोने में चम्मच के बजने की आवाज आती तो कोई यूँ नहीं कहता था कि शरबत बन रहा है बल्कि सब जानते थे कि मीठी-मीठी सुगंध लिए चीनी संग रूह-अफज़ा घुल रहा है। उस पर छप्प से बर्फ़ का गिरना....अहा! जाओ रे! अब जी न जलाओ तुम! 😥
जैसे मिनरल वाटर का पर्याय बिसलेरी हो गया है वैसे शरबत मतलब रूह-अफज़ा! हाँ, यहाँ शिकंजी की महत्ता को कम न आंकियेगा...उससे जुड़ी प्रेम कहानी भी कोई कम हसीं नहीं! 😍

खैर! दुकानदार ने यह भी बताया था कि अभी हमदर्द के बाक़ी उत्पाद जैसे साफ़ी, सिंकारा भी नहीं मिलेंगे! "उंह! साफ़ी लेने की जब उमर थी तब न ली तो अब क्या!" सिंकारा का भी इत्तू सा दुःख न हुआ। बस इसका विज्ञापन और ब्रेक डांस वाले प्रतिभाशाली पर इस ad में महा सींकड़ी जावेद ज़ाफरी जी अवश्य याद आ गये। फिर याद को continue करते हुए "बोल बेबी बोल रॉक एंड रोल" और "बूगी- वूगी" ने भी प्रवेश किया। 
आजकल पढ़ने-सुनने में आ रहा कि कंपनी में कुछ अंदरूनी खटपट है या फिर इससे जुड़ी अन्य वस्तुओं की कमी के कारण यह बाज़ार में उपलब्ध नहीं है। जो भी है, समस्या को निबटाओ और रूह-अफज़ा को भारतीयों के जीवन में वापिस लाओ। नहीं तो क्रांति होगी!

एक जरुरी बात - 😜इसके लिए हमारे नेता लोग क़तई दोषी नहीं है और देखना उन्हीं के प्रयासों से रूह-अफज़ा इठलाती हुई फिर आएगी। आखिर चुनावी गर्मी के माहौल में थोड़ी ठंडक की दरकार उन्हें भी तो होगी न!
तब तक गाते रहो - 😄
गर्मी की जान!   रूह-अफज़ा!!
जब आएँ मेहमान! रूह-अफज़ा!!
न हिन्दू, न मुसलमान!  रूह-अफज़ा!!
घर-घर की आन! रूह-अफज़ा!!
भारत की शान! रूह-अफज़ा!!
MORAL: इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब तक कोई हमारे साथ बना रहता है, तब तक उसकी उपस्थिति या क़ीमत का एहसास नहीं होता! फिर बाद में ऐसी बातें करनी पड़ती हैं। 😞
- © 2019 #प्रीति_अज्ञात
#रूह_अफज़ा #Roohafza #हमदर्द #hamdard

2 टिप्‍पणियां:

  1. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/05/2019 की बुलेटिन, " प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की १६२ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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