बुधवार, 5 अप्रैल 2017

ऐसी लागी लगन....


मैं बहुत ज्यादा धार्मिक नहीं हूँ पर नास्तिक भी नहीं। मुझे लगता है कि कोई तो ऐसा हो जिसके सामने अपने दुखड़े रोये जाएँ, कुछ अच्छा होने पर उसे 'थैंक्स' कहा जाए, अपने सुख की बातें बतलाई जाएँ, जमाने भर की शिकायतों का पुलिंदा उसके सिर पर रख उससे सवाल किए जाएँ और फिर लोगों को सुधारने का अल्टीमेटम एक डेडलाइन के साथ दिया जाए! बदले में न तो डाँट मिलने का डर हो और न पकाऊ बोरिंग प्रवचन सुनने का ख़तरा (पर आपको ये ख़तरा अब तक इस पोस्ट के माध्यम से बना हुआ है,:D खी-खी-खी)। इसके लिए 'ईश्वर' से बेहतर दोस्त और कोई नहीं! सो, उनसे सुबह पांच मिनट(अधिकतम) अगरबत्ती, दिया-बाती की हेल्लो, हाय हो जाती है। सभी धर्मों के ईश्वर की उपस्थिति और धार्मिक ग्रन्थ भी हैं। कुछ पढ़े, कुछ शेष हैं। बाक़ी तो मैं आपकी ही तरह अच्छे कर्म पर ही विश्वास करती हूँ। :)

एक बात है लेकिन, यदि आपके मन का मैल नहीं गया और आपके ह्रदय में किसी के प्रति दुर्भावना, ईर्ष्या या बदला लेने का भाव है या फिर आप स्वयं को लेकर ही किसी हीन भावना से ग्रस्त हैं तो सारे दिन धार्मिक स्थलों पर अपनी धार्मिकता का प्रचंड प्रचार करने के बाद भी आप ईश्वर के सबसे बड़े विरोधी/दुश्मन ही कहलायेंगे क्योंकि आपने उसके दिए हुए संदेशों को अब तक समझा ही नहीं! आस्तिक बनना है तो दिल से बनना चाहिए, है न ? So, Get up & Dance! 珞

मेरे नानाजी बहुत पूजा-पाठ किया करते थे और मैं उनकी सबसे बड़ी fan भी थी। स्वाभाविक था, उनकी संगत का असर भी मुझ पर ख़ूब पड़ा था। उन दिनों घर के मंदिर को भगवान की तस्वीरों (कैलेंडर से काटकर) से सजाया करती। मूर्तियाँ तो वहाँ पहले से ही थीं। सभी भगवानों की आरती, स्त्रोत भी ढूँढकर रख लिया करती थी। इसका धार्मिकता से कहीं ज्यादा, सीखने से लेना-देना था कि 樂हरेक भगवान की इश्टोरी पता तो चले। स्कूल के दिनों में ही क़िताबें पढ़-पढ़कर palmistry भी सीख ली थी, जो कि समय की लक़ीरों के गहराते-गहराते धुंधली पड़ती गई। अब सिर्फ़ जीवन रेखा, ह्रदय रेखा और मस्तिष्क रेखा की पहचान भर शेष है। 'व्रत' से मुझे कोई परेशानी तब तक नहीं, जब तक दूसरे उसे कर रहे हों। अब भगवान ने उनको यह शक्ति दी है तो हम का  करें? हमसे तो नहीं रहा जाता जी! वैसे पूरा दिन घर या बगीचे का काम करते हुए कब दो कप चाय के साथ ही पूरा दिन गुज़र जाए,पता नहीं चलता पर जो 'व्रत' की बात आई तो बस, केस बिगड़ा ही समझो! पाचन तंत्र के सारे अंग जन्मों के भुक्खड़ टाइप बनकर 'सामग्री भेजो बेन' की गुहार करने लगते हैं और हमसे उनकी ये बेचैनी देखी ही नहीं जाती सो तुरंत फ़ूड सप्लाई प्रारम्भ कर देते हैं।

वैसे जब ये पोस्ट लिखने बैठी थी तो अनूप जलोटा जी का नाम ज़ेहन में था। उनके गाये दो भजन 'जग में सुन्दर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम' और 'ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन' मेरे all time favourite हैं और अनूप जी को भजन के अलावा और कुछ गाते देखना ठीक वैसा ही लगता है जैसा कि  सोनू निगम का एक्टर बनना लगा था। कुछ लोग दिल में जिस तरह बैठे हुए हैं, उम्र-भर वैसे ही सुहाते हैं। और हाँ, इन दोनों ही गायकों का जवाब नहीं! देने की कोशिश भी न कीजियेगा! 
-प्रीति 'अज्ञात'

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