रात के माथे पर दमकता चाँद अपने साथी सितारों के साथ गपशप करते हुए भरे गले से दिन की बेरुख़ी की तमाम शिक़ायतें करता है. इस गोलमटोल चंदा को इस बात का बेहद मलाल है कि जब सूरज उसके इलाके में आता है तो सारा दिन ऐसे क्यूँ पसरकर बैठता है कि कोई बेचारे चाँद को नोटिस भी नहीं करता!
सूरज को इस बात का ग़रूर है कि उसकी मौज़ूदगी के बिना चाँद का कोई वज़ूद नहीं और यही चाँद का दुःख भी है. वो इसी ग़म में ही सदियों से डूबता आया है कि सूरज का आगमन और विदाई कैसी भावभीनी होती है कि आसमान की खिड़कियों पर टँगी सारी रंगीन चादरें उसके स्वागत में बिछने लगती हैं जबकि चाँद का जाना उदासी की सारी मनहूसियत ओढ़ बिना किसी गाजे-बाजे के चुपचाप विलीन हो जाना भर है.
सूरज को नदी से निकलते और उसमें उतरते सबने देखा है पर चाँद अपने ही पानी को चुपचाप गटकता आया है, सूरज जब पहाड़ों से अठखेलियाँ करता है तो चाँद का दिल भर आता है. लोग जब सूरज को सलाम करने उसके इंतज़ार में सौ खिड़कियाँ खोल तकते हैं....चाँद एकटक देखता है, भीतर से कटने लगता है और फ़िर बिन कुछ कहे विदाई लेना ही उचित समझता है.
#सूरज और चाँद
- प्रीति 'अज्ञात'
सूरज को इस बात का ग़रूर है कि उसकी मौज़ूदगी के बिना चाँद का कोई वज़ूद नहीं और यही चाँद का दुःख भी है. वो इसी ग़म में ही सदियों से डूबता आया है कि सूरज का आगमन और विदाई कैसी भावभीनी होती है कि आसमान की खिड़कियों पर टँगी सारी रंगीन चादरें उसके स्वागत में बिछने लगती हैं जबकि चाँद का जाना उदासी की सारी मनहूसियत ओढ़ बिना किसी गाजे-बाजे के चुपचाप विलीन हो जाना भर है.
सूरज को नदी से निकलते और उसमें उतरते सबने देखा है पर चाँद अपने ही पानी को चुपचाप गटकता आया है, सूरज जब पहाड़ों से अठखेलियाँ करता है तो चाँद का दिल भर आता है. लोग जब सूरज को सलाम करने उसके इंतज़ार में सौ खिड़कियाँ खोल तकते हैं....चाँद एकटक देखता है, भीतर से कटने लगता है और फ़िर बिन कुछ कहे विदाई लेना ही उचित समझता है.
#सूरज और चाँद
- प्रीति 'अज्ञात'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें