मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

बीतता हुआ वर्ष

किसी वर्ष का गुज़र जाना उन अधूरे वादों का मुँह फेरते हुए चुपचाप आगे बढ़ जाना है जो प्रत्येक वर्ष के प्रारंभ में स्वयं से किये जाते हैं। ये उन ख्वाहिशों का भी बिछड़ जाना है जो किसी ख़ूबसूरत पल में अनायास ही चहकने लगती हैं। ये समय है उन खोये हुए लोगों को याद करने का, जिनसे आपने अपना जीवन जोड़ रखा था पर अब साथ देने को उनकी स्मृतियाँ और चंद तस्वीरें ही शेष हैं! कई बार बीता बरस कुछ ऐसा छीन लेता है जो आने वाले किसी बरस में फिर कभी नहीं मिल सकता! हम सभी, हर वर्ष अपने किसी-न-किसी प्रिय को हमेशा के लिए खो देते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर हुई इस क्षति की भरपाई कभी नहीं की जा सकती।

ये अक्सर होता है और सबके ही साथ होता आया है कि वर्ष के आख़िरी लम्हों को जीने का अहसास मिश्रित होता है। जैसे ही सुख की एक झलक आँखों में चमक बन उभरती है ठीक तभी ही समय, दुःख की लम्बी चादर ओढ़ा उदास पलों की एक गठरी बना मन को किसी एकाकी कोने में छोड़ आता है। लेकिन बीतते बरस और आने वाले बरस के बीच का ये लम्हा जितना बड़ा दिखता है, उतना होता नहीं! सारा खेल इसी क्षण का है। यही एक क्षण नई उम्मीदों, नई योजनाओं, नई महत्त्वाकांक्षाओं को जन्म देता है साथ ही पुरानी ग़लतियों को न दोहराने की कड़वी सीख भी देता है। कुल मिलाकर बारह माह बाद आत्मावलोकन की अनौपचारिक, अघोषित तिथि है यह....वरना नए साल में रखा क्या है! आम आदमी के जीवन में इससे कोई बदलाव नहीं आता पर यह नई उमंगों का संचार अवश्य करता है।  

हम उत्सवों के देश में रहते हैं। जहाँ हर कोई ख़ुश होने एवं तनावमुक्त रहने के प्रमाण प्रस्तुत करना चाहता है। हमें उल्लास की तलाश है, हम मौज-मस्ती में डूबना चाहते हैं, हम चाहते हैं कि हमें कोई न टोके। ऐसे में कोई त्योहार, छुट्टी या फिर ये नया साल अवसर बनकर आते हैं, जिसे दिल खोलकर मनाने में कोई चूकना नहीं चाहता। अन्यथा इन बातों के क्या मायने हैं? सब जानते हैं कि साल बदल जाने से किसी के दिन नहीं फिरते और न ही भाग्य की रेखा चमकने लगती है। कुछ नया नहीं होता! पुरानों को ही झाड़-पोंछकर चमका दिया जाता है। 
नववर्ष कैलेंडर में तिथि का बदल जाना भर है! शेष सब बाज़ार के बनाये उल्लास हैं, भीड़ है, लुभाने में जुटे व्यापार हैं। मनुष्य का इन सबकी ओर आकर्षित होना उसके सामाजिक होने का प्रथम लक्षण है। अपने सुख-दुःख के चोगे से बाहर निकल नववर्ष का स्वागत एक आवश्यक परम्परा है, जिसे सबको निभाना चाहिए क्योंकि यही प्रथाएँ हमें जीवित रखती हैं, मनुष्य की मनुष्यता से मुलाक़ात कराती हैं।
- प्रीति 'अज्ञात' #repost 

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