आज Rose Day है, वैलेंटाइन वीक का पहला दिन. कई लोग हैं जो आज से प्रेम की जड़ों में मट्ठा डालने बैठ गए होंगे. दुनिया की रीत यही है कि किसी को चैन से जीने नहीं देना है और प्रेमी तो हरगिज़ ही बर्दाश्त नहीं होते. आलम यह है कि प्रेम को मिटाने की कोशिश में समाज अपनों को मिटाने से भी नहीं चूकता. हवाला, वही सदियों पुरानी तथाकथित इज़्ज़त का दे दिया जाता है. न जाने ये इज्ज़त का कौन सा टाइप है जो प्रेम का नाम सुनते ही डूबने, बिखरने और बिलबिलाने लगता है! खैर! कुल मिलाकर दुनिया तो कांटे ही चुभोने बैठी है.
पर ज़नाब! गुलाब को खिलने से भला कौन रोक पाया है. मोहब्बत को इस फ़ूल से जोड़ने का कारण यूँ ही नहीं तय कर लिया होगा! वो इश्क़ का मारा कोई पगला प्रेमी ही होगा या कोई दीवानी प्रेमिका ही रही होगी. इन दोनों ने जमाने भर से लड़, तमाम शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं से गुजरते हुए ही एक-दूसरे को पाया होगा. उन्हें पता है प्रेम की शुरुआत जितनी नरम, मुलायम अहसासों से भरी होती है, उसकी राहों पर चलना दिनों-दिन उतना ही दुष्कर होता जाता है. ये प्रेम ही है जो तमाम दुश्वारियों को रौंदते हुए अपने साथी का हाथ थामे, आगे चलने का हौसला देता है. कँटीली डालियों के बीच पनपता ये कोमल अहसास सुर्ख़ गुलाब सी महकती सुगंध ही देता है और अपने कोमल, मखमली रूप को भी बचाए रखता है. काँटों की हिम्मत नहीं होती जो गुलाब को छू भी सकें.
सोचिए, कितना भरोसा होता है प्रेमियों को एक-दूसरे पर, जो इसकी ख़ातिर जमाने भर की दुश्मनी भी मोल ले लिया करते हैं. सोचिए, कैसे होते हैं वो लोग! जो प्रेम की राह में काँटे बिछा दिया करते हैं. प्रेमियों को ताने देते हैं और अपने मन का सारा ज़हर उनके जीवन में भर देते हैं. यह भी सोचिये, कि कैसे होते हैं वे प्रेमी जो एक-दूसरे पर अथाह विश्वास करते हैं. फिर विचार कीजिए कि प्रेम से जीना अच्छा है या दिल में किसी के प्रति नफ़रत भरकर?
अरे! चैन से जीने दीजिए प्रेमियों को. सच्चे प्रेमी चाहे जो करें पर किसी का नुक़सान कभी नहीं कर सकते! इनके पास वक़्त ही नहीं होता किसी की बुराई का. किसी को दर्द देने की तो ये सोच भी नहीं सकते. ये तो स्वयं ही एक-दूसरे का मरहम बनते हैं. इनसे चिढ़ने या ईर्ष्या करने की बजाय कभी किसी रोज इन्हें ध्यान से देखिए, इनकी आँखों में झांकिए, इनके चेहरे को पढ़िए. हर जगह बस एक ही नाम दिखाई देगा, मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत!
आप 'वैलेंटाइन-वीक' से चिढ़ सकते हैं, इसे अपनी संस्कृति का विरोधी भी कह सकते हैं. लेकिन जरा ग़ौर से देखिए और समझिए कि कोई भी संस्कृति 'प्रेम' की विरोधी हो ही नहीं सकती. एक सप्ताह ही क्यों, हमें तो 'वैलेंटाइन ईयर' मनाना चाहिए. नफ़रतों, लड़ाई-झगडे, मार-काट, ईर्ष्या और मालिक बने रहने की होड़ से भरी इस दुनिया में मोहब्बत की कमी सबसे ज्यादा है. किसी त्योहार की तरह जिया जाना चाहिए मोहब्बत को या यूं कहूं कि मोहब्बत में हर दिन त्योहार सरीखा स्वतः ही हो जाता है.
- प्रीति अज्ञात
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
एक सप्ताह ही क्यों, हमें तो 'वैलेंटाइन ईयर' मनाना चाहिए. नफ़रतों, लड़ाई-झगडे, मार-काट, ईर्ष्या और मालिक बने रहने की होड़ से भरी इस दुनिया में मोहब्बत की कमी सबसे ज्यादा है.
जवाब देंहटाएं–सत्य कथन
मैं विभा दी की बात से और आपकी इस अभिव्यक्ति से पूर्ण सहमत।
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