बुधवार, 27 जून 2018

भिया! हम यहाँ हैं!

भगवान जी ने जब हमें बनाया तो थोड़ा आननफ़ानन में ही निबटा दिया था. अब भई, बड़े लोग हैं, सौ काम होते हैं उन्हें. सो, कुछ पार्ट्स ठीक से फिट करना भूल गए और कुछ को उनकी ज़िम्मेदारी बताने से भी चूक गए. फाइन और फाइनल टच देने के चक्कर में ऐसी एडिटिंग करी कि हम अमिताभ से डेढ़-पौने दो क़दम पीछे ही रह गए. पर हमें इस बात का कोई मलाल नहीं रहा क्योंकि हमें पता है कि हम हैंडपंप सरीख़े स्मार्ट गैजेट हैं. मतलब, जितना जमीन के बाहर दिखते हैं उतना ही अंदर भी गड़े हैं. 😎तभी तो हममें प्रतिभा इतनी कूट-कूटकर भरी हुई है. पर ईश्वर को लगा होगा कि बड़े होकर कहीं हम उनसे ख़ुन्नस न निकालें सो उन्होंने हमारे मासूम जीवन में देश की बेरोज़गारी की तरह 4G की स्पीड से ताबड़तोड़ 128 GB की इतनी घटनाएँ भर दीं कि हम उन्हीं में उलझकर उफ़ तक न कर सकें. कहते हैं न कि "कोशिशें अक़्सर क़ामयाब हुआ करती हैं." सो, ये साब भी अपनी योजना में सफ़ल हुए. कभी घटनाओं पे हँसते, कभी रोते-जूझते भारतीय रेल की तरह हमारे जीवन की गाडी निर्धारित समय से थोड़ा देर से ही सही पर पहुँचती रही. इस बीच कभी-कभार ऐसे पल भी आये कि हमें बहुत गुस्सा आया और हमारे क्रोध के घने बादल के छींटे भगवान जी पर गरज़ के साथ गिरे तो, पर बरसे तब भी नहीं! अब उनसे क्या कहना, जो हो गया सो हो गया, हमारी लाइफ, डील तो हमें ही न करना पड़ेगा. अब जैसा कि हमने उल्लेख कर ही दिया है कि हैंडपंप हैं, सो दुःख में बुक्का फाड़ के बाल्टी भर-भर रो भी लेते हैं. सुना है, "पीड़ा का बह जाना सिस्टम के लिए सही होता है."😌

हाँ, तो बात किस्सों की थी. अच्छी-बुरी घटनाएँ तो सभी के साथ होती हैं लेकिन हमारे साथ ऐसी-ऐसी घटनाएँ घटित होती रही हैं कि अब तो बच्चे भी मना कर देते हैं, "मम्मी, किसी को बताना मत! कोई विश्वास नहीं करेगा!" उस समय हमारा यही गोलू चेहरा और आँखें और चौड़ जाती हैं, "नहीं करेगा से क्या मतलब? अरे! हमारे साथ हुआ है ऐसा."😠

भारतीय संस्कृति में कहानी-किस्से सुनाने की परंपरा तो सदियों से चली आ रही है लेकिन कहीं यह भी चिट्ठियों की तरह विलुप्त न हो जाए, इस आशंका को ध्यान में रखते हुए हम यह साहसिक कार्य करने का मन बना लिए हैं. यूँ तो हमने अपने किस्सों से आप सबको पहले भी ख़ूब पकाया है पर औपचारिक घोषणा और भूमिका के साथ सुनाया गया यह पहला किस्सा है. अभी बता रहे हैं -

तो हुआ यूँ कि आप सबकी ही तरह हम भी बचपन में गोलू और भारी क्यूट प्रजाति के प्राणी थे. मम्मी जहाँ भी जातीं तो एक आदर्श बच्चे की तरह हमारा साथ लटक लेना भी सुनिश्चित था. भला कौन माँ अपने प्यारे बच्चे का हाहाकार देखना चाहेगी! सो, ऐसे ही एक शुभ दिन अपन साथ हो लिए. अच्छा! हमारे साथ दिक़्क़त ये थी कि चार क़दम चलते ही धराशाई हो जाते और "मम्मी, थक गए. गोदीईई!" या "मम्मी, रिक्शाआ आ" की गुहार लगाने लगते. 😀उस पर अपनी भोली आँखों में थकान और मजबूरी की ऐसी गंगा-जमुना भरते कि वे इस आकस्मिक विपदा से निबटने के लिए तत्काल का बटन दबा देतीं. अब यह तो तय ही है कि हाथ में सामान और तमाम चीज़ों के साथ वे प्रायः दूसरा विकल्प ही चुनतीं. यूँ भी हम कोई मखाने तो थे नहीं, अच्छा-ख़ासा वज़न रखते थे, भई!

तो साब, ऐसे ही एक हसीन दिन हम बाजार से घर को लौट रहे थे. नौटंकी कर ही ली थी सो रिक्शे पर टंग गए. साथ में आंटी जी भी थीं. मम्मी और आंटी जी के बीच में हमें बिठाया गया और सुरक्षित रखने की सुन्दर सोच के साथ सामने सामान भी अड़ा दिया. पर हम तो हम थे, इतिहास तो रचना ही था. टनाटन पेट भरा, उस पर ठंडी हवा! सो अपन शीघ्र ही नींद को प्यारे हो गए और अनायास ढुलक लिए.

अचानक किसी के रोने की आवाज़ सुनकर आंटी जी और मम्मी चौंके कि "अरे, ये तो गुड़िया (हमहि) की आवाज़ लग रही है." देखा, तो गाँव की बिजली की तरह अपन उन दोनों के बीच से विलुप्त थे. चीखकर रिक्शा रुकवाया और दौड़कर हमें उठाया गया. अच्छा! बच्चों की एक मज़ेदार आदत ये भी होती है कि ख़ूब उठ सकते हों, पर देशव्यापी धरनों की तरह तब तक नहीं हिलेंगे जब तक कोई उन्हें आकर पुचकारे नहीं! वरना गिरने का फ़ायदा ही क्या?? 😉सो, अपन भी इसी परम्परा को फॉलो करते हुए पड़े रहे. जबकि मात्र दस सेंटीमीटर की दूरी पर ही ताजा उत्तम गोबर का बदबूदार ढेर था जिससे हमारी नाजुक, इत्तू-सी नाक सड़ी जा रही थी. उठने के बाद कपडे झाड़ते हुए उस ढेर पर भी हमने बड़ी हिक़ारत भरी नज़रें डालते हुए उम्दा टिप्पणी की थी. तब कहाँ पता था कि एक दिन इसी गोबर के छह गोले (उपले) AMAZON, 299 रुपये में बेचेगा. 

अबकी बार हमें बिठाकर इतना टाइट पकड़ा गया जैसे कि बेरोज़गारी ने हमारे युवाओं को थामा हुआ है. पर अब गिरने का चांस ही नहीं था जी क्योंकि हम तो अपनी POWER NAP ले चुके थे और गली में भटकते जानवरों की गिनती में मस्त थे.😛 कुत्ता, बिल्ली, गाय तो आज भी कॉमन हैं पर उस समय सूअर भी होता था जी! इस बीच एक मज़ेदार बात और हुई कि हमको रिक्शे पर पुनर्स्थापित करते समय इन दोनों ने रिक्शेवाले को बोला कि "भैया, तनिक देख के चलाया करो, बच्ची गिर गई थी." वो हँसा और कहने लगा "बहनजी, हम तो सामने देखकर ही चला रहे, बिटिया तो आपके साथ थी." खी, खी, खी😎 तब तक घर आ गया और हम पापा को देख इतिहास की तरह अपने टसुओं का रिपीट टेलीकास्ट करने में व्यस्त हो गए.

वैसे एक बात का मुझे पक्का विश्वास है कि हम सभी किसी न किसी रूप में गिरे हुए लोग हैं. 😜तात्पर्य यह कि सोते समय कभी तो पलंग से एक न एक बार गिरे ही होंगे. सब कुछ सरकार पर न छोड़ें, अपना और बच्चों का पूरा ध्यान रखें. यह बच्चों के मस्तिष्क और देश के भविष्य से जुड़ा नितांत आवश्यक मुद्दा है. अब सब कोई हमारी तरह थोड़े ही न हैं जी! कि सिर फुटा-फ़ुटाकर भी उनका मस्तिष्क फैलता जाए और अमीबा की तरह विकसित होता रहे.😍

चलो, जय राम जी की 
पूड़ी खाओ घी की 
- #प्रीति 'अज्ञात'
#संस्मरण 

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