जीवन, ज़िंदगी, साँसें, धड़कन, आरज़ू, प्रेम, इंतज़ार, मायूसी, कभी खुशी कभी ग़म की तर्ज़ पर डूबती-उतराती ये ज़िंदगानी. चाहे कितनी भी शिक़ायत हो इससे, पर जीने की ललक क़ायम रहती ही है. बहुत सी उम्मीदों का पूरा होना बाकी है, कुछ और नये ख्वाब संजोना बाकी है, ज़िम्मेदारियों को निभाना बाकी है, रिश्तों को अपनाना बाकी है...और भी न जाने कितना कुछ ! पर जिस तरह 'जीवन' एक सत्य है, ठीक वैसे ही 'मृत्यु' भी. आज जिसने जन्म लिया है, उसका जाना भी तय है. सभी लोग एक उम्र पूरी करके ही जाएँ, यह भी नहीं होता. कभी अस्वस्थता, कभी दुर्घटना, कभी प्राकृतिक विपदा और कभी यूँ ही अचानक चले जाना, किसी के भी साथ हो सकता है ! हमारा हर दिन इसी 'क्या खोया, क्या पाया' के हिसाब-क़िताब में निकल जाता है, और ज़्यादातर निराशा ही हाथ लगती है. भयानक त्रासदी से सामना सभी का होता है, मेरा भी कई-कई बार हुआ. मौत को कई बार चक़मा भी दिया ! २००१ के भूकंप का गहरा असर पड़ा मुझ पर, भुगता जो था ! उन क्षणों ने जैसे एक ही पल में जीवन की सच्चाई से रूबरू करा दिया था, कि 'जान है तो, जहान है'. तब से लेकर आज तक हर पल की क़ीमत का अंदाज़ा रहने लगा है, मुझे ! जितना कुछ बन पड़ा, समाज के लिए भी करती गई. पर एक सवाल फिर भी मन में था, मेरे जाने के बाद क्या ?
२ वर्ष पूर्व अचानक ही 'शतायु' का पता चला. शायद अक्तूबर २०१२ की ही बात है. यह संस्था, जीवन के बाद भी जीवन देने को संकल्पित है. यानी आपकी मृत्यु के बाद, आपके शरीर के अंगों को किसी और के जीवन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ! हम चाहते हैं, आप सभी हमेशा स्वस्थ, प्रसन्न रहें, शतायु हों....पर मृत्यु की सच्चाई को भी स्वीकारना ही होगा. तो क्यूँ न खोखली आस्थाओं के भ्रम में न पड़ा जाए और अपने Organs, Donate कर दिए जाएँ..क्यूँ न हम ज़िंदा रहें कहीं, हमारे जाने के बाद भी....क्यूँ न हमारी साँसों के टूटते ही, कोई 'जी' उठे कहीं. क्यूँ न प्लास्टिक और पेपर की तरह ही खुद को भी recycle कर दिया जाए. हर शहर, हर हॉस्पिटल में इस बारे में जानकारी ज़रूर मिलेगी. कितनी खुशी की बात है, जीते हुए भले ही किसी का भला न कर सके पर जाते हुए 'कमाल कर जाना' ! कैसा अहसास होगा, हमारे अपनों के आँसुओं के बीच, कहीं 'एक बुझती लौ का जल जाना' ! शतायु भव:!
DONATE ORGANS
:) LET'S RECYCLE LIFE ! :)
- प्रीति 'अज्ञात'
२ वर्ष पूर्व अचानक ही 'शतायु' का पता चला. शायद अक्तूबर २०१२ की ही बात है. यह संस्था, जीवन के बाद भी जीवन देने को संकल्पित है. यानी आपकी मृत्यु के बाद, आपके शरीर के अंगों को किसी और के जीवन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ! हम चाहते हैं, आप सभी हमेशा स्वस्थ, प्रसन्न रहें, शतायु हों....पर मृत्यु की सच्चाई को भी स्वीकारना ही होगा. तो क्यूँ न खोखली आस्थाओं के भ्रम में न पड़ा जाए और अपने Organs, Donate कर दिए जाएँ..क्यूँ न हम ज़िंदा रहें कहीं, हमारे जाने के बाद भी....क्यूँ न हमारी साँसों के टूटते ही, कोई 'जी' उठे कहीं. क्यूँ न प्लास्टिक और पेपर की तरह ही खुद को भी recycle कर दिया जाए. हर शहर, हर हॉस्पिटल में इस बारे में जानकारी ज़रूर मिलेगी. कितनी खुशी की बात है, जीते हुए भले ही किसी का भला न कर सके पर जाते हुए 'कमाल कर जाना' ! कैसा अहसास होगा, हमारे अपनों के आँसुओं के बीच, कहीं 'एक बुझती लौ का जल जाना' ! शतायु भव:!
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:) LET'S RECYCLE LIFE ! :)
- प्रीति 'अज्ञात'
अच्छा आहवान है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, निहार जी !
जवाब देंहटाएंसहज भाव से सशक्त सन्देश देती शानदार जानदार रचना।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, वीरेंद्र जी !
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