सोमवार, 13 जुलाई 2015

आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी 
सादर अभिवादन
आज भी रोज की तरह समाचार देख-पढ़ मन व्यथित हुआ और लगा कि आम भारतीय नागरिक की तरह मुझे भी अपने 'मन की बात' कह ही देनी चाहिए!

* एक समाचार से ज्ञात हुआ कि कुछ लोग जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं! मैं राजनीति बिल्कुल भी नहीं जानती पर इतना ज़रूर समझती हूँ, कि गर ऐसा हुआ तो सही नहीं होगा! यूँ भी हमारे देश में समस्याओं की जड़ ये 'जाति' और 'धर्म' ही तो रहा है! वरना ये दंगे-फ़साद किसके नाम पर हो रहे हैं?

*सोचिए ज़रा, कितना अच्छा होता....अगर चुनाव 'इंसान' और उसके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर हो! लोग 'जाति' नहीं 'इंसान' को चुनें, उसके नेक कार्य और अच्छी सोच पर भरोसा रखें न कि उनकी 'कास्ट' को आगे ले जाने के अशोभनीय आश्वासनों पर!

* क्या यह संभव नहीं कि हर नेता या चुनाव उम्मीदवार की जाति बताई ही न जाए, निष्पक्षता तो तभी तय होगी! पहचान के लिए उनके स्कूल, कॉलेज के प्रमाण-पत्र बनाये रखने में कोई बुराई नहीं!

* मैं किसी पार्टी के समर्थन या विरोध में नहीं हूँ, बल्कि आम भारतीय नागरिक की तरह अपने देश के विकास की पक्षधर हूँ!
* मैं 'जातिगत' आरक्षण की नहीं बल्कि हर उस विद्यार्थी की पक्षधर हूँ जो 80% अंक से भी अधिक लाने पर उदास है क्योंकि उसी के सामने 60% अंक वालों को प्रवेश मिल जाता है और वो अपने 'सामान्य-श्रेणी' में होने को कोस रहा होता है!

क्या 'शिक्षा' या ज्ञान का पैमाना, 'बुद्धिमत्ता' नहीं होना चाहिए ?
* मैं हर उस इंसान की, हर उस जाति की, हर उस धर्म की पक्षधर हूँ जहाँ एक बुद्धिमान बच्चा, पैसों के अभाव में शिक्षा से वंचित रह जाता है....... मैं ऐसे हर एक 'भारतीय' को उसका, हक़ दिलाने की पक्षधर हूँ! मैं एक क़ाबिल इंसान को उसकी योग्यता के आधार पर चुनने की पक्षधर हूँ!

* मैं विरोधी हूँ उस हर इंसान की जो योग्य न होने के बावजूद भी जाति या डोनेशन ( जी हाँ, यह भी रईसों का सुगम मार्ग है) के बल पर प्रवेश पा लेता है, डॉक्टर या इंजीनियर भी बन जाता है...और कुछ वर्षों बाद हम समाचार पढ़ते हैं, 'डॉक्टर की लापरवाही से मरीज़ की मौत' या फिर 'कमजोर पुल टूटने से बस खाई में गिरी, मरने वालों की संख्या सैकड़ों में'...पर यदि गहराई से सोचा जाए तो पता चलता है कि इस लापरवाही का ज़िम्मेदार वो 'प्रवेश-द्वार' है जहाँ इन्हें होना ही नहीं चाहिए था!

* 'बुद्धिमत्ता', 'जाति' से तय नहीं होती! कमजोर व पिछड़े वर्गों को ऊपर उठाने का मतलब उन्हें ये सुविधा देना नहीं, बल्कि उनकी शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाना है. उन्हें सब कुछ निशुल्क दें और जो बेहतर होंगे वो स्वयं ही हर परीक्षा उत्तम अंकों से उत्तीर्ण कर लेंगे, उनके लिए अलग से व्यवस्था करने की क्या आवश्यकता है?
 "जब विरासत दिखती है, तो कौन मेहनत करता है भला!"

* दो-टूक़ बात तो ये है कि हमें कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता कि 'सरकार' किस पार्टी की है! हमें तो देश के विकास से मतलब है, हम तो यही चाहते हैं कि जब कहीं बाहर जाएँ तो हमारे पूर्वजों की तरह उसी शान से कह सकें कि "हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है!"
'गंगा सफाई अभियान', 'स्वच्छता अभियान', 'बेटी बचाओ अभियान' और ऐसे ही अन्य सकारात्मक योजनाओं को देख एक उम्मीद जगी है!

भारतवासियों में बहुत ताक़त है, बहुत हिम्मत है, हर मुश्किल घड़ी से निपटने का हुनर भी खूब आता है! 'सती-प्रथा' और 'बाल-विवाह' जैसी कुरीतियों को हम सबने ही दूर भगाया है! 'कन्या-भ्रूण हत्या' और कितने ही 'आपराधिक' मामलों के विरोध में सारा देश एकजुट हुआ है! तो, ये 'जाति-प्रथा' दूर करना भी मुश्किल नहीं...
"ज़रूरत सिर्फ़ एक 'मुहर' की है!"

धन्यवाद!
प्रीति 'अज्ञात'

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