कितना आसान है ये कह देना, "बस तुम खुश रहो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए ! अगर ये मेरे बिना सही, तो वो भी मंज़ूर है मुझे!"
पर दिल क्या सचमुच मंज़ूर कर पाता है इसे ?
उसकी एक हल्की-सी आहट, उसकी मौज़ूदगी का अहसास भर सिहरा देता है ! उम्मीद और डर के बीच झूलता हुआ ये मन साँसे रोक कर इंतज़ार करता है कि अब कोई पलटकर पूछेगा, "कैसी हो तुम?"
अब कोई सिर पर हाथ फेरेगा और कहेगा, "अरे, उदास क्यों हो भई?" आँखें ये सोचकर ही भीगने लगतीं हैं, गला रुंध-सा जाता है और मस्तिष्क स्वयं को उन जवाबों के लिए तैयार करता है लेकिन तब तक वो चेहरा ओझिल हो चुका होता है !
मैं तो यही कहती कि "ठीक हूँ!" तुम्हारा पूछना भर ही मेरा दिन बना देता !
पर अब सचमुच अहसास होने लगा है कि तुम खुश हो मेरे बिना !
सॉरी,लेकिन मैं इतनी महान नहीं कि आसानी से कह सकूँ..."बस तुम खुश रहो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए!
क्योंकि मुझे तुम्हारी मौज़ूदगी चाहिए!
तुम्हारी वो मुस्कान चाहिए जो मुझे देख ही तुम्हारी आँखों की झीलों में खुशबुओं-सी तैरने लगती थी !
मुझे मेरे इस दुनिया में होने की एकमात्र वज़ह चाहिए!
हाँ, इसके अलावा मुझे वाक़ई कुछ नहीं चाहिए !
वो अगले जन्म के साथ का वादा भी नहीं!
जो जीते-जी न मिल सका, मर जाने के बाद उसकी उम्मीद रखूँ; अब इतनी बेवक़ूफ़ भी नहीं रही मैं!
यूँ जानती तो ये भी हूँ कि मेरी बातों का कोई मोल नहीं!
याद है एक दिन तुमने गुस्से में कहा था कि "मैं पछतावा हूँ तुम्हारी ज़िंदगी का, प्रताड़ित करती है मेरी उपस्थिति तुम्हें !"
बहुत रोई थी मैं उस दिन... और अभी भी तो !
पर हर बार की तरह तुम्हें 'बेनेफिट ऑफ डाउट' दे दिया था ! तुम्हारा गुस्सा और मूड, तुम खुद भी कहाँ जान सके हो अब तक!
हर बार आखिरी पत्र मानकर लिखती हूँ! पर लौट आती हूँ खुद ही, बिन बुलाये !
न जाने क्या शेष है अभी !
उम्मीद नहीं है ये!
इंतज़ार भी नहीं!
चाहत तो यूँ भी दोतरफ़ा ही जायज़ होती है !
पीड़ा बेतहाशा है !
पता नहीं क्यों, दिल आज भी इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहा कि "तुम सचमुच खुश हो मेरे बिना !"
तुम ख़ुद शांत मन से एक बार कह दो न मुझे, कुछ इस तरह कि विश्वास कर सकूँ और उसके बाद तुम देखना, आवाज़ तक नहीं दूंगी कभी!
हाँ, एक तसल्ली हो जायेगी हमेशा के लिए !
उसके बाद क्या होगा ?
क्या करोगे जानकर ?
"फ़टी-पुरानी, बिना ज़िल्द वाली पीली क़िताबों का आख़िरी पृष्ठ अक़्सर गायब ही रहता है !"
(एक अंश - 'सौदामिनी', जीवन के आख़िरी पन्नों से, से )
© प्रीति 'अज्ञात'
पर दिल क्या सचमुच मंज़ूर कर पाता है इसे ?
उसकी एक हल्की-सी आहट, उसकी मौज़ूदगी का अहसास भर सिहरा देता है ! उम्मीद और डर के बीच झूलता हुआ ये मन साँसे रोक कर इंतज़ार करता है कि अब कोई पलटकर पूछेगा, "कैसी हो तुम?"
अब कोई सिर पर हाथ फेरेगा और कहेगा, "अरे, उदास क्यों हो भई?" आँखें ये सोचकर ही भीगने लगतीं हैं, गला रुंध-सा जाता है और मस्तिष्क स्वयं को उन जवाबों के लिए तैयार करता है लेकिन तब तक वो चेहरा ओझिल हो चुका होता है !
मैं तो यही कहती कि "ठीक हूँ!" तुम्हारा पूछना भर ही मेरा दिन बना देता !
पर अब सचमुच अहसास होने लगा है कि तुम खुश हो मेरे बिना !
सॉरी,लेकिन मैं इतनी महान नहीं कि आसानी से कह सकूँ..."बस तुम खुश रहो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए!
क्योंकि मुझे तुम्हारी मौज़ूदगी चाहिए!
तुम्हारी वो मुस्कान चाहिए जो मुझे देख ही तुम्हारी आँखों की झीलों में खुशबुओं-सी तैरने लगती थी !
मुझे मेरे इस दुनिया में होने की एकमात्र वज़ह चाहिए!
हाँ, इसके अलावा मुझे वाक़ई कुछ नहीं चाहिए !
वो अगले जन्म के साथ का वादा भी नहीं!
जो जीते-जी न मिल सका, मर जाने के बाद उसकी उम्मीद रखूँ; अब इतनी बेवक़ूफ़ भी नहीं रही मैं!
यूँ जानती तो ये भी हूँ कि मेरी बातों का कोई मोल नहीं!
याद है एक दिन तुमने गुस्से में कहा था कि "मैं पछतावा हूँ तुम्हारी ज़िंदगी का, प्रताड़ित करती है मेरी उपस्थिति तुम्हें !"
बहुत रोई थी मैं उस दिन... और अभी भी तो !
पर हर बार की तरह तुम्हें 'बेनेफिट ऑफ डाउट' दे दिया था ! तुम्हारा गुस्सा और मूड, तुम खुद भी कहाँ जान सके हो अब तक!
हर बार आखिरी पत्र मानकर लिखती हूँ! पर लौट आती हूँ खुद ही, बिन बुलाये !
न जाने क्या शेष है अभी !
उम्मीद नहीं है ये!
इंतज़ार भी नहीं!
चाहत तो यूँ भी दोतरफ़ा ही जायज़ होती है !
पीड़ा बेतहाशा है !
पता नहीं क्यों, दिल आज भी इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहा कि "तुम सचमुच खुश हो मेरे बिना !"
तुम ख़ुद शांत मन से एक बार कह दो न मुझे, कुछ इस तरह कि विश्वास कर सकूँ और उसके बाद तुम देखना, आवाज़ तक नहीं दूंगी कभी!
हाँ, एक तसल्ली हो जायेगी हमेशा के लिए !
उसके बाद क्या होगा ?
क्या करोगे जानकर ?
"फ़टी-पुरानी, बिना ज़िल्द वाली पीली क़िताबों का आख़िरी पृष्ठ अक़्सर गायब ही रहता है !"
(एक अंश - 'सौदामिनी', जीवन के आख़िरी पन्नों से, से )
© प्रीति 'अज्ञात'
Pic Credit : प्रीति 'अज्ञात'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ४ का चक्कर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंऔर वही अंतिम पन्ना महत्वपूर्ण होता है । सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआखिरी पन्ने से पहले ही अंत का पता चल जाता है
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