सुना है रेल बजट आ रहा है, पूरा यक़ीन है कि रेल से जुडी यह एकमात्र बात है जो अपने निर्धारित समय पर होती है। बाकी जो है, सो हम और आप जानते ही हैं :)
जितनी नफरत हमें हवाई जहाज और बस के सफर से है उससे दस गुना ज्यादा ख़ुशी रेलयात्रा में मिलती है। इसीलिए इससे सम्बंधित कोई भी चर्चा होते ही, हमारे भीतर का जागरूक नागरिक और भी जागृत हो उठता है। राजनीति में दिमाग लगता नहीं, इसलिए पता ही नहीं चलता कि बजट बनना शुरू कब होता है? खैर...अब बन गया तो बन गया। हमारी कुछ बातें हैं, सुझाव भी हैं जो अगर उसमें शामिल न हों, तो कृपया विचार किया जाए। इससे सिर्फ हमारा ही नहीं देश का भी भला होगा। Now come to the point -
1. सबसे पहली और मुख्य बात, ये waiting list का फंडा ही ख़त्म कीजिये। टिकट या तो कन्फर्म रहे या नहीं रहे। इससे जो चिंता और समझदारी के मारे, ज्ञानी लोग कई ट्रेन में टिकट्स करा लेते हैं और उसके बाद भी अधर में लटके रहते हैं, उनकी ज़िन्दगी में कुछ साँसें और जुड़ जाएंगी। हम जैसे लोग ये दुआ ही करते रह जाते हैं, "हाय, अल्लाह! जा पाएंगे भी या नहीं!" :/ साथ ही ये बहाना भी ख़त्म हो जाएगा कि "क्या करें, पैकिंग तक हो गई थी पर मुई टिकट कन्फर्म न हुई।" बोले तो, सच्चाई में इज़ाफ़ा होगा। जिसकी आज देश को सख़्त जरुरत है।
2. सिर्फ महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर ही जोर न दें, पुरुष भी मार्शल आर्ट का कोर्स करके सफर नहीं करते हैं। सभी aisle और gate के पास कैमरा लगवाये जाएं और ट्रेन में एक कंट्रोल रूम हो, जहाँ से सब पर नजर रखी जा सके। पर्याप्त महिला, पुरुष गार्ड भी हों।
इससे न केवल सुरक्षा ही होगी बल्कि गंदगी फैलाने वाले लोग भी पकडे जा सकेंगे। उन पर तुरंत ही डबल किराया का fine हो. मात्र समझाने से सुधरते तो डिब्बों की ये दुर्गति न होती! सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी आम जनता ही करती है और इसके लिए सफाईकर्मियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
3. यह नियम बनाया जाए कि यदि कोई परिवार के साथ यात्रा कर रहा हो, तो उसे एक साथ सीट मिले। या कम-से-कम एक lower birth का वरदान तो मिले ही! और हाँ, upper birth पर चढ़ने के लिए थोड़ा आसान मार्ग बनाइये न! कितनी बार हवा में ही झूलते रह जाते हैं, कि फलाना-ढिमका निकल जाए तो चढ़ूँ! तकलीफ होती है, साब! :O
4. चाय वाले भैया को बोलिए कि same चाय बार-बार गरम करके न पिलाये वरना उसका लाइसेंस रद्द हो जाएगा! यलो वाले पानी में दाल के दाने होने चाहिए और रोटी, परांठों की thickness पिज़्ज़ा जैसी न हो pleeeeease! पनीर का तो आपको पता ही है।
5. एक अत्यधिक आवश्यक बात, जो यात्री इतना लगेज लाते हैं कि मानों घर shift कर रहे हों! उनसे अतिरिक्त charge लिया जाए और वो भी इस अनुरोध के साथ कि जो गरीब बेचारा बस एक ही बैग लाया है, उसे वो बिना लड़ाई किये रखने देंगे। आपको क्या पता, एक बार हमने अपना बैग गोदी में रखकर यात्रा की है। दुष्ट लोग हमें ऐसे देख रहे थे, जैसे वो तो सरकार की परमीशन लेके बैठे और हम बिना टिकट! ये अन्याय हुआ न। :(
5. अब आखिरी और सबसे मुश्किल बात, वो ये कि सर/मैडम जी कुछ ऐसा कीजिये कि अपनी ट्रेन जो है न, वो जरा टाइम पर पहुंचे। इससे यात्रियों को तो आराम होगा ही, अपना प्लेटफार्म जो 'कुम्भ मेले' में तब्दील हो जाता है, वो भी नहीं होगा जी। सब टाइम पर अपनी ट्रेन में जायेंगे तो भीड़ काहे होगी? कोई पिकनिक मनाने तो उधर जाता नहीं न!
जो ये काम दुष्कर लगे तो अइसन करो कि देरी होने पर यात्रियों के जलपान और आराम की व्यवस्था करवा दीजिये और भी ज्यादा देरी हो तो... हे-हे अगली ट्रेन का किराया भी सरकार आपही को देना होगा। :P
6. भीड़ तो कम होने से रही, तो जो गेट पर लटके लोग हैं उन्हें रस्से से बंधवा दीजिये। गिर जाते हैं तो उन्हें बड़ी चोट लगती है। या फिर उनके गले में ये तख्तियाँ कि "हमें अपनी जान प्यारी नहीं, इसलिए आज ये try मार रहे।" :(
फिलहाल इतना ही। कुछ मुद्दों की ओर पिछले वर्ष ध्यान आकर्षित किया था, कृपया उन्हें भी दोहरा लें -
* छोटे स्टेशनों पर रेल के रुकने का समय बढ़ाया जाए. कई बार सामान और यात्री में से कोई एक ही उतर / चढ़. पाता है. उसके बाद का तमाशा तो सबको पता है.
* पान, गुटका, तंबाकू और इस तरह के अन्य पदार्थों के क्रय-विक्रय पर सख़्त पाबंदी हो. ट्रेन क्या ९० % देश साफ हो जाएगा, जी ! यूँ भी ये धीमे जहर ही हैं.
* चादर, कंबल डिस्पोज़ेबल हों और हो सके तो तकिये के अंदर रखा पत्थर भी हटा दिया जाए.
* ये आख़िरी वाले के लिए तो करबद्ध प्रार्थना है, कि हर स्टेशन पर होने वाली उद्घोषणा को सुनाने वाले यंत्रों की मरम्मत कराई जाए. क्योंकि 'यात्रीगण कृपया ध्यान दें'.........के बाद भले ही हम कितना भी ध्यान दें, श्रोणि-यंत्र भी लगवा लें...पर क्या मज़ाल है जो एक शब्द भी समझ में आ जाए !
शेष शुभ! :)
© 2016 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित
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