एक अजीब- सी पोस्ट/ लिंक इन दिनों खूब वायरल हो रही है। जिसमें मृतप्राय: पिता का उसकी बेटी के द्वारा जीवन बचाए जाने का पूरा किस्सा है। भावुक हूँ, संवेदनशील भी लेकिन इस पोस्ट में जो कहा गया, वो समझ से परे है। मैं अत्याधुनिक(bold पढ़ें) विषयों पर न तो कभी लिखती हूँ और न ही सहज हो पाती हूँ। आप चाहें तो मुझे छोटे शहर की, दकियानूसी या अप्रगतिशील कहकर लानत भेज सकते हैं। लेकिन जब सोशल मीडिया में सैकड़ों बार इस पोस्ट को शेयर होते देखा, तो रहा नहीं गया।
*शुरुआत में इस संभावना कि, "यह एक बाप और बेटी को दर्शाता चित्र है, तो हो सकता है आपका मन घृणा और अवसाद से भर जाये। लेकिन मुझे पूरा यकीन है जब आप इस प्रसिद्ध पेटिंग के पीछे छिपी कहानी को सुनेंगे तो आपके विचार जरूर बदलेंगे" को पढ़ने के बाद मैंने इस पोस्ट को पूरी गंभीरता से पढ़ा और सच कहूँ तो सहानुभूति के बजाय मन और भी वितृष्णा से भर गया। क्योंकि इस बेटी की तथाकथित महानता के आगे किसी ने मनन करने का जिम्मा ही नहीं उठाया।
जिन्हें नहीं मालूम, उनको बताना चाहूँगी कि Lactation की प्रक्रिया किसी भूखे या मृत इंसान को देखते ही प्रारम्भ नहीं हो जाती चाहे वह आपका पिता भी क्यों न हो। यह प्रक्रिया pregnancy के आखिरी महीनों में शरीर में hormones interaction के बाद ही प्रारम्भ होती है। यदि किसी ने बच्चा गोद लिया है तो induced lactation संभव है, लेकिन इसके लिए भी महीनों पहले hormone therapy से गुजरना होता है। ऐसे में इस चित्र के पीछे की कहानी और उसकी सत्यता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगता क्या? अब लगभग अस्सी वर्ष से भी ऊपर के दिखने वाले शख़्स की बेटी का कोई new born baby होगा, इस कल्पना को मैं यहीं खारिज़ करती हूँ।
यह तस्वीर और इसकी कहानी पेंटर के व्यावसायिक दिमाग की उपज हो सकती है या फिर खरीदने वालों की तरफ से इसे ड्राइंग रूम में सजाने से पहले दिया गया बेहूदा कुतर्क़। पर मेरी समझ से यह विकृत मानसिकता से घिरे और स्त्री को मात्र उपभोग, आनंद की वस्तु समझने वाले किसी सिरफिरे की घृणित सोच से ज्यादा कुछ भी नहीं! 'प्रसिद्धि' की सबसे बड़ी ख़ूबी यह भी है कि नाम हो जाने के बाद कुछ भी बेचना/कहना आसान हो जाता है। चित्रकारी हो, लेखन या फिर कोई भी क्षेत्र, सबमें यही भेड़चाल जोरों पर है।
हाँ जी, वाह जी, क्या बात जी, तुसी तो बड़े महान जी!
DISGUSTING!!!
- प्रीति 'अज्ञात'
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* पेंटर की कहानी और चित्र के लिए कृपया गूगल सर्च कीजिये। और हाँ, हमें उनकी महान कृतियों से कोई ईर्ष्या/ कुंठा टाइप नहीं रही कभी, हम तो नाम ही पहली बार सुने हैं।
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