बुधवार, 15 जून 2016

'स्त्री-सशक्तिकरण'

कल्पना शर्मा जी से मेरी मुलाक़ात ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर हुई। मई की तपती दोपहरी में करीब  एक बजे ट्रेन वहाँ पहुँची और मैं लगेज लेकर बाहर आ रही थी। पापा लेने आये थे, वो दूसरी तरफ थे और मैं शॉर्टकट से आकर उनकी प्रतीक्षा कर रही थी।

अचानक सामने से आती हुई गुलाबी रंग की एक वैन को देख थोड़ा कौतुहल हुआ। हर वर्ष ही वहाँ जाना होता है पर इससे पहले ऐसी वैन कभी देखने में नहीं आई थी। उसके रुकते ही मेरे क़दम उत्सुकतावश स्वत: ही उस ओर बढ़ गए। वैन पर बाहर ही एक फोन नंबर और 'केवल महिलाओं के लिए' देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। मुझे ये स्वीकारने में कोई संकोच नहीं कि हम स्त्री-पुरुष समानता की बात चाहे लाखों बार कर लें पर ऐसी सुविधा 'विशिष्ट' होने का अहसास दे ही जाती है और बहुत अच्छा लगता है। जाहिर है, एक मुस्कान मेरे चेहरे पर भी तैर चुकी थी।

उचककर खिड़की में से झाँका, तो महिला ड्राईवर मुझे ही देख रहीं थीं। शायद सवारी समझकर या मेरी जिज्ञासु नजरों को भांपकर। मैंने तुरंत ही वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, "पहली बार ग्वालियर में ऐसा देखा है। क्या मैं आपका और इस वैन का फोटो ले सकती हूँ?"
उन्होंने तुरंत ही स्वीकृति दे दी। मैंने नाम पूछा, फिर नंबर सेव कर उनसे फोन पर अन्य जानकारी लेने की बात कहकर विदा ली। पापा आ चुके थे, मैं भी घर पहुँचने को उतावली हो रही थी।

अगले ही दिन कल्पना जी (महिला ड्राईवर) से बात करके मिलने को कहा। अपना पता भी दे दिया, दिन और समय तय हो चुका था। लेकिन किसी कारणवश वो नहीं आ सकीं, मेरा कॉल भी नहीं लग रहा था। अगले दिन मुझे वापिस आना था, सो बिना मिले ही आना पड़ा। पर इस बात पर यक़ीन और भी बढ़ गया था कि 'स्त्री-सशक्तिकरण' को निरर्थक रैलियां और मोमबत्तियाँ नहीं बल्कि कल्पना जी जैसी महिलाएँ ही सार्थक करतीं हैं।

आज सुबह ही उनका चेहरा आँखों में घूम गया तो तुरंत उन्हें कॉल किया। बातचीत के दौरान पता चला कि उनकी पाँच बेटियाँ हैं, पति अस्थायी सेवा में हैं। बड़ी बेटी प्रीति की शादी हो चुकी, चेतना नर्सिंग का कोर्स कर रही है, सपना बारहवीं पास कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगी है। उससे छोटी दोनों ग्यारहवीं में हैं। सपना, मेडिकल प्रवेश परीक्षा में एक अंक से चूक गई। उसके बारे में बात करते-करते उनका जी भर आया और वो फूट-फूटकर रोने लगीं। इतनी दूर, दूसरे शहर से बढ़कर उन्हें गले भी कैसे लगाती! थोड़ा ढाँढस दिया। उनकी छोटी बेटी पार्वती वहीँ थी, उससे बात की और मम्मी का ध्यान रखने को कह वार्तालाप को विराम दिया। मेरा मन भी उदास हो चला था। 

दरअसल दोनों पति-पत्नी की कमाई इतनी नहीं कि अच्छे-से गुजारा हो सके। समाज सेवी संस्था के माध्यम से वैन पाकर वे खुश हैं पर उसकी किश्त भी उन्हें देनी पड़ती है। उन्हें मदद की जरुरत है। पर तमाम आर्थिक तंगियों के बाद भी उन्होंने बच्चियों को शिक्षा दी और अभी भी उनकी पढ़ाई के लिए इतने चिंतित और प्रयासरत हैं। इसके लिए उन्हें दिल से सलाम!

आप सभी और विशेष रूप से ग्वालियर निवासियों से विनम्र अनुरोध के साथ कहना चाहूँगी कि यदि आप उन्हें आर्थिक रूप से सहायता देना चाहें तो इस नंबर पर संपर्क करें-8889366219 यदि सामाजिक संस्थाओं की मदद से, बच्चियों की शिक्षा को सुचारु रूप से चलने देने की ओर प्रयास किये जाएँ, तो और भी बेहतर रहेगा। 

पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए दिली शुक्रिया!
अरे, हाँ! उनकी वैन का नाम 'वीरांगना एक्सप्रेस' है। एकदम solid न! 
- प्रीति 'अज्ञात'

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