शुक्रवार, 5 मई 2017

बदलती राहें

"किसी शांत, ठहरे हुए पानी में फेंका गया एक छोटा-सा पत्थर ही कैसी हलचल पैदा कर देता है। ढप्प की आवाज़ सबको सुनाई देती है और फिर एक बिंदु के चारों तरफ गोलों का लगातार बनता जाना, जिसके गोले ज्यादा बने, वही जीता! खेल हुआ करता था। कई बार पत्थर कुछ इस तरह से फेंका जाता था कि वह पानी को दो जगह छूता हुआ अंदर जाता था।

पानी को चोट नहीं लगती, उसका काम तो बहते जाना है। कभी-कभी बस दिशा ही बदलनी होती है। वो पत्थर जिसने उसकी जमीं को भेद दिया है, काफी गहरा जाता है। धीरे-धीरे तलहटी में एक पहाड़ खड़ा होने लगता है, उसमें से दर्द जब भी रिसता है....जल-स्तर बढ़ता जाता है।
याद रहे, फिर एक दिन तूफ़ान भी आता है!"
- प्रीति 'अज्ञात' 
* 'बदलती राहें' कहानी से  

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