अब चूंकि नववर्ष में प्रवेश तय है और हर बार की तरह सभी अपनी-अपनी योजनाओं में व्यस्त हैं (जिनका वैसे होना कुछ भी नहीं है), ऐसे में कुछ बिन्दुओं पर मेरी स्थिति अत्यंत ही चिंताजनक बनी हुई है. जब तक इनका निवारण नहीं हो जाता, मैं अन्नजल दो बार और ग्रहण करुँगी.
आह! दुख्खम-दुक्ख की अविरल धारा है ये! अब नया वर्ष क्या, किसी भी वर्ष में तनावमुक्त जीवन जी पाना संभव नहीं!
क्या आप जानते हैं कि इन दिनों अधिकांश लोग अचानक ही चिड़चिड़े, खूंखार और लड़ाकू गुणों से समृद्ध कैसे होते जा रहे हैं? क्यों वे हर बात में आपको काट खाने को दौड़ते हैं? दरअस्ल इस समस्या का मुख्य और एकमात्र कारण वह प्रजाति है जो स्वजनित, स्वचालित गतिविधियों को संचालित कर, दिन-प्रतिदिन अपने गुणसूत्रों का बहुविभाजन कर अमीबा की तरह फैलती ही जा रही है. यदि आप विज्ञान के विद्यार्थी न हों तो 'अमीबा' के स्थान पर इसका आपातकालीन पर्यायवाची 'सुरसा का मुँह' रखें, भावार्थ समान ही आएगा. ख़ैर, निम्नलिखित गुणधर्मों, वाक्यांशों और संदेशों के आधार पर आप इन्हें पहचान सकते हैं-
13 मेरा 7 रहे- ये यूरेका-सा अविष्कार और अलौकिक साथ की चर्चा तो अवश्य होगी पर पहले ये बताओ कि ऐसे जी मितलाने वाले सन्देश आखिर बनाता कौन है? वैसे मुझे आशंका है कि ये वही महापुरुष हैं जिन्होंने 12-12-12 को 12 के पहाड़े में लिखकर अपने आचार्य जी की चरण पादुकाओं का सर्वप्रथम रसास्वादन किया था. तत्पश्चात ये 9-2-11 होने का उच्चतम कीर्तिमान स्थापित कर पाने में सफल भी हुए थे और अब जब उस दौरे (टूर नहीं अचेतनावस्था) से उबरें हैं तो सीधे वाट्स एप्प की स्वछन्द, उन्मुक्त, ज्ञान-गंगा की पावन वादियों में आ गिरे हैं. यद्यपि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण अवस्था है, पर हमें अपनी मानसिक शांति के लिए इन्हें स्वयं ही क्षमा कर आगे बढ़ जाना होगा. पर हे ईश्वर! इन्हें क़तई माफ़ नहीं करना क्योंकि ये जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं!
नंबर टच करो, मैजिक होगा - आज जबकि जन्म लेने के साथ ही बच्चा तक रिमोट और मोबाइल का उपयोग सीख जाता है, उस जमाने में आप ऐसे वाक्यों का प्रयोग कर किसे मूर्ख बनाने की कुचेष्टा कर रहे हैं? हाँ, माना कि धूम्रपान की तरह इस सम्बन्ध में दी गई वैधानिक चेतावनी की अवज्ञा करते हुए कुछ लोग फिर भी दी गई संख्या को टाइप या टच करते ही हैं पर इससे उनका यह कृत्य क्षम्य नहीं हो जाता. अत: यदि संभव हो तो कृपया अपना दाहिना गाल आगे बढ़ाएं और स्मरण रहे कि अगली बार टच लिखते ही एक हजार किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से किसी की दुरंतो इन पर पंचामृत की दुर्लभ, दैदीप्यमान छवि छोड़ जायेगी.
इसे कम से कम नौ समूहों में पहुंचाना, कोई इच्छा अवश्य पूरी होगी - बस, आपकी ही प्रतीक्षा में तो ये नयन पथराए हैं. क़सम से, उस समय तो प्रथम और अंतिम इच्छा यही होती है कि इसे भेजने वाले का गर्दन से कनेक्टेड एकमात्र शीश नौ-सौ बार पृथ्वी पर पटक-पटक एक ही झटके में समस्त पापियों का समूल विनाश कर दें कि 'न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी'
यदि सच्चे...हो तो इसे इतना शेयर करना कि यह बात हर देशवासी तक पहुंचे - अहा! इन्हें तो 'विष शिरोमणि' रत्न से अलंकृत करने का मन करता है. अरे, अपने धर्म का झंडा चिपकाकर देश का सत्यानाश कर राक्षसी अट्टहास करने वालों, आप जैसे तथाकथित भारतीय जब तक जीवित रहेंगे हमें दुश्मनों की क्या जरुरत? आप हैं न, हमारी हरियाली को झूमते गजराज की तरह तहस-नहस करने के लिए, आम भारतीयों के जीवन में उच्चरक्तचाप की दवाई की तरह प्रतिदिन का डोज़ देकर विषाक्त करने के लिए! आपकी झूठी देशभक्ति की जड़ों में जितनी जल्दी संभव हो, कीटनाशक डाल लीजिए, स्वयं पर भी छिड़क सकते हैं. पर एक बात अपने स्मृतिपटल पर सदा के लिए अंकित कर लो कि जो सच्चा भारतीय होता है न, वो तोड़ने नहीं...जोड़ने की बात करता है. आग बुझाता है, उसमें घी नहीं डालता.
बच्चन जी की कविता - हर हाथ लगी कविता को अमृता प्रीतम, बच्चन जी और गुलज़ार के नाम से वायरल करवाने की निकृष्ट कोशिश करने वालों को 'दवा नहीं दुआ की जरुरत है.' क्योंकि इनकी बौद्धिकता पर पाला पड़ते देख ककहरा भी पीला पड़ चुका है और बारहखड़ी खड़ी अवस्था में ही मूर्छित पड़ी है.
ये बच्चा खो गया है - क्षमा कीजिए पर वो खोया हुआ बच्चा अब शादीशुदा है और उसके बच्चे के गुमशुदा होने की उम्र आ चुकी. बल्कि अब तो उसने ही साक्षात् उपस्थित हो इस पोस्ट को जड़ से मिटाने की भरसक कोशिशों में स्वयं को समर्पित कर दिया है पर आम जनता!! 'न, जी न! ऐसे ऐसे छोड़ दें! हम तो मिलवा के ही मानेंगे!' वैसे ये अपने जूते की दुर्गन्धयुक्त कंदराओं में दुबके मोजे तक नहीं ढूंढ पाते और हर बात में मम्मी-मम्मी करते हैं पर इस बच्चे के बजरंगी भाईजान बन जाना इनका ध्येय वाक्य बन चुका है. इन शुभचिंतकों से दंडवत प्रणाम के साथ यही विनम्र अनुरोध है कि ये कृपया भगवान् के लिए बस एक बार ही बता कर और उसके पश्चात जीवन त्याग इस धरा को पवित्र कर दें.. ...'नासपीटों! कहाँ से लाएं वो बच्चा? जो अब बच्चा नहीं रहा.'
आप पिछले जन्म में क्या थे? - इस जन्म का तो अब तक क्लियर हुआ नहीं और ये पिछले का बताने आ गए. वैसे भी इस तरह की लिंक यह भ्रांति उत्पन्न कर रहीं हैं कि पूर्वजन्म में सभी या तो राजघराने से थे या फिर महापुरुष, वो न हुए तो सुप्रसिद्ध बॉलीवुड कलाकार. इससे यह तात्पर्य भी निकलता है कि महान बनने से कुछ विशेष लाभ नहीं होता, क्योंकि अगले जन्म में फेसबुक, व्हाट्स एप्प पर स्वयं को ढूंढते ही नज़र आना है. भावार्थ यह है कि आपने इस समय 'कचरे' के रूप में जन्म लिया है जबकि स्वच्छता अभियान अपनी प्रगति पर है. स्पष्ट शब्दों में कहूं तो 'दुर्गति वही, जगह नई.' अब आप नीले डिब्बें में गिरेंगे या हरे में, यह निर्णय स्वयं लेने का सौभाग्य प्राप्त करें.
कौन आपसे सच्चा प्यार करता है? आपकी तस्वीर आपके बारे में क्या कहती है? - सुभानअल्लाह! बस यही दिन देखने शेष रह गए थे. अब इन बातों के उत्तर जानने के लिए हमें इन लिंक्स पर निर्भर रहना होगा? इनके बारे में हमसे बेहतर और कौन जान सकता है! लेकिन एक सुझाव है कि ये लोग कुछ धनराशि लेकर ही जवाब बताएं. दो ही दिन में करोड़पति बन जाएँगे क्योंकि जनता इस हद तक उत्सुक रहती है. इश्श, भोली जनता!
कौन आपका प्रोफाइल चोरी-छुपे देखता है? पिछले जन्म में आपकी मृत्यु कैसे हुई थी? कौन आपको मारना चाहता है? - बहुत ख़ूब! यही जानने को ही तो हम इस धरती पर पुन: अवतरित हुए हैं. कर्णपटल की गुफाओं में धंसे रुई के फाहों को निकालकर ध्यानपूर्वक सुनो और समझो ... हमें बताने से एक ग्राम भी लाभ न होगा. इतने चिंतित हो तो कृपया इसकी रिपोर्ट सीबीआई को भेजो. वैसे उनको बताकर भी कुछ विशेष नहीं होने वाला! :P
इस लिंक पर क्लिक करो आपके एकाउंट में 299 आएंगे- अच्छा! अबकी बार आपने जले पर नमक ही नहीं छिड़का बल्कि नींबू भी कसकर निचोड़ डाला है. वैसे ही कड़की के दिन चल रहे, अब बचे खुचे सिक्के इन चोर-उचक्कों को और लुटवा दें! जिन बेचारों पर नोटबंदी ने क़हर ढाया था वे अब तक उसके भीषण सदमे से उबर नहीं सके हैं. सुनो, ये बताओ...तुम उन्हें सीधे ही गोलियों से भून क्यों नहीं देते??
समस्याएँ और भी हैं अतएव जो इस 'टॉप टेन' में स्थान नहीं पा सके, वे प्रसन्न न हों एवं अपना जीवन विशुद्ध निरर्थक ही समझें.
बस, यही अंतिम इच्छा है कि काश! जनवरी के प्रवेश द्वार पर ये द्वारपाल न हों! यक्ष प्रश्न...क्या, 2018 में इन संतापों से मुक्ति मिलेगी?
भारी ह्रदय से यही बताना चाहूंगी कि बेरोज़गारी का दुःख इतना विशाल नहीं, जितना यह बन गया है. अब कुल मिलाकर इन सबसे मुक्ति ही इस मासूम जीवन का एकमात्र लक्ष्य रह गया है इसलिए आप इस पोस्ट को 9 समूहों में भेजकर, इतना शेयर करो, इतना शेयर करो कि मेरा आपका 7, 7 जन्मों तक रहे..... और, हाँ ... इस लिंक पर क्लिक करके शेयर बटन को हौले-से टच करना, ग़ज़ब मैजिक होगा..... हीहीही :D :D
- प्रीति 'अज्ञात'
#इंडिया टुडे ग्रुप के ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म, ichowk पर प्रकाशित
https://www.ichowk.in/humour/how-social-media-is-making-our-life-complicated-and-how-we-can-tackle-the-various-problems/story/1/9342.html
आह! दुख्खम-दुक्ख की अविरल धारा है ये! अब नया वर्ष क्या, किसी भी वर्ष में तनावमुक्त जीवन जी पाना संभव नहीं!
क्या आप जानते हैं कि इन दिनों अधिकांश लोग अचानक ही चिड़चिड़े, खूंखार और लड़ाकू गुणों से समृद्ध कैसे होते जा रहे हैं? क्यों वे हर बात में आपको काट खाने को दौड़ते हैं? दरअस्ल इस समस्या का मुख्य और एकमात्र कारण वह प्रजाति है जो स्वजनित, स्वचालित गतिविधियों को संचालित कर, दिन-प्रतिदिन अपने गुणसूत्रों का बहुविभाजन कर अमीबा की तरह फैलती ही जा रही है. यदि आप विज्ञान के विद्यार्थी न हों तो 'अमीबा' के स्थान पर इसका आपातकालीन पर्यायवाची 'सुरसा का मुँह' रखें, भावार्थ समान ही आएगा. ख़ैर, निम्नलिखित गुणधर्मों, वाक्यांशों और संदेशों के आधार पर आप इन्हें पहचान सकते हैं-
13 मेरा 7 रहे- ये यूरेका-सा अविष्कार और अलौकिक साथ की चर्चा तो अवश्य होगी पर पहले ये बताओ कि ऐसे जी मितलाने वाले सन्देश आखिर बनाता कौन है? वैसे मुझे आशंका है कि ये वही महापुरुष हैं जिन्होंने 12-12-12 को 12 के पहाड़े में लिखकर अपने आचार्य जी की चरण पादुकाओं का सर्वप्रथम रसास्वादन किया था. तत्पश्चात ये 9-2-11 होने का उच्चतम कीर्तिमान स्थापित कर पाने में सफल भी हुए थे और अब जब उस दौरे (टूर नहीं अचेतनावस्था) से उबरें हैं तो सीधे वाट्स एप्प की स्वछन्द, उन्मुक्त, ज्ञान-गंगा की पावन वादियों में आ गिरे हैं. यद्यपि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण अवस्था है, पर हमें अपनी मानसिक शांति के लिए इन्हें स्वयं ही क्षमा कर आगे बढ़ जाना होगा. पर हे ईश्वर! इन्हें क़तई माफ़ नहीं करना क्योंकि ये जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं!
नंबर टच करो, मैजिक होगा - आज जबकि जन्म लेने के साथ ही बच्चा तक रिमोट और मोबाइल का उपयोग सीख जाता है, उस जमाने में आप ऐसे वाक्यों का प्रयोग कर किसे मूर्ख बनाने की कुचेष्टा कर रहे हैं? हाँ, माना कि धूम्रपान की तरह इस सम्बन्ध में दी गई वैधानिक चेतावनी की अवज्ञा करते हुए कुछ लोग फिर भी दी गई संख्या को टाइप या टच करते ही हैं पर इससे उनका यह कृत्य क्षम्य नहीं हो जाता. अत: यदि संभव हो तो कृपया अपना दाहिना गाल आगे बढ़ाएं और स्मरण रहे कि अगली बार टच लिखते ही एक हजार किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से किसी की दुरंतो इन पर पंचामृत की दुर्लभ, दैदीप्यमान छवि छोड़ जायेगी.
इसे कम से कम नौ समूहों में पहुंचाना, कोई इच्छा अवश्य पूरी होगी - बस, आपकी ही प्रतीक्षा में तो ये नयन पथराए हैं. क़सम से, उस समय तो प्रथम और अंतिम इच्छा यही होती है कि इसे भेजने वाले का गर्दन से कनेक्टेड एकमात्र शीश नौ-सौ बार पृथ्वी पर पटक-पटक एक ही झटके में समस्त पापियों का समूल विनाश कर दें कि 'न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी'
यदि सच्चे...हो तो इसे इतना शेयर करना कि यह बात हर देशवासी तक पहुंचे - अहा! इन्हें तो 'विष शिरोमणि' रत्न से अलंकृत करने का मन करता है. अरे, अपने धर्म का झंडा चिपकाकर देश का सत्यानाश कर राक्षसी अट्टहास करने वालों, आप जैसे तथाकथित भारतीय जब तक जीवित रहेंगे हमें दुश्मनों की क्या जरुरत? आप हैं न, हमारी हरियाली को झूमते गजराज की तरह तहस-नहस करने के लिए, आम भारतीयों के जीवन में उच्चरक्तचाप की दवाई की तरह प्रतिदिन का डोज़ देकर विषाक्त करने के लिए! आपकी झूठी देशभक्ति की जड़ों में जितनी जल्दी संभव हो, कीटनाशक डाल लीजिए, स्वयं पर भी छिड़क सकते हैं. पर एक बात अपने स्मृतिपटल पर सदा के लिए अंकित कर लो कि जो सच्चा भारतीय होता है न, वो तोड़ने नहीं...जोड़ने की बात करता है. आग बुझाता है, उसमें घी नहीं डालता.
बच्चन जी की कविता - हर हाथ लगी कविता को अमृता प्रीतम, बच्चन जी और गुलज़ार के नाम से वायरल करवाने की निकृष्ट कोशिश करने वालों को 'दवा नहीं दुआ की जरुरत है.' क्योंकि इनकी बौद्धिकता पर पाला पड़ते देख ककहरा भी पीला पड़ चुका है और बारहखड़ी खड़ी अवस्था में ही मूर्छित पड़ी है.
ये बच्चा खो गया है - क्षमा कीजिए पर वो खोया हुआ बच्चा अब शादीशुदा है और उसके बच्चे के गुमशुदा होने की उम्र आ चुकी. बल्कि अब तो उसने ही साक्षात् उपस्थित हो इस पोस्ट को जड़ से मिटाने की भरसक कोशिशों में स्वयं को समर्पित कर दिया है पर आम जनता!! 'न, जी न! ऐसे ऐसे छोड़ दें! हम तो मिलवा के ही मानेंगे!' वैसे ये अपने जूते की दुर्गन्धयुक्त कंदराओं में दुबके मोजे तक नहीं ढूंढ पाते और हर बात में मम्मी-मम्मी करते हैं पर इस बच्चे के बजरंगी भाईजान बन जाना इनका ध्येय वाक्य बन चुका है. इन शुभचिंतकों से दंडवत प्रणाम के साथ यही विनम्र अनुरोध है कि ये कृपया भगवान् के लिए बस एक बार ही बता कर और उसके पश्चात जीवन त्याग इस धरा को पवित्र कर दें.. ...'नासपीटों! कहाँ से लाएं वो बच्चा? जो अब बच्चा नहीं रहा.'
आप पिछले जन्म में क्या थे? - इस जन्म का तो अब तक क्लियर हुआ नहीं और ये पिछले का बताने आ गए. वैसे भी इस तरह की लिंक यह भ्रांति उत्पन्न कर रहीं हैं कि पूर्वजन्म में सभी या तो राजघराने से थे या फिर महापुरुष, वो न हुए तो सुप्रसिद्ध बॉलीवुड कलाकार. इससे यह तात्पर्य भी निकलता है कि महान बनने से कुछ विशेष लाभ नहीं होता, क्योंकि अगले जन्म में फेसबुक, व्हाट्स एप्प पर स्वयं को ढूंढते ही नज़र आना है. भावार्थ यह है कि आपने इस समय 'कचरे' के रूप में जन्म लिया है जबकि स्वच्छता अभियान अपनी प्रगति पर है. स्पष्ट शब्दों में कहूं तो 'दुर्गति वही, जगह नई.' अब आप नीले डिब्बें में गिरेंगे या हरे में, यह निर्णय स्वयं लेने का सौभाग्य प्राप्त करें.
कौन आपसे सच्चा प्यार करता है? आपकी तस्वीर आपके बारे में क्या कहती है? - सुभानअल्लाह! बस यही दिन देखने शेष रह गए थे. अब इन बातों के उत्तर जानने के लिए हमें इन लिंक्स पर निर्भर रहना होगा? इनके बारे में हमसे बेहतर और कौन जान सकता है! लेकिन एक सुझाव है कि ये लोग कुछ धनराशि लेकर ही जवाब बताएं. दो ही दिन में करोड़पति बन जाएँगे क्योंकि जनता इस हद तक उत्सुक रहती है. इश्श, भोली जनता!
कौन आपका प्रोफाइल चोरी-छुपे देखता है? पिछले जन्म में आपकी मृत्यु कैसे हुई थी? कौन आपको मारना चाहता है? - बहुत ख़ूब! यही जानने को ही तो हम इस धरती पर पुन: अवतरित हुए हैं. कर्णपटल की गुफाओं में धंसे रुई के फाहों को निकालकर ध्यानपूर्वक सुनो और समझो ... हमें बताने से एक ग्राम भी लाभ न होगा. इतने चिंतित हो तो कृपया इसकी रिपोर्ट सीबीआई को भेजो. वैसे उनको बताकर भी कुछ विशेष नहीं होने वाला! :P
इस लिंक पर क्लिक करो आपके एकाउंट में 299 आएंगे- अच्छा! अबकी बार आपने जले पर नमक ही नहीं छिड़का बल्कि नींबू भी कसकर निचोड़ डाला है. वैसे ही कड़की के दिन चल रहे, अब बचे खुचे सिक्के इन चोर-उचक्कों को और लुटवा दें! जिन बेचारों पर नोटबंदी ने क़हर ढाया था वे अब तक उसके भीषण सदमे से उबर नहीं सके हैं. सुनो, ये बताओ...तुम उन्हें सीधे ही गोलियों से भून क्यों नहीं देते??
समस्याएँ और भी हैं अतएव जो इस 'टॉप टेन' में स्थान नहीं पा सके, वे प्रसन्न न हों एवं अपना जीवन विशुद्ध निरर्थक ही समझें.
बस, यही अंतिम इच्छा है कि काश! जनवरी के प्रवेश द्वार पर ये द्वारपाल न हों! यक्ष प्रश्न...क्या, 2018 में इन संतापों से मुक्ति मिलेगी?
भारी ह्रदय से यही बताना चाहूंगी कि बेरोज़गारी का दुःख इतना विशाल नहीं, जितना यह बन गया है. अब कुल मिलाकर इन सबसे मुक्ति ही इस मासूम जीवन का एकमात्र लक्ष्य रह गया है इसलिए आप इस पोस्ट को 9 समूहों में भेजकर, इतना शेयर करो, इतना शेयर करो कि मेरा आपका 7, 7 जन्मों तक रहे..... और, हाँ ... इस लिंक पर क्लिक करके शेयर बटन को हौले-से टच करना, ग़ज़ब मैजिक होगा..... हीहीही :D :D
- प्रीति 'अज्ञात'
#इंडिया टुडे ग्रुप के ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म, ichowk पर प्रकाशित
https://www.ichowk.in/humour/how-social-media-is-making-our-life-complicated-and-how-we-can-tackle-the-various-problems/story/1/9342.html
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