लोग अपनी प्रेम कहानियां उससे बाँटते हैं, अपने महबूब का अक्स उसमें झांकते हैं, उसकी क़सम खाकर आहें भरते हैं पर ख़ुद चाँद के हिस्से में ही कोई महबूब नहीं! सदियों से सबकी मोहब्बत के साक्षी रहे इस चाँद के पाले में उसका चाँद कभी आया ही नहीं! सबके बीच भी वो कितना अकेला है. तमाम तारे उसे अपना कहते जरुर हैं पर दिल से मानते नहीं! कभी उसकी भरी आँखों में अपनी उमंगों की परछाई तक नहीं पड़ने देते. वो उस पल बेहद हारा हुआ महसूस करता है. दुःख अब उसके चेहरे पर झाइयाँ बन उभरने लगा है.
तभी तो कितनी मर्तबा वो भीतर-ही -भीतर ख़ुद को सिकोड़, डबडबाई पलकों से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर चुपचाप बैठ जाता है. सुना है, उस रात फिर ख़ूब बारिश होती है. - प्रीति 'अज्ञात'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/11/2018 की बुलेटिन, " टूथपेस्ट, गैस सिलेंडर और हम भारतीय “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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