सोमवार, 13 जुलाई 2020

शर्मनाक! अमिताभ के साथ रेखा को जोड़कर छिछोरे comments करने वाले भी बीमार हैं

इस कोरोना महामारी ने न केवल दुनिया भर के लोगों का जीना मुश्क़िल कर दिया है बल्कि कुंठित और घिनौनी मानसिकता से भरे तमाम लोगों को अपनी तथाकथित 'प्रतिभा' दिखाने का कुअवसर भी दे डाला है. व्हाट्स ऐप्प पर लिखने वाले तो महान हैं ही, पर इन बेहूदगी भरी पोस्टों को हँसते हुए फॉरवर्ड कर देने वालों की भी कोई कमी नहीं! देखकर तरस आता है कि इन्होंने निम्नता के रसातल तक पहुँचने की कोई सीमा तय की भी है या नहीं?

एक ओर जहाँ पूरा देश अमिताभ बच्चन के कोरोना संक्रमित होने से स्तब्ध है. देश-दुनिया भर में उनके करोड़ों प्रशंसक उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की दुआएं माँग रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस समय भी मसख़री सूझ रही है. मसख़री भी नहीं बल्कि ये ख़ालिस बदतमीज़ी ही है.
ठीक है, रेखा और अमिताभ का कभी एक पास्ट रहा भी होगा तो इसका यह मतलब तो क़तई नहीं कि आप जब जी चाहें, उनका जीना हराम कर दें! हद है! इस संवेदनशील समय में भी इधर-उधर का जोड़-तोड़, सच्ची मोहब्बत के नाम पर इन दोनों कलाकारों के लिए घटिया पोस्ट रची जा रही है. क्या हम भारतीयों की रचनात्मकता (creativity) का स्तर इतना गिर चुका है कि हम बीमारी में भी मज़े लूटना नहीं छोड़ पा रहे! हो क्या गया है, समाज को?

मुझे नहीं याद पड़ता कि किसी भी बड़े नेता या फ़िल्म स्टार के सुरक्षाकर्मी (Security Guard) के कोरोना पॉजिटिव होने की ख़बर इतने जोर-शोर से दिखाई गई हो, जितना कि रेखा के बंगले की बात हुई. चलिए, ख़बर देना भी सही! पर उसके मिलते ही यूँ उछल पड़ना जैसे लॉटरी निकल गई हो; कहाँ तक तर्कसंगत है? आख़िर लोगों की मानसिकता किस हद तक नीचे गिरेगी?

फेसबुक, ट्विटर पर कुछेक को छोड़ दिया जाए तो वहां संवेदना भरे लाखों संदेशों की बाढ़ आई हुई है लेकिन व्हाट्स ऐप्प यूनिवर्सिटी का एक अलग ही शास्त्र है. यहाँ केवल मखौल उड़ाती या सस्ती भाषा से भरी पोस्ट ही फॉरवर्ड की जा रहीं हैं.
एक लिखता है, "इसी को मोहब्बत कहते हैं प्यारेलाल जी कि कोरोना सिकंदर को हो और बंगला ज़ोहराबाई का सील कर दिया जाए!"
दूसरे ने तो आला दर्ज़े का काव्य ही रच दिया, "मोहब्बत की मिसाल देगा सदियों तक ज़माना, कोरोना अमिताभ को और बंगला रेखा का सील हो जाना."
इनके लिए मोहब्बत न हुई मज़ाक हो गई कि जब चाहे कर लो! ये तो बानगी भर है. अग़र सारी पढ़ें तो किसी का भी खून खौल जाए.

हम जानते हैं कि अमिताभ ही नहीं बल्कि अभिषेक, ऐश्वर्या और उनकी बेटी आराध्या भी कोरोना से संक्रमित हैं. इस कठिन समय में भी जब बॉलीवुड के सबसे प्रतिष्ठित परिवार को लेकर लोग अपना छिछोरापन नहीं छोड़ पा रहे हैं तो आम जनता के दुःख में इनकी घड़ियाली संवेदनाओं का अनुमान आप स्वयं लगा लीजिए!
इन्हें बच्चन परिवार के साथ और इस महामारी में खिलंदड़पन सूझ रहा है तो ये अपने आस-पड़ोस के लोगों के संक्रमित हो जाने पर न जाने उन्हें किन नज़रों से देखते होंगे? कैसा बर्ताव करते होंगे?

कुछ को तो इस बात से भी पेट में मरोड़ उठ रही कि इतने लोगों को कोरोना हुआ तो बच्चन परिवार के मामले को ही क्यों तूल दी जा रही?
मने कमाल है! हिन्दी सिनेमा का महानायक जिसने अपने जीवन के पचास वर्ष इस इंडस्ट्री को दिए, आप सबका मनोरंजन किया, अपनी संघर्ष और सफ़लता की कहानी से न जाने कितने युवाओं को प्रेरणा दी, उनमें जोश भरा! तमाम सामाजिक कार्यों से जुड़ा हुआ है. आज उसकी न्यूज़ से आपको दिक़्क़त होने लगी?
क्या बच्चन परिवार की न्यूज़ दिखाने से शेष संक्रमितों के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है? यदि किसी सितारे के चाहने वालों को उसकी फ़िक्र है तो इसमें आपको ग़लत क्या लग रहा? क्या आप उसकी चिंता नहीं करते जो आपका प्रिय है? हाँ, अमिताभ बच्चन ख़ास हैं, सदैव रहेंगे.

कोरोना काल में लगने लगा था कि अब इंसान की सोच थोड़ी बेहतर होगी, मन शायद निर्मल होने लगेगा, हृदय कुछ और संवेदनशील होगा, इंसानों और भावनाओं की क़द्र होने लगेगी पर यहाँ तो हर तरफ़ समाज का दोहरा, भद्दा और वीभत्स चेहरा ही नज़र आ रहा है!
- प्रीति 'अज्ञात'

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