मंगलवार, 7 जुलाई 2020

#सपनों के राजकुमार की बात, केवल सपना ही नहीं होती!


पता नहीं! लड़के अपनी 'सपनों की राजकुमारी' की कल्पना करते हैं या नहीं लेकिन एक अल्हड़-सी उम्र की लड़कियाँ तो अपने सपनों के राजकुमार के बारे में बहुत सोचती हैं. उसकी कल्पना भी ज़रूर ही करती हैं. धड़कनें जब जवां होने लगती हैं तो ह्रदय में चाहत के तमाम पुष्प अनायास ही महकने लगते हैं. अचानक ही एक दिन कोई चेहरा आ टकराता है और दिल सारे ग़म भूल खुलकर मुस्कुराने लगता है. यूँ महसूस होता है कि जैसे जीवन की सारी तलाश ही ख़त्म हो गई. जैसे कोई डूबती नैया, लहरों पर थिरक कौतुक भर साहिल का माथा चूमने लगी हो. जैसे ईश्वर के हाथों गढ़ी सबसे सुंदर कृति से हमारा साक्षात्कार हो रहा हो! 'प्रेम' यही तो होता है. ऐसा ही तो होता है.

यही प्रेम मल्लिका को भी हुआ, जब उसने अश्विन को पहली बार देखा. इतना सुदर्शन युवक कि किसी की भी आँखें, उसके चेहरे से हटें ही न कभी! मल्लिका का मन भी जैसे ठहर गया था वहीं. वह और अश्विन एक ही कॉलेज में थे. मल्लिका स्वयं को दर्पण में देखती और अपने भीतर की उसी हीन भावना से लड़ती; जिसने उसके हृदय में बचपन से ये बात बिठा रखी थी कि साँवली लड़कियाँ सुन्दर नहीं होतीं.
वह अश्विन की एक झलक पाने को बेक़रार रहती लेकिन सामने आते ही नज़रें झुका लेती. अश्विन को थिएटर और संगीत का शौक़ था. मल्लिका उसका हर प्ले देखती. कॉलेज की पत्रिका में से उसकी तस्वीर सँभाल लेती परन्तु प्रेम का इज़हार करने को आतुर मन न जाने क्यों उसे रोक देता. वो इस बात से भी डरती थी कि दोनों के धर्म अलग हैं और परिवार कट्टर; न जाने क्या हो जाए. अनुकूल कहने को कुछ था ही नहीं. हाँ, वो इस अनकहे प्यार को कविता में ढालने लगी थी. ये अबोला प्यार भला कैसे मुख़र होता! वही हुआ, अश्विन, मल्लिका के हृदय से अनजान ही रहा.

समय बीतता गया और इस हद तक बीता कि दोनों को एक-दूसरे की कोई ख़बर तक न थी. अपनी-अपनी ज़िन्दग़ी में रमे दो लोग घर-परिवार, नौकरी के दायित्वों को भरपूर शक्ति और संज़ीदग़ी से निभाते रहे. मल्लिका एजी ऑफिस के एक बड़े पद से रिटायर हो चुकी थी. लिखने का शौक़ अब तक जीवित था उसका. साथ ही एक आस भी कहीं पल रही थी कि क़ाश! एक बार अश्विन को कह सके कि वो उसे कितना पसंद करती थी.
कहते हैं न, 'जहाँ चाह, वहाँ राह!' तो सोशल मीडिया का यह युग इस अधूरी कहानी के लिए जैसे वरदान साबित हुआ. पूरे पैंतालीस वर्षों बाद मल्लिका ने अश्विन को ढूँढ निकाला. जीवन के सात दशक जी चुका, बीते समय का वह सुदर्शन युवक अब कैलिफोर्निया, अमेरिका का निवासी था. 

प्रेम का सबसे ख़ूबसूरत और सच्चा रूप यही होता है जब उससे जुड़ी कोई अपेक्षाएँ न हों. बस जिगरी दोस्त सा कोई साथी हो जो इस प्रेम को स्वीकार भर कर ले, उतने में ही जीवन सार्थक लगने लगता है. एक उम्र के बाद न तो देह की अभिलाषा होती है और न कोई अन्य चाहत. उस समय केवल दो दिलों की मीठी सरगम बेधड़क, शब्दों की लय पर जीवन गान करती है. यही प्रेम की पराकाष्ठा है जहाँ मन एक दूसरे के भीतर इस तरह समा जाएँ कि दूरियों से कोई गिला-शिक़वा रहे ही न कभी.

घर-परिवार के प्रति दोनों ने ही अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभाईं और अपनों को प्रेम भी जी-भरकर किया. लेकिन ये जो क़सक थी न वर्षों से, उसको कह देना अब जरुरी ही था. मल्लिका के पास अब खोने को कुछ नहीं था. इस उम्र में परिपक्वता भी अपने चरम पर होती ही है. सो एक दिन उसने हिम्मत जुटाकर अश्विन को उस षोडशी के मन की बात कह दी. अश्विन जो कि इस गुज़रे सच से अनभिज्ञ था, हैरत में पड़ गया. उसने न केवल मल्लिका की भावनाओं का आदर किया बल्कि उन पलों के लिए ख़ेद भी व्यक्त किया जबकि वह तो दोषी था भी नहीं!

अब इन बिछड़े दोस्तों में रोज़ ऑनलाइन chat  होने लगीं. शुरुआत दोनों के बीते दिनों से हुई और फिर धीरे-धीरे इसमें जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी चर्चा शामिल होने लगी. इस स्नेह-बंधन ने इनके जीवन में ख़ुशी के हजारों दीप जला दिए थे जैसे. अश्विन कैंसर से लड़ रहा था लेकिन मल्लिका के आगमन ने उसे ढेरों साँसें दे दी थीं. वो अब अपने पुराने शौक़ को भी जीने लगा था. उसकी इच्छा थी कि क्यों न उनकी कहानी और बातचीत को पुस्तक का जामा पहना दिया जाए! मल्लिका को भी यह बात जँची और फिर उनकी कहानी में मेरा आगमन हुआ.
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प्रेम पर मेरे लिखे कई आलेख पढ़े थे उन्होंने. उन्हें इस बात का पूरा यक़ीन था कि उनके प्रेम को अगर कोई सही तरह से अभिव्यक्त कर सकता है तो वो मैं हूँ. क्या कहती मैं! प्रेम के हर भाव पर लिखा है, बेसाख़्ता लिखा है लेकिन हरेक की तरह एक खाली कोना मेरे मन में भी रहा करता था, शायद यह उसी का आग्रह था कि मैंने उनकी पुस्तक की भूमिका लिखने के लिए स्वीकृति दे दी. अगले ही दिन उन्होंने इसकी पाण्डुलिपि मुझ तक पहुँचा दी. इस कहानी के पात्र और घटनाएँ काल्पनिक नहीं थीं. कहीं-न-कहीं दिल से दिल का रिश्ता जुड़ ही जाया करता है. इस फ़ाइल को मैंने न जाने कितनी बार पढ़ा और हर बार मन भीगता ही रहा. अनगिनत रातों तक यह कहानी मुझे उदास करती रही. रोज़ ही मेरा मन, मेरा हाथ थाम मुझे न जाने किन गहरी घाटियों में चुपचाप तनहा छोड़ लौट आता. 

मैं इस कहानी के एक पात्र को तो जानती थी और दूसरे को जानने की इच्छा बलवती होने लगी थी. मेरी क़िस्मत ही कहिये कि एक दिन अश्विन जी का मित्रता निवेदन आया जिसे मैंने पलक झपकते ही स्वीकार कर लिया. मैं उनकी बेटी की तरह ही थी. वो कभी-कभार मैसेज करते और प्रशंसा भी. मैं संकोच से भर जाती. मेरा कई बार उनकी तबीयत जानने का मन करता परन्तु इस 'कैंसर' शब्द ने न केवल मेरे अपनों को मुझसे छीना बल्कि मुझे भी इस हद तक तोड़ा है कि मैं उनसे इस विषय पर बात करने से ही डरती थी. बस, आदतन एक स्माइल भेज देती फिर मल्लिका जी से उनका हालचाल पूछ लेती. 
मेरी पोस्ट पर कई बार जब अंग्रेज़ी में कमेंट करते तो तुरंत ही इसके लिए ख़ेद भी प्रकट करते. उनकी हिन्दीअच्छी थी. फेसबुक में कभी टाइपिंग की दिक्क़त हो ही जाती है. मैं मानती हूँ कि अभिव्यक्ति कभी भाषा की मोहताज़ नहीं होती, उसके लिए तो बस एक मोती-सा मन चाहिए होता है, जो अश्विन जी के पास था. उन्हें क्या पता था कि मेरे लिए तो उनकी उपस्थिति ही एक आशीर्वाद की तरह थी. वरना मेरा-उनका क्या रिश्ता था! उन्हें जितना भी जाना, मल्लिका जी के माध्यम से ही. उनकी भोली बातों पर जितना हँसी हूँ, उन्हें आवाज़ मल्लिका जी ने ही दी थी. उनकी परेशानियों में जो अश्रुधार बही है, उसका स्त्रोत भी उनकी सबसे प्यारी दोस्त मल्लिका ही थी. 

चैट उपन्यास 'यू एन्ड मी...द अल्टिमेट ड्रीम ऑफ़ लव' छपकर आ चुका था. उससे सम्बंधित कार्यक्रम हुए. पुस्तक को बहुत सराहना भी मिली. मेरी भूमिका अब ख़त्म हो जानी चाहिए थी. पर पता नहीं क्यों! कुछ न होते हुए भी मैं अब भी उनकी कहानी का हिस्सा बन रही थी. आप इसे 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' समझ सकते हैं. मैं चाहती थी कि कैसे भी करके एक बार उन दोनों की मुलाक़ात हो जाए. मैंने अश्विन जी को भारत आने का न्योता भी दिया. अहमदाबाद के हैं तो यहीं आते. 
सपनों की दुनिया में अक़्सर भटकती हूँ. मन-ही-मन उन दोनों के लिए एक सरप्राइज़ पार्टी का प्लान भी कर  बैठी थी. हालाँकि तब अश्विन जी का स्वास्थ्य, यात्रा की अनुमति नहीं दे रहा था पर कभी तो आएँगे; इस बात को लेकर एक आश्वस्ति सी थी. मार्च में Covid-19 की दस्तक़ के साथ ही दुनिया भर के मंसूबों पर पानी फिर गया.
 
अचानक ही ख़बर मिली कि अश्विन जी हम सब को छोड़ उस दुनिया की यात्रा को निकल चुके हैं, जहाँ से कोई भी आज तक कभी लौटकर नहीं आया. किसी और के लिए न सही पर आपको अपने परिवार, बच्चों और वर्षों बाद मिली इस प्यारी दोस्त मल्लिका के लिए थोड़ा सा तो ठहरना था,अश्विन जी.  मुझे दुःख है कि मैं आपसे न मिल सकी पर आपकी मल्लिका की आँखों में एक राजकुमार देखा है. वो जो प्रेम है न, वो यथावत है. दुनिया बदल जाए पर प्रेम कहाँ बदलता है! वो तो रहेगा सदा. 
आप चाहे इसे कोई भी नाम दें लेकिन मेरे लिए तो ये ख़ालिस प्रेम था. एक ऐसा प्रेम, जहाँ केवल और केवल एक-दूसरे की परवाह थी. जो किसी मुलाक़ात का मोहताज़ नहीं था. जहाँ शेरो-शायरी का भी कोई काम नहीं था. बस दो दिल थे और उनमें रची-बसी पवित्र भावनाएँ! यदि एक अश्विन या एक मल्लिका हम सबके जीवन में हों, तो उससे ख़ूबसूरत और कुछ नहीं हो सकता!
सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी जो शेष रहता है, वो प्रेम ही है. जीवन का अंतिम सत्य भी 'प्रेम' के अलावा कुछ नहीं!
अश्विन जी, आप जहाँ भी रहें, प्रसन्न रहें. मैं जानती हूँ आप इस नेह-बंधन को सदा महसूस करते रहेंगे. ख़ूब सारा स्नेह आपको. 

इन दोनों के परिवार भी जुड़ चुके हैं. मैसेज द्वारा बातें होती हैं. अश्विन जी की बेटी ने मल्लिका जी से वादा किया है कि "पापा तो नहीं आ सके पर मैं आपसे मिलने इंडिया जरूर आऊँगी." तुम्हारे पापा की इस अधूरी मुलाक़ात का सपना पूरा करने के लिए, दिल से तुम्हारा स्वागत और धन्यवाद हिरवा. 
-प्रीति 'अज्ञात'
फ़ोटो: अश्विन जी के ISRO, अहमदाबाद के कार्यकाल के दिनों की 
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4 टिप्‍पणियां:

  1. दिल को छूते हुए आंखों में नमी बनकर जम गई सारी बातें!

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    1. धन्यवाद, विश्वमोहन जी. लगभग हर पोस्ट में आपकी उपस्थिति की कृतज्ञ हूँ.

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  2. कथा का आत्मतत्व जो आत्मा को छू गया प्रीती जी |

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