गुरुवार, 17 सितंबर 2020

#मोदी_जी #जन्मदिवसस्य शुभाशयाः


राजीव गाँधी जब 'कम्प्यूटर क्रांति' की तैयारी कर रहे थे तब मैं स्कूल में हुआ करती थी. राजनीति की समझ न तो तब थी और न ही अब है पर फिर भी उस समय मेरा बाल मन असहज था. मैं सोचती थी कि अभी तो हमारे देश के लोगों को ककहरा ज्ञान तक नहीं! ऐसे में कम्प्यूटर की बात करने का औचित्य ही क्या है! तब मेरे मन में जो भी रोष था, उसे कविता जैसा कुछ बनाकर लिख दिया था. यह तब 'स्वदेश' नामक समाचार-पत्र में प्रकाशित भी हुआ था. यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि राजीव जी मुझे बेहद पसंद थे. अब उनकी ये बात मुझे पसंद नहीं आई, सो लिख दी थी!  तब ये सब सामान्य ही हुआ करता था. असहमति को स्थान था और कोई लड़ने नहीं आता था! न ही कोई सोशल साइट्स थी जो ब्लॉक करने की बार-बार धमकी दिया करतीं! 2010 के आसपास मुझे इस तक़नीक़ (कम्प्यूटर) को समझने की आवश्यकता महसूस हुई और तब मैंने मन-ही-मन राजीव जी को धन्यवाद भी दिया. 


अन्ना और केजरीवाल जी जब राजनीति में आने का मन बना लिए थे तब हम-सा प्रसन्न कोई और क्या ही हुआ होगा! यूँ राजनीति में मेरी दिलचस्पी तब भी नहीं थी, रही ही न कभी! पर उनके विचार जान, न जाने क्यों एक उम्मीद-सी जाग उठी थी कि अब मेरे देश में सब कुछ अच्छा हो जाएगा! ख़ैर! उनकी आपसी कलह ही उन्हें ले डूबी. हुआ वही, जो हर बार होता आया था! वही निराशा, वही भ्रष्टाचार, वही ग़रीबी और वही बेरोज़गारी की दीमक! हाँ, इन दिनों मुख्यमंत्री के रूप में वे ठीक ही काम कर रहे हैं, इतना तो मानती हूँ. 

वर्ष 2000 में, मैं अहमदाबाद आकर बस गई. अब हम तो उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के दुखियारे लोग! जहाँ उन दिनों लाइट का आना एक इवेंट हुआ करता था! 'पानी आया, नहीं आया?' के प्रश्न के साथ पूरा दिन निकल जाता था. यूँ लगता था कि बस बिजली, पानी मिल जाए तो जीवन set है! यहाँ गुजरात में जो देखा तो आँखें चौंधियां ही गईं थी जैसे! अरे! यहाँ लाइट जाती ही नहीं क्या? ख़ुशी का पारावार न रहता था. चोरी, लूटपाट, अपराध से अख़बार भी सना नहीं रहता था. सड़कें बिना हिचकोले खिलाए यात्रा करा दें, यह भी एक स्वप्न ही सा था तब! पर यहाँ तो हर बात में वाह ही निकलती थी. उसी समय पहली बार मोदी जी का नाम कान में पड़ा और हम उसी क्षण उनके मुरीद हो गए! यूँ अटल जी भी सदैव से मुझे बेहद प्रिय थे. 

कहने का तात्पर्य यह कि किसी दल विशेष की ओर मेरा झुकाव कभी नहीं रहा. मैं ही क्या, बहुतों का नहीं होता! अरे! जो अच्छा, सच्चा काम करे, वही अपना नेता! व्यक्तिगत रूप से हमें किसी से क्या मिलना है? देश का अच्छा होगा तो अपना भी हो ही जाएगा न!
ख़ैर! हम देशवासियों की ये आदत ही है कि हम भरोसा बहुत सरलता से कर लेते हैं. उम्मीदें बाँध लेते हैं और फिर उनके पूरे होने की प्रतीक्षा भी रहती है हमें! मोदी जी जब प्रधानमंत्री बन विकास की बात करते थे तो मेरी आँखों में 'स्वर्णिम गुजरात' की तस्वीरें तैरने लगती थीं. उनका प्रधानमंत्री बनना किसी स्वप्न के साकार होने जैसा लगने लगा था. सच, मुझे बेहद ख़ुशी हुई थी. 

सब कुछ अच्छा ही रहता अगर इसमें भक्तजनों का प्रवेश न हुआ होता! ये न जाने कहाँ से वायरस की तरह फैलने लगे! ये भक्त किसी के बोलते ही कुतर्क पर उतरने लगते, लड़ाइयाँ होने लगीं. जिसने सत्ता के पक्ष में न बोला, वो देशद्रोही कहा जाने लगा! यक़ीनन ये मोदी जी ने नहीं सिखाया था लेकिन इस सब को रोका भी तो नहीं गया! देखते-ही-देखते, देश दो धड़ों में विभाजित हो गया! एक तो वो जो भक्त हैं और दूसरे वो जो विपक्ष में खड़े ललकार रहे हैं. सोशल मीडिया पर 'कट्टर ये', 'कट्टर वो' नाम से समूह बनते चले गए जिसने देश को ऐसी घृणा की आँधी में धर दबोचा कि हम अब तक इसकी तपिश झेल रहे हैं. हँसते हुए हमने भी कई बार इंगित किया पर हमारी आवाज़ अभी इतनी ऊँची हुई नहीं है कि उसका रत्ती भर भी असर हो कहीं! 

आज माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी का जन्मदिवस है, उन्हें इसकी ख़ूब बधाई और शुभकामनाएँ!
हम तो उन्हें क्या उपहार देंगे लेकिन return gift में इतना चाहते हैं कि वे इन नफ़रत फैलाती ताक़तों के विरोध में जमकर बोलें, उन्हें ख़ूब लताड़ें और जड़ से ख़त्म करें. वे लोग जो संस्कृति संरक्षण के नाम पर विष-बेल रोप रहे हैं, उन्हें उनके हिस्से का उचित दंड दें. एक तो कोरोना महामारी, उस पर आर्थिक परेशानियों से जूझता देश अब आपसी वैमनस्यता और घृणा को और नहीं झेल सकता! चीन अलग ख़ून पीये ले रहा!
जन्मदिवसस्य शुभाशयाः, शतायु भवः 
- प्रीति 'अज्ञात'
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